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मिर्ज़ापुर शहर, दक्षिण-पूर्व [[उत्तर प्रदेश]] राज्य, उत्तर-मध्य [[भारत]], [[वाराणसी]] (पहले बनारस) के दक्षिण-पश्चिम में [[गंगा नदी]] के तट पर [[विन्ध्याचल पर्वत|विन्ध्याचल]] की [[कैमूर पहाड़ियाँ|कैमूर पर्वत श्रेणियों]] में स्थित है। इसके आसपास के क्षेत्र में उत्तर में गंगा के कछारी मैदान का हिस्सा और दक्षिण में विंध्य पर्वतश्रेणी की कुछ पहाड़ियाँ हैं। यह क्षेत्र [[सोन नदी]] द्वारा अपवाहित होता है। इसकी सहायक धारा रिहंद पर बांध बनाया गया है, जिससे विशाल जलाशय का निर्माण हो गया है और इसमें जलविद्युत उत्पादन भी होता हैं। यहाँ नदी तट पर कई मंदिर और घाट हैं। विंध्याचल में काली का प्राचीन मंदिर है, जहाँ तीर्थ्यात्री जाते हैं।
==इतिहास==
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==इतिहास==
मिर्ज़ापुर की स्थापना संभवतः 17वीं शताब्दी में हुई थी। 1800 तक यह उत्तर भारत का विशालतम व्यापार केंद्र बन गया था। जब 1864 में [[इलाहाबाद]] रेल लाइन की शुरुआत हुई, तो मिर्ज़ापुर का पतन होने लगा, लेकिन स्थानीय व्यापार में इसका महत्त्व बढ़ता रहा।
मिर्ज़ापुर की स्थापना संभवतः 17वीं शताब्दी में हुई थी। 1800 तक यह उत्तर भारत का विशालतम व्यापार केंद्र बन गया था। जब 1864 में [[इलाहाबाद]] रेल लाइन की शुरुआत हुई, तो मिर्ज़ापुर का पतन होने लगा, लेकिन स्थानीय व्यापार में इसका महत्त्व बढ़ता रहा।
मिर्जापुर क्षेत्र में सोन नदी के तट पर लिखुनिया, भलदरिया, लोहरी इत्यादि सौ से अधिक पाषाणकालीन चित्रों से युक्त गुफ़ाएँ तथा शिलाश्रय प्राप्त हुए हैं। ये चित्र लगभग 5000 ई.पू. के माने जाते हैं। यहाँ शिकार के सर्वाधिक चित्र बने हुए हैं। जलती हुई मशाल से बाघ का सामना करता हुआ मानव लोहरी गुफ़ा में चित्रित किया गया है। लिखुनिया गुफ़ा में कुछ घुड़सवार पालतू हथिनी की सहायता से एक जंगली [[हाथी]] को पकड़ते हुए चित्रित हैं। इन घुड़सवारों के हाथों में लम्बे-लम्बे भाले चित्रित किए गए हैं। यहाँ पर मृत्यु के कष्ट से कराहता हुआ ऊपर की ओर मुँह किए हुए सूअर, जिसकी पीठ पर नुकीला तीरनुमा हथियार घुसा हुआ है, स्वाभाविक रुप से चित्रित किया गया है।
==कृषि और उद्योग==
==कृषि और उद्योग==
अधिकांश भूमि नहर द्वारा सिंचत है तथा यहाँ चावल, जौ और गेहूं की खेती होती है। यह व्यापार का एक बड़ा केन्द्र है। विशेषकर कपास और लाख का, यह अच्छे कालीनों, कम्बलों तथा रेशमी कपड़ों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ पर ताँबे, काँसे तथा अन्य धातु के बर्तन भी बनाए जाते हैं। प्रमुख रेल लाइन और सड़क जंक्शन पर स्थित यह स्थान औद्योगिक केंद्र भी है, जहाँ कपास मिल, बलुआ पत्थर की कटाई और पीतल के बर्तन व क़ालीन निर्माण उद्योग स्थित हैं।  
अधिकांश भूमि नहर द्वारा सिंचत है तथा यहाँ [[चावल]], जौ और [[गेहूँ]] की खेती होती है। यह व्यापार का एक बड़ा केन्द्र है। विशेषकर कपास और लाख का, यह अच्छे कालीनों, कम्बलों तथा रेशमी कपड़ों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ पर ताँबे, काँसे तथा अन्य धातु के बर्तन भी बनाए जाते हैं। प्रमुख रेल लाइन और सड़क जंक्शन पर स्थित यह स्थान औद्योगिक केंद्र भी है, जहाँ कपास मिल, बलुआ पत्थर की कटाई और पीतल के बर्तन व क़ालीन निर्माण उद्योग स्थित हैं।  
==परिवहन==
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मिर्जापुर रेलमार्ग द्वारा भारत के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। कुछ महत्त्वपूर्ण ट्रेनें जैसे कालका मेल, पुरूषोतम एक्सप्रेस, मगध एक्सप्रेस, गंगा ताप्‍ती, त्रिवेणी, महानगरी एक्सप्रेस, हावड़-मुम्बई आदि द्वारा यहाँ पहुँचा जा सकता है।
मिर्जापुर रेलमार्ग द्वारा भारत के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। कुछ महत्त्वपूर्ण ट्रेनें जैसे कालका मेल, पुरुषोतम एक्सप्रेस, मगध एक्सप्रेस, गंगा ताप्‍ती, त्रिवेणी, महानगरी एक्सप्रेस, हावड़-मुम्बई आदि द्वारा यहाँ पहुँचा जा सकता है।


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==पर्यटन==
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;<u>तारकेश्‍वर महादेव</u>
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विन्ध्याचल के पूर्व में स्थित तारकेश्‍वर महादेव का जिक्र [[पुराण]] में भी किया गया है। मंदिर के समीप एक कुण्ड स्थित है। माना जाता है कि तराक नामक असुर ने मंदिर के समीप एक कुण्ड खोदा था। भगवान [[शिव]] ने ही तराक का वध किया था। इसलिए उन्हें तारकेश्‍वर महादेव भी कहा जाता है।  
विन्ध्याचल के पूर्व में स्थित तारकेश्‍वर महादेव का ज़िक्र [[पुराण]] में भी किया गया है। मंदिर के समीप एक कुण्ड स्थित है। माना जाता है कि तराक नामक असुर ने मंदिर के समीप एक कुण्ड खोदा था। भगवान [[शिव]] ने ही तराक का वध किया था। इसलिए उन्हें तारकेश्‍वर महादेव भी कहा जाता है।  


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11:23, 14 जून 2014 के समय का अवतरण

मिर्ज़ापुर घाट
Mirzapur Ghat

मिर्ज़ापुर शहर, दक्षिण-पूर्व उत्तर प्रदेश राज्य, उत्तर-मध्य भारत, वाराणसी (पहले बनारस) के दक्षिण-पश्चिम में गंगा नदी के तट पर विन्ध्याचल की कैमूर पर्वत श्रेणियों में स्थित है। इसके आसपास के क्षेत्र में उत्तर में गंगा के कछारी मैदान का हिस्सा और दक्षिण में विंध्य पर्वतश्रेणी की कुछ पहाड़ियाँ हैं। यह क्षेत्र सोन नदी द्वारा अपवाहित होता है। इसकी सहायक धारा रिहंद पर बांध बनाया गया है, जिससे विशाल जलाशय का निर्माण हो गया है और इसमें जलविद्युत उत्पादन भी होता हैं। यहाँ नदी तट पर कई मंदिर और घाट हैं। विंध्याचल में काली का प्राचीन मंदिर है, जहाँ तीर्थ्यात्री जाते हैं।

इतिहास

मिर्ज़ापुर की स्थापना संभवतः 17वीं शताब्दी में हुई थी। 1800 तक यह उत्तर भारत का विशालतम व्यापार केंद्र बन गया था। जब 1864 में इलाहाबाद रेल लाइन की शुरुआत हुई, तो मिर्ज़ापुर का पतन होने लगा, लेकिन स्थानीय व्यापार में इसका महत्त्व बढ़ता रहा।

मिर्जापुर क्षेत्र में सोन नदी के तट पर लिखुनिया, भलदरिया, लोहरी इत्यादि सौ से अधिक पाषाणकालीन चित्रों से युक्त गुफ़ाएँ तथा शिलाश्रय प्राप्त हुए हैं। ये चित्र लगभग 5000 ई.पू. के माने जाते हैं। यहाँ शिकार के सर्वाधिक चित्र बने हुए हैं। जलती हुई मशाल से बाघ का सामना करता हुआ मानव लोहरी गुफ़ा में चित्रित किया गया है। लिखुनिया गुफ़ा में कुछ घुड़सवार पालतू हथिनी की सहायता से एक जंगली हाथी को पकड़ते हुए चित्रित हैं। इन घुड़सवारों के हाथों में लम्बे-लम्बे भाले चित्रित किए गए हैं। यहाँ पर मृत्यु के कष्ट से कराहता हुआ ऊपर की ओर मुँह किए हुए सूअर, जिसकी पीठ पर नुकीला तीरनुमा हथियार घुसा हुआ है, स्वाभाविक रुप से चित्रित किया गया है।

कृषि और उद्योग

अधिकांश भूमि नहर द्वारा सिंचत है तथा यहाँ चावल, जौ और गेहूँ की खेती होती है। यह व्यापार का एक बड़ा केन्द्र है। विशेषकर कपास और लाख का, यह अच्छे कालीनों, कम्बलों तथा रेशमी कपड़ों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ पर ताँबे, काँसे तथा अन्य धातु के बर्तन भी बनाए जाते हैं। प्रमुख रेल लाइन और सड़क जंक्शन पर स्थित यह स्थान औद्योगिक केंद्र भी है, जहाँ कपास मिल, बलुआ पत्थर की कटाई और पीतल के बर्तन व क़ालीन निर्माण उद्योग स्थित हैं।

परिवहन

वायु मार्ग

सबसे निकटतम हवाई अड्डा बाबतपुर (वाराणसी) है। वाराणसी से मिर्जापुर 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दिल्ली, आगरा, मुम्बई, लखनऊ और काठमांडू आदि से वायुमार्ग द्वारा मिर्जापुर पहुँचा जा सकता है।

रेल मार्ग

मिर्जापुर रेलमार्ग द्वारा भारत के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। कुछ महत्त्वपूर्ण ट्रेनें जैसे कालका मेल, पुरुषोतम एक्सप्रेस, मगध एक्सप्रेस, गंगा ताप्‍ती, त्रिवेणी, महानगरी एक्सप्रेस, हावड़-मुम्बई आदि द्वारा यहाँ पहुँचा जा सकता है।

सड़क मार्ग

मिर्जापुर सड़कमार्ग द्वारा भारत के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। लखनऊ, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, दिल्ली और कलकत्ता आदि जगह से सड़कमार्ग द्वारा पहुँचा जा सकता हैं।

पर्यटन

तारकेश्‍वर महादेव

विन्ध्याचल के पूर्व में स्थित तारकेश्‍वर महादेव का ज़िक्र पुराण में भी किया गया है। मंदिर के समीप एक कुण्ड स्थित है। माना जाता है कि तराक नामक असुर ने मंदिर के समीप एक कुण्ड खोदा था। भगवान शिव ने ही तराक का वध किया था। इसलिए उन्हें तारकेश्‍वर महादेव भी कहा जाता है।

महा त्रिकोण

कहा जाता है कि महा त्रिकोण की परिक्रमा करने से भक्तों की इच्छा पूरी होती है। मंदिर स्थित विन्ध्यावशनी देवी के दर्शन करने के पश्चात् भक्त संकट मोचन मंदिर जाते हैं। इस मंदिर को कालीखोह के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर विन्ध्याचल रेलवे स्टेशन के दक्षिण दिशा की ओर स्थित है।

शिवपुर

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्री राम चन्द्र ने अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध विन्ध्याचल क्षेत्र में ही किया था। माना जाता है कि भगवान श्री राम भगवान शिव के उपासक थे। इस जगह पर भगवान राम ने पश्चिम दिशा की ओर भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित की थी।

सीता कुंड

अष्टभुजा मंदिर के पश्चिम दिशा की ओर सीता जी ने एक कुंड खुदवाया था। उस समय से इस जगह को सीता कुंड के नाम से जाना जाता है। कुंड के समीप ही सीता जी ने भगवान शिव की स्थापना की थी। जिस कारण यह स्थान सीतेश्‍वर के नाम से प्रसिद्ध हो गया। सीता कुंड के पश्चिम दिशा की तरफ भगवान श्री राम चंद्र ने एक कुंड खोदा था। जिसे राम कुण्ड के नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त शिवपुर स्थित लक्ष्मण जी ने रामेश्वर लिंग के समीप शिवलिंग की स्थापना की थी, जो कि लक्ष्मणेश्‍वर के नाम से प्रसिद्ध है।

जनसंख्या

2001 की जनगणना के अनुसार मिर्ज़ापुर शहर की जनसंख्या 2,05,264 है। मिर्ज़ापुर ज़िले की कुल जनसंख्या 21,14,852 है।


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