"विप्रमतीसी (रमैनी)": अवतरणों में अंतर
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विप्रमतीसी [[रमैनी]] [[ बीजक|कबीर बीजक]] में इस तरह की एक मात्र रचना मिलती है। इसमें [[चौपाई|चौपाइयों]] की तीस अर्धालियाँ हैं और अन्त में एक [[साखी]] है। इसे 'विप्रमति तीसी' का बिगड़ा रूप माना जा सकता है। इसका अर्थ है 'विप्रो की मति का विवेचन करने वाली तीस पंक्तियाँ'<ref> 'कबीर मीमांसा' रामचन्द्र तिवारी, पृष्ठ 149</ref> यह वास्तव में कोई काव्यरूप नहीं है। लगता है सन्तों ने इस व्यंग्य काव्यरूप का स्वयं प्रवर्त्तन किया है।<ref>{{cite book | last =शर्मा | first =रामकिशोर| title =कबीर ग्रन्थावली| edition = | publisher = | location =भारत डिस्कवरी पुस्तकालय| language =हिंदी| pages =100| chapter =}}</ref> | विप्रमतीसी [[रमैनी]] [[ बीजक|कबीर बीजक]] में इस तरह की एक मात्र रचना मिलती है। इसमें [[चौपाई|चौपाइयों]] की तीस अर्धालियाँ हैं और अन्त में एक [[साखी]] है। इसे 'विप्रमति तीसी' का बिगड़ा रूप माना जा सकता है। इसका अर्थ है 'विप्रो की मति का विवेचन करने वाली तीस पंक्तियाँ'<ref> 'कबीर मीमांसा' रामचन्द्र तिवारी, पृष्ठ 149</ref> यह वास्तव में कोई काव्यरूप नहीं है। लगता है सन्तों ने इस व्यंग्य काव्यरूप का स्वयं प्रवर्त्तन किया है।<ref>{{cite book | last =शर्मा | first =रामकिशोर| title =कबीर ग्रन्थावली| edition = | publisher = | location =भारत डिस्कवरी पुस्तकालय| language =हिंदी| pages =100| chapter =}}</ref> | ||
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09:36, 4 अगस्त 2014 के समय का अवतरण
विप्रमतीसी रमैनी कबीर बीजक में इस तरह की एक मात्र रचना मिलती है। इसमें चौपाइयों की तीस अर्धालियाँ हैं और अन्त में एक साखी है। इसे 'विप्रमति तीसी' का बिगड़ा रूप माना जा सकता है। इसका अर्थ है 'विप्रो की मति का विवेचन करने वाली तीस पंक्तियाँ'[1] यह वास्तव में कोई काव्यरूप नहीं है। लगता है सन्तों ने इस व्यंग्य काव्यरूप का स्वयं प्रवर्त्तन किया है।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख