"महेश्वर (मध्य प्रदेश)": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
(महेश्वर को अनुप्रेषित (रिडायरेक्ट))
 
(इसी सदस्य द्वारा किए गए बीच के 6 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{सूचना बक्सा पर्यटन
#REDIRECT [[महेश्वर]]
|चित्र=Maheshwar-Fort.jpg
|चित्र का नाम=महेश्वर का क़िला
|विवरण='महेश्वर' [[मध्य प्रदेश|मध्य प्रदेश राज्य]] में स्थित एक ऐतिहासिक नगर तथा प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यह नगर अपनी [[महेश्वरी साड़ी|महेश्वरी साड़ियों]] के लिए पुराने समय से ही प्रसिद्ध रहा है।
|राज्य=[[मध्य प्रदेश]]
|केन्द्र शासित प्रदेश=
|ज़िला=[[खरगौन ज़िला|खरगौन]]
|निर्माता=
|स्वामित्व=
|प्रबंधक=
|निर्माण काल=
|स्थापना=
|भौगोलिक स्थिति=[[इंदौर]] से 91 किलोमीटर की दूरी पर स्थित।
|मार्ग स्थिति=
|मौसम=
|तापमान=
|प्रसिद्धि=मंदिर, ऐतिहासिक इमारतें तथा [[महेश्वरी साड़ी|महेश्वरी साड़ियाँ]]
|कब जाएँ=[[जुलाई]] से [[मार्च]]
|कैसे पहुँचें=
|हवाई अड्डा=[[इंदौर]]
|रेलवे स्टेशन=बड़वाह
|बस अड्डा=बड़वाह
|यातायात=
|क्या देखें='महेश्वर क़िला', 'कालेश्वर मंदिर', 'राजराजेश्वर मंदिर', 'विट्ठलेश्वर मंदिर', 'अहिल्येश्वर मंदिर', 'वांचू पॉइन्ट' तथा घाट आदि।
|कहाँ ठहरें=गेस्ट हाउस, रेस्ट हाउस तथा धर्मशालाएं
|क्या खायें=
|क्या ख़रीदें=
|एस.टी.डी. कोड=07283
|ए.टी.एम=
|सावधानी=
|मानचित्र लिंक=
|संबंधित लेख=
|शीर्षक 1=वाहन पंजिकरण संख्या
|पाठ 1=MP-10
|शीर्षक 2=विशेष
|पाठ 2=देवी अहिल्याबाई ने [[हैदराबाद]] से बुनकरों को आमंत्रित करके महेश्वर में बसाया था। यहाँ की [[महेश्वरी साड़ी|महेश्वरी साड़ियाँ]] अपनी सुंदरता और आकर्षित कर लेने वाले शिल्प से दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं।
|अन्य जानकारी=महेश्वर क़िले के अंदर [[अहिल्याबाई होल्कर|अहिल्याबाई]] का [[पूजा]] स्थल है, जहाँ पर अनेकों [[धातु]] के तथा पत्थर के अलग-अलग आकार के [[शिवलिंग]], कई सारे देवी-देवताओं की प्रतिमाएं और एक सोने का बड़ा-सा झुला है, जो यहाँ का मुख्य आकर्षण है।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}
 
'''महेश्वर''' [[मध्य प्रदेश]] के [[खरगौन ज़िला|खरगौन ज़िले]] में स्थित एक शानदार शहर है। यह [[नर्मदा नदी]] के किनारे पर बसा है। प्राचीन समय में यह शहर [[होल्कर वंश|होल्कर]] राज्य की राजधानी था। महेश्वर धार्मिक महत्त्व का शहर है तथा [[वर्ष]] भर लोग यहाँ घूमने आते रहते हैं। यह शहर अपनी '[[महेश्वरी साड़ी|महेश्वरी साड़ियों]]' के लिए भी विशेषतौर पर प्रसिद्ध रहा है। महेश्वर को 'महिष्मति' नाम से भी जाना जाता है। महेश्वर का [[हिन्दू]] धार्मिक ग्रंथों '[[रामायण]]' तथा '[[महाभारत]]' में भी उल्लेख मिलता है। [[अहिल्याबाई होल्कर|देवी अहिल्याबाई होल्कर]] के कालखंड में बनाये गए यहाँ के घाट बहुत सुन्दर हैं और इनका प्रतिबिम्ब नर्मदा नदी के [[जल]] में बहुत ख़ूबसूरत दिखाई देता है। महेश्वर [[इंदौर]] से सबसे नजदीक है।
==स्थिति तथा नामकरण==
महेश्वर शहर [[मध्य प्रदेश]] के खरगौन ज़िले में स्थित है। यह [[राष्ट्रीय राजमार्ग 3|राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 3]] ([[आगरा]]-[[मुंबई]] राजमार्ग) से पूर्व में तेरह किलोमीटर अन्दर की ओर बसा हुआ है तथा मध्य प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी [[इंदौर]] से 91 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह नगर [[नर्मदा नदी]] के उत्तरी तट पर स्थित है। शहर आज़ादी से पहले [[होल्कर वंश]] के [[मराठा]] शासकों के इंदौर राज्य की राजधानी था। इस शहर का नाम 'महेश्वर' भगवान [[शिव]] के ही एक अन्य नाम 'महेश' के आधार पर पड़ा है। अतः महेश्वर का शाब्दिक अर्थ है- "भगवान शिव का घर"।<ref name="aa">{{cite web |url= http://www.ghumakkar.com/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0-%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%81-%E0%A4%A8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%A6%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A8/|title=महेश्वर-एक दिन देवी अहिल्या के नगरी में:भाग-1|accessmonthday= 31 अगस्त|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= घुमक्कड़|language= हिन्दी}}</ref>
==इतिहास==
महेश्वर [[इतिहास]] प्रसिद्ध नगरों में से एक रहा है। निमाड़ एवं महेश्वर का इतिहास लगभग 4500 वर्ष पुराना है। रामायण काल में महेश्वर को '[[माहिष्मती]]' के नाम से जाना जाता था। उस समय 'महिष्मति' [[हैहय वंश]] के बलशाली शासक सहस्रार्जुन की राजधानी हुआ करता था, जिसने बलशाली [[लंका]] के राजा [[रावण]] को भी परास्त किया था। [[महाभारत]] काल में यह शहर अनूप जनपद की राजधानी बनाया गया था। सहस्रार्जुन द्वारा [[जमदग्नि|ऋषि जमदग्नि]] को प्रताड़ित करने के कारण उनके पुत्र भगवान [[परशुराम]] ने सहस्त्रार्जुन का वध किया था। कालांतर में यह शहर होल्कर वंश की महान महारानी देवीअहिल्या बाई की राजधानी रहा।
====प्राचीन माहिष्मति====
{{main|माहिष्मती}}
महेश्वर को प्राचीन समय में '[[माहिष्मती]]' कहा जाता था। तब माहिष्मति [[चेदि जनपद]] की राजधानी<ref>[[पाली]] 'माहिस्सती'</ref> हुआ करती थी, जो [[नर्मदा नदी]] के तट पर स्थित थी। [[महाभारत]] के समय यहाँ राजा नील का राज्य था, जिसे [[सहदेव]] ने युद्ध में परास्त किया था<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=742|url=}}</ref>-
 
<blockquote>'ततो रत्नान्युपादाय पुरीं माहिष्मतीं ययौ। तत्र नीलेन राज्ञा स चक्रे युद्धं नरर्षभ:।'<ref>[[महाभारत]], [[सभापर्व महाभारत|सभापर्व]] 32,21</ref></blockquote>
 
राजा नील महाभारत के युद्ध में [[कौरव|कौरवों]] की ओर से लड़ता हुआ मारा गया था। [[बौद्ध साहित्य]] में माहिष्मति को दक्षिण [[अवंति|अवंति जनपद]] का मुख्य नगर बताया गया है। बुद्ध काल में यह नगरी समृद्धिशाली थी तथा व्यापारिक केंद्र के रूप में विख्यात थी। तत्पश्चात [[उज्जयिनी]] की प्रतिष्ठा बढ़ने के साथ-साथ इस नगरी का गौरव कम होता गया। फिर भी [[गुप्त काल]] में 5वीं शती तक माहिष्मति का बराबर उल्लेंख मिलता है। [[कालिदास]] ने '[[रघुवंश महाकाव्य|रघुवंश]]' में [[इंदुमती]] के [[स्वयंवर]] के प्रसंग में नर्मदा तट पर स्थित माहिष्मति का वर्णन किया है और यहाँ के राजा का नाम 'प्रतीप' बताया है-
 
<blockquote>'अस्यांकलक्ष्मीभवदीर्घबाहो माहिष्मतीवप्रनितंबकांचीम् प्रासाद-जालैर्जलवेणि रम्यां रेवा यदि प्रेक्षितुमस्तिकाम:।'<ref>रघुवंश 6,43</ref></blockquote>
====धार्मिक महत्त्व====
महेश्वर [[हिन्दू धर्म]] के लोगों के लिए किसी धार्मिक स्थल से कम नहीं है। अपने धार्मिक महत्त्व में यह शहर [[काशी]] के सामान भगवान शिव की प्रिय नगरी है। मंदिरों और शिवालयों की निर्माण श्रंखला के लिए इसे '''गुप्त काशी''' कहा गया है। अपने पौराणिक महत्त्व में [[स्कंदपुराण]], रेवाखंड तथा [[वायुपुराण]] आदि के नर्मदा रहस्य में इसका 'महिष्मति' नाम से उल्लेख मिलता है।
==पर्यटन स्थल==
[[अहिल्याबाई होल्कर|अहिल्याबाई]] का क़िला एवं राजगद्दी, राजराजेश्वर मन्दिर, नर्मदा के सुरम्य घाट तथा सहस्त्रधारा महेश्वर के मुख्य आकर्षण हैं, जो इसे एक दर्शनीय स्थल बनाते हैं। महेश्वर के क़िले के अन्दर रानी अहिल्याबाई की राजगद्दी पर बैठी एक मनोहारी प्रतिमा राखी गई है। महेश्वर में घाट के पास ही कालेश्वर, राजराजेश्वर, विट्ठलेश्वर, और अहिल्येश्वर मंदिर हैं. मण्डलेश्वर के निकट 'वांचू पॉइन्ट' नामक स्थान है, जहाँ [[इन्दौर]] शहर में नर्मदा के [[जल]] की आपूर्ति करने वाला केन्द्र है। [[नर्मदा नदी]] का जल विद्युत पंपों द्वारा वांचू पॉइन्ट तक खींचा जाता है। यहाँ से यह जल [[गुरुत्व]] के कारण इन्दौर तक प्रवाहित होता है।
====अहिल्या घाट====
{{Main|अहिल्या घाट}}
[[चित्र:Ahilyabai-Holkar-Stamp.jpg|thumb|180px|[[अहिल्याबाई होल्कर]] के सम्मान में जारी [[डाक टिकट]]]]
अहिल्या घाट महेश्वर के ख़ूबसूरत घाटों में से एक है। यह इतना सुन्दर है कि बस घंटों निहारते रहने का मन करता है। चारों ओर शिव जी के छोटे और बड़े मंदिर, हर जगह [[शिवलिंग]] ही शिवलिंग दिखाई देते हैं। सामने [[नर्मदा नदी]] अपने पूरे तीव्र वेग से प्रवाहित होती दिखाई देती हैं। घाट के आस पास शिव मंदिर दिखाई देते हैं और पीछे की ओर महेश्वर का ऐतिहासिक तथा ख़ूबसूरत क़िला [[होल्कर राजवंश]] तथा [[अहिल्याबाई होल्कर|रानी अहिल्याबाई]] के शासन काल की गौरवगाथा का बखान करता प्रतीत होता है। यह घाट पूरी तरह से शिवमय दिखाई देता है। पूरे घाट पर पाषाण के अनगिनत शिवलिंग निर्मित हैं। महेश्वर की महारानी देवी अहिल्याबाई से बढ़कर शिवभक्त [[आधुनिक काल]] में कोई नहीं हुआ है।<ref name="aa"/> उन्होंने पूरे [[भारत]] में शिव मंदिरों और घाटों का निर्माण तथा पुनरोद्धार करवाया था, जिनमें प्रमुख हैं-
#[[वाराणसी]] का [[विश्वनाथ मंदिर|काशी विश्वनाथ मंदिर]]
#[[एलोरा]] का [[घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग]]
#[[सोमनाथ]] का प्राचीन मंदिर
#[[महाराष्ट्र]] का [[वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग|वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर]]
 
====क़िला====
महेश्वर का क़िला आज भी पूरी तरह से सुरक्षित है तथा बहुत ही सुन्दर तरीके से बनाया गया है। यह बड़ी मजबूती के साथ [[नर्मदा नदी]] के किनारे पर सदियों से डटा हुआ है। क़िले में प्रवेश के लिए घाट के पास से ही एक चौड़ा घेरा लिए बहुत सारी सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। यह क़िला जितना सुन्दर बाहर से है, उससे भी ज्यादा सुन्दर तथा आकर्षक यह अन्दर से लगता है। इतनी सुन्दर कारीगरी, इतनी सुन्दर शिल्पकारी, इतना सुन्दर एवं मजबूत निर्माण की आज भी यह क़िला नया जैसा लगता है। अन्दर जाकर एक तरफ़ राजराजेश्वर शिव मंदिर है तथा दूसरी तरफ़ एक अन्य स्मारक है। कुल मिलाकर एक बड़ा ही सुन्दर दृश्य उपस्थित होता है और कहीं जाने का मन ही नहीं होता। ऐसा लगता है की घंटों एक ही जगह खड़े होकर इस क़िले की नक्काशी तथा कारीगरी, झरोखों, दरवाज़ों एवं दीवारों को बस देखते ही रहें। क़िले के अन्दर कुछ क़दमों की दूरी पर ही प्राचीन राजराजेश्वर शैव मंदिर दिखाई देता है। यह एक विशाल शिव मंदिर है, जिसका निर्माण क़िले के अन्दर ही [[अहिल्याबाई होल्कर]] ने करवाया था। यह मंदिर भी क़िले की ही तरह पूर्णतः सुरक्षित है एवं कहीं से भी खंडित नहीं हुआ है।[[चित्र:View-Of-Maheswar-Fort.jpg|thumb|300px|left|महेश्वर क़िले का एक दृश्य]] आज भी यहाँ दोनों समय साफ़-सफाई, [[पूजा]]-पाठ तथा जल अभिषेक वगैरह अनवरत जारी है। देवी अहिल्याबाई इसी मंदिर में रोजाना सुबह-शाम पूजा-पाठ किया करती थीं।<ref name="bb">{{cite web |url= http://www.ghumakkar.com/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A8-%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A5%80-%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D/|title=महेश्वर-नर्मदा का हर कंकर है शंकर, नमामि देवी नर्मदे, भाग-2|accessmonthday= 31 अगस्त|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= घुमक्कड़|language= हिन्दी}}</ref>
 
क़िले के अन्दर प्रवेश के बाद राजराजेश्वर मंदिर एवं रेवा सोसाइटी के बाद आता है एक बड़ा हॉल, जहाँ एक ओर देवी अहिल्याबाई का राज दरबार है तथा उनकी राजगद्दी है, जिस पर उनकी सुन्दर प्रतिमा रखी गई है। यह दृश्य इतना सजीव लगता है कि ऐसा प्रतीत होता है कि देवी अहिल्याबाई सचमुच अपनी राजगद्दी पर बैठकर आज भी महेश्वर का शासन चला रही हैं। आज भी यह स्थान सजीव राज दरबार की तरह लगता है। हॉल में दूसरी ओर [[होल्कर वंश]] के शासकों के द्वारा उपयोग में लाये गए अस्त्र शस्त्रों की एक छोटी सी प्रदर्शनी लगी है। यहीं पर एक सुन्दर सी पालकी भी रखी है, जिसमें बैठकर देवी अहिल्याबाई नगर भ्रमण के लिए जाती थीं। इन सब चीजों को देखने से ऐसा लगता है, जैसे हम सचमुच ढाई सौ साल पुराने देवी अहिल्या के शासन काल में विचरण कर रहे हैं। क़िले में स्थित एक छोटे से मंदिर से आज भी [[दशहरा|दशहरे]] के उत्सव की शुरुआत की जाती है, जैसे वर्षों पहले यहाँ होल्कर शासन काल में हुआ करता था। क़िले से ढलवां रास्ते से निचे जाते ही शहर बसा हुआ है।
==अन्य आकर्षण==
लम्बा चौड़ा [[नर्मदा नदी]] का तट एवं उस पर बने अनेकों सुन्दर घाट एवं पाषाण कला का सुन्दर चित्र दिखाने वाला क़िला, इस शहर का प्रमुख पर्यटन आकर्षण है। समय-समय पर इस शहर की गोद में मनाये जाने वाले तीज-त्यौहार, उत्सव, पर्व इस शहर की रंगत में चार चाँद लगा देते हैं, जिनमें '[[शिवरात्रि]] पर होने वाला [[स्नान]], निमाड़ उत्सव, लोकपर्व [[गणगौर]], [[नवरात्र]], गंगादाष्मी, नर्मदा जयंती, अहिल्या जयंती एवं [[श्रावण|श्रावण माह]] के अंतिम [[सोमवार]] को भगवान काशी विश्वनाथ के नगर भ्रमण की शाही सवारी प्रमुख हैं। यहाँ के पेशवा घाट, फणसे घाट और अहिल्या घाट प्रसिद्द हैं, जहाँ तीर्थयात्री शांति से बैठकर [[ध्यान]] में डूब सकते हैं। नर्मदा नदी के बालुई किनारे पर बैठकर यात्री यहाँ के ठेठ ग्रामीण जीवन के दर्शन कर सकते हैं। [[पीतल]] के बर्तनों में पानी ले जाती महिलायें, एक किनारे से दूसरे किनारे पर सामान ले जाते पुरुष एवं किल्लोल करता बालकों का बचपन आकर्षित करता है।
====देवी अहिल्या का पूजास्थल====
[[चित्र:Ahilyabai-Holkar-1.jpg|thumb|220px|[[अहिल्याबाई होल्कर]] का पूजास्थल]]
महेश्वर के मंदिर दर्शनीय हैं। हर मंदिर के छज्जे, अहाते में सुन्दर नक्काशी की गई है। कालेश्वर, राजराजेश्वर, विट्ठलेश्वर और अहिल्येश्वर मंदिर विशेष रूप से दर्शनीय हैं। क़िले के अंदर देवी अहिल्या का पूजा स्थल है, जहाँ पर अनेकों [[धातु]] के तथा पत्थर के अलग-अलग आकार के [[शिवलिंग]], कई सारे देवी-देवताओं की प्रतिमाएं और एक सोने का बड़ा-सा झुला है, जो यहाँ का मुख्य आकर्षण है, जिस पर भगवान [[कृष्ण]] को बैठाकर [[अहिल्याबाई होल्कर]] झुला दिया करती थीं। इन सारी प्रतिमाओं तथा शिवलिंगों को एक कक्ष में संगृहीत करके रखा गया है। इस कक्ष में प्रवेश पूर्णतः निषेध है तथा इस छोटे कक्ष के लिए एक सुरक्षाकर्मी हमेशा तैनात रहता है, क्योंकि यहाँ कई मूल्यवान धातुओं की प्रतिमाएं रखी गई हैं।
====होटल अहिल्या फोर्ट====
देवी अहिल्याबाई के पूजा घर से कुछ कदमों की दुरी पर ही एक लकड़ी का द्वार स्थित है, जिसके अन्दर एक आलिशान महल है, जो कभी होल्कर राजवंश के शासकों का निजी आवास हुआ करता था। लेकिन आजकल इस महल को एक हेरिटेज होटल का रूप दे दिया गया है और इस होटल में एक अच्छे तीन सितारा होटल के समकक्ष सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। लगभग छः हज़ार से सात हज़ार प्रतिदीन के हिसाब से भुगतान करके यहाँ रहा जा सकता है। इस होटल का नाम है- 'होटल अहिल्या फोर्ट'। यह होटल क़िले की सबसे ऊपरी इमारत पर स्थित है और इस होटल के मालिक हैं 'प्रिन्स रिचर्ड होल्कर' तथा वे ही इस होटल की देखरेख तथा प्रबंधन का काम देखते हैं।<ref name="cc">{{cite web |url= http://www.ghumakkar.com/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A8-%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A5%80-%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D-2/|title= महेश्वर किला-पत्थर की दीवारों में कैद यादें, भाग-3|accessmonthday=31 अगस्त|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= घुमक्कड़|language= हिन्दी}}</ref>
==अहिल्याबाई की स्मृतियाँ==
[[इंदौर]] के बाद देवी अहिल्याबाई ने महेश्वर को ही अपनी स्थाई राजधानी बना लिया था तथा बाकी का जीवन उन्होंने, अपने अंत समय तक यहाँ महेश्वर में ही बिताया। मां नर्मदा का किनारा, किनारे पर सुन्दर घाट, घाट पर कई सारे शिवालय, घाट पर बने अनगिनत [[शिवलिंग]], घाट से ही लगा उनका सुन्दर क़िला, क़िले के अन्दर उनका निजी निवास स्थान, यही सब देवी अहिल्या को सुकून देता था और उनका मन यहीं रमता था। शायद इसीलिए इंदौर छोड़कर वे हमेशा के लिए यहीं महेश्वर में आकर रहने लगी थीं एवं महेश्वर को ही अपनी आधिकारिक राजधानी बना लिया था। यहाँ के लोग आज भी देवी अहिल्याबाई को "मां साहेब" कह कर सम्मान देते हैं। महेश्वर के घाटों में, बाजारों में, मंदिरों में, गलियों में, यहाँ की वादियों में यहाँ की फिजाओं में, हर तरफ देवी अहिल्याबाई की स्मृतियों की बयारें चलती हैं। आज भी महेश्वर की वादियों में देवी अहिल्याबाई अमर हैं।<ref name="bb"/>
 
मां नर्मदा सदियों से एक मूक दर्शक की तरह अपने इसी घाट से देवी अहिल्याबाई की [[भक्ति]], उनकी शक्ति, उनका गौरव, उनका वैभव, उनका साम्राज्य, उनका न्याय अपलक देखती आई हैं और आज भी मां रेवा का पवित्र जल देवी अहिल्याबाई की भक्ति का साक्षी है और मां रेवा की लहरें जैसे देवी अहिल्या का गौरव गान करती प्रतीत होती हैं।  'नमामि देवी नर्मदे….. नमामि देवी नर्मेदे……. नमामि देवी नर्मदे।'
==महेश्वरी साड़ियाँ==
{{main|महेश्वरी साड़ी}}
[[चित्र:Maheshwari-Saree-2.jpg|thumb|200px|[[महेश्वरी साड़ी|महेश्वरी साड़ियाँ]]]]
राजराजेश्वर मंदिर के बाद क़िले में और अन्दर जाने पर रेवा सोसाइटी<ref>महेश्वरी साड़ी के हस्तशिल्प के निर्माण तथा विपणन के लिए जिम्मेदार संस्था</ref> का ऑफिस तथा थोड़े अन्दर की ओर एक कार्यशाला स्थित है, जहाँ महेश्वरी हस्तशिल्प में पारंगत महिलाएं रेवा सोसाइटी के अधीन महेश्वरी साड़ियों तथा कपड़े का हाथकरघों की सहायता से निर्माण करती हैं। उल्लेखनीय है की यहाँ पर निर्मित [[महेश्वरी साड़ी|महेश्वरी साड़ियाँ]] देशभर में प्रसिद्ध हैं। देवी अहिल्याबाई की राजधानी बनने के बाद महेश्वर ने विकास के कई अध्याय देखे। एक छोटे से गाँव से इंदौर राज्य की राजधानी बनने के बाद अब महेश्वर को बड़ी तेजी से विकसित किया जा रहा था।
 
सामाजिक, धार्मिक भौतिक तथा सांस्कृतिक विकास के साथ ही साथ देवी अहिल्याबाई ने अपनी राजधानी को औद्योगिक रूप से समृद्ध करने के उद्देश्य से अपने यहाँ वस्त्र निर्माण प्रारंभ करने की योजना बनाई। उस समय पूरे देश में वस्त्र निर्माण तथा हथकरघा में हैदराबादी बुनकरों का कोई जवाब नहीं था। अतः देवी अहिल्याबाई ने [[हैदराबाद]] के बुनकरों को अपने यहाँ महेश्वर में आकर बसने के लिए आमंत्रित किया तथा अपना बुनकरी का पुश्तैनी कार्य यहीं महेश्वर में रहकर करने का आग्रह किया। अंततः देवी अहिल्या के प्रयासों से हैदराबाद से कुछ बुनकर महेश्वर आकर बस गए तथा यहीं अपना कपड़ा बुनने का कार्य करने लगे। इन बुनकरों के हाथ में जैसे जादू था, वे इतना सुन्दर कपड़ा बुनते थे की लोग दांतों तले उंगली दबा लेते थे।
[[चित्र:Maheshwari-Saree.jpg|thumb|200px|left|[[महेश्वरी साड़ी|महेश्वरी साड़ियाँ]]]]
इन बुनकरों को प्रोत्साहित करने के लिए देवी अहिल्याबाई इनके द्वारा निर्मित वस्त्रों का एक बड़ा हिस्सा स्वयं खरीद लेती थीं, जिससे इन बुनकरों को लगातार रोजगार मिलता रहता था। इस तरह ख़रीदे वस्त्र महारानी अहिल्याबाई स्वयं के लिए, अपने रिश्तेदारों के लिए तथा दूर-दूर से उन्हें मिलने आने वाले मेहमानों तथा आगंतुकों को भेंट देने में उपयोग करती थीं। इस तरह से कुछ ही वर्षों में महेश्वर में निर्मित इन वस्त्रों, खासकर महेश्वरी साड़ियों की ख्याति पुरे [[भारत]] में फैलने लगी, तथा अब [[महेश्वरी साड़ी]] अपने नाम से बहुत दूर-दूर तक मशहूर हो गई।<ref name="cc"/> रेवा सोसाइटी के अन्दर पर्यटकों के लिए प्रवेश निषेध है, लेकिन जाली की खिड़कियों से महिलाओं को महेश्वरी साड़ियाँ बुनते देखा जा सकता है। बड़ी ही अद्भुत कला है यह। महिलायें अपने काम में इतनी माहिर हैं कि उनका यह हस्त कौशल देखते ही बनता है।
==हिन्दी फ़िल्मों से सम्बंध==
महेश्वर का भारतीय [[हिन्दी]] फ़िल्म उद्योग से बहुत गहरा सम्बन्ध है। महेश्वर के घाट तथा [[नर्मदा नदी]] के तट की सुन्दरता को अब तक कई बार हिन्दी फ़िल्मों में दिखाया जा चूका है। यहाँ पर कुछ तमिल फ़िल्मों की तथा गानों की शूटिंग भी हो चुकी है।
 
*अभिनेता सचिन तथा साधना सिंह अभिनीत फ़िल्म 'तुलसी' पूरी की पूरी महेश्वर के घाटों तथा आसपास के परिवेश में फ़िल्माई गई थी। यह अपने समय की एक हिट फ़िल्म थी।
*फ़िल्म 'अशोका' में भी महेश्वर को फ़िल्माया गया है।
*[[1960]] की एक प्रसिद्ध पौराणिक फ़िल्म 'महाशिवरात्रि' की शूटिंग भी यहीं हुई थी तथा इस फ़िल्म में कई स्थानीय लोगों को भी अदाकारी का मौका दिया गया था।
*[[हेमा मालिनी]] द्वारा निर्मित ज़ी टीवी के सीरियल 'झांसी की रानी' की शूटिंग भी महेश्वर में ही हुई थी और हेमा मालिनी अपने सीरियल के लिए यहाँ से ढेर सारी महेश्वरी साड़ियाँ भी खरीद कर ले गई थीं।
*[[1985]] में बनी एक और पौराणिक फ़िल्म 'आदि शंकराचार्य' की भी पूरी शूटिंग यहीं संपन्न हुई थी।
*अभी हाल ही में [[2011]] में बनी [[धर्मेन्द्र]], सनी देओल और बॉबी देओल की सुपर हिट फ़िल्म 'यमला पगला दीवाना' की 50 मिनट की शूटिंग महेश्वर के विभिन्न स्थलों जैसे बाज़ार चौक, राजवाडा, अहिल्याबाई छतरी, अहिल्या घाट तथा अन्य स्थानों पर संपन्न की गई। यह महेश्वर का दुर्भाग्य ही रहा की फ़िल्म की लगभग आधी शूटिंग महेश्वर में हुई और करीब एक महीने तक फ़िल्म की पूरी टीम यहाँ होटल अहिल्या फोर्ट में रुकी, लेकिन फ़िल्म में इस जगह को '[[वाराणसी]]' के रूप में दिखाया गया है।<ref name="cc"/>
==जनसंख्या==
इस शहर की आबादी सन [[2001]] की जनगणना के अनुसार 19,649 है तथा नगर पंचायत इस शहर का रखरखाव करती है।<ref>{{cite web |url=http://khargone.nic.in/maheshwari_saries/City.htm |title=महेश्वर शहर|accessmonthday= 20 नवम्बर|accessyear= 2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref> यह एक तहसील मुख्यालय भी है। अनुविभाग मुख्यालय मण्डलेश्वर यहाँ से 10 कि.मी. की दूरी पर है, जहाँ पर [[खरगौन ज़िला|खरगौन ज़िले]] का न्यायिक मुख्यलय स्थित है। ये दोनों शहर एक प्रकार से जुड़वां शहरों जैसे ही हैं। मण्डलेश्वर में एक प्रमुख जल विद्युत परियोजना, नर्मदा नदी पर निर्माणाधीन है।
====कब जाएँ====
[[जुलाई]] से लेकर [[मार्च]] तक का समय महेश्वर पर्यटन के लिए उपयुक्त है। यहाँ ठहराने के लिए कई गेस्ट हाउस, रेस्ट हाउस तथा धर्मशालाएं हैं।
==कैसे पहुँचें==
'''वायु सेवा''' - महेश्वर के लिए निकटतम हवाईअड्डा [[इंदौर]] है, जो 91 किलोमीटर की दुरी पर है तथा [[मुंबई]], [[दिल्ली]], [[भोपाल]] तथा [[ग्वालियर]] से सीधी विमान सेवा से जुड़ा हुआ है।
 
'''रेल सेवा''' - महेश्वर के लिए बड़वाह (39 किलोमीटर) निकटतम रेलवे स्टेशन है। पश्चिमी रेलवे के बड़वाह, [[खंडवा]], [[इंदौर]] से भी यहाँ तक पहुंचा जा सकता है।
 
'''सड़क मार्ग''' - बड़वाह, खंडवा, इंदौर, [[धार]] और धामनोद से महेश्वर के लिए बस सेवा उपलब्ध है।
 
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
{{मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान}}{{मध्य प्रदेश के पर्यटन स्थल}}
[[Category:मध्य प्रदेश]][[Category:मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान]][[Category:मध्य प्रदेश के पर्यटन स्थल]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:पर्यटन कोश]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:ऐतिहासिक स्थल]]
__INDEX__
__NOTOC__

11:19, 1 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण

अनुप्रेषण का लक्ष्य: