"पाताल भुवनेश्‍वर गुफ़ा": अवतरणों में अंतर

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उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के प्रसिद्ध नगर अल्मोड़ा से शेराघाट होते हुए 160 किलोमीटर की दूरी तय कर गंगोलीहाट नामक स्थान पर पहुंचते है। रास्ते में दिखाई देती हैं धवल हिमालय पर्वत की नयनाभिराम नंदा देवी, पंचचूली, पिंडारी, ऊंटाधूरा आदि चोटियां। (दिल्ली से चल कर पहले दिन 350 कि.मी. की दूरी तय कर अल्मोड़ा पहुंच सकते हैं)। गगोलीहाट से अब केवल 8 कि.मी. की दूरी तय कर आप पहुंच जाते हैं भारत के प्राचीनतम ग्रन्थ स्कन्द पुराण में वर्णित पाताल भुवनेश्‍वर की गुफा के सामने।
 
कुमाऊ आँचल की पिथौरागढ़ क्षेत्र अपना एक अलग महत्व रखता है। जिला पिथौरागढ़ की तहसील को गुफाओं वाला देव कहा गया है। पिथौरागढ़ जनपद के गंगोलीहाट क्षेत्र में महाकाली मंदिर, चामुंडा मंदिर, गुफा मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।
 
चारों ओर वृक्षों से आच्छादित एक गुफा जो बाहर से किसी गांव के पुराने घर का 4 फुट लम्बा, डेढ़ फुट चौड़ा द्वार यानि एक बड़ी सूई में छोटा सा छेद मालूम होता है, उस द्वार के सामने पहुंच कर एकदम आप उस स्थान विशेष से प्रभावित नहीं होंगे। यही है सरयू नदी व रामगंगा नदी के मध्य गुपतड़ी नामक स्थान की ऐतिहासिक पाताल भुवनेश्‍वर गुफा। यहां तेतीस करोड़ देवी-देवताओं की मूर्तिया प्रतिष्ठित हैं।
 
प्राचीन काल से ही पाताल भुवनेश्‍वर प्रसिद्ध रहा है। गंगोलीहाट क्षेत्र में प्राचीन शिव पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर धरती के अंदर 8 से 10 फीट गहरी गुफा के अंदर बना हुआ है। जिसमें तरह-तरह की मूर्तियां विद्यमान हैं। यह स्थान सरयु राम गंगा के बीच बसा हुआ है। जिसका मुख उत्तर दिशा है। मैदान से उतरने तक 84 सीढिय़ाँ है। पाताल के प्रथम तल में शेषनाग हैं उसके ऊपर पूरी पृथ्वी टिकी हुई है। पाताल भुवनेश्वर गुफा का प्रवेश द्वार बहुत संकरा है, सीढियों द्वारा लगभग सरक कर नीचे उतरना पडता है। जिसमें एक बार में एक व्यक्ति ही बड़ी मुश्किल से नीचे उतर पाता है। लेकिन सीढियां उतरते ही बडे कमरे के बराबर खुली जगह आती है। यहाँ चार प्रस्तर खण्ड हैं जो चार युगों अर्थात सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा कलियुग को दर्शातें हैं। इनमें पहले तीन आकारों में कोई परिवर्तन नही होता। लेकिन माना जाता है कि कलियुग को दर्शाने वाली शिला का आकार धीरे-धीरे बढ रहा है, और कलियुग का अन्त उस दिन हो जायेगा जब यह शिला बढते-बढते अपने ऊपर की छत को छू जायेगी। गुफा में दाहिनी ओर केदारनाथ, बद्रीनाथ, अमरनाथ की तीनों मूर्तियां (बद्रीनाथ, केदारनाथ सहित चारों धामों के प्रतीक) विद्यमान हैं। यहां पर तीनों के दर्शन एक ही दृष्टि में होते हैं। मान्यता है कि पाताल भुवनेश्वर के दर्शन से ही चार धाम के दर्शन के पुण्य की प्राप्ति हो जाती है। उसी के साथ काल भैरव की जीभ है उनके गर्भ से प्रवेश करके उनकी पूंछ में त्रिमूर्ति है। लेकिन वहां तक मनुष्य अभी तक नहीं पहुंच पाया। पुराण के अनुसार कोई मनुष्य उस स्थान तक पहुंच जाए तो उसका अगला जन्म नहीं होता। गुफा के अंदर इसके बाद भगवान शंकर का मनोकामना झोला है। उसी साथ आसन है तथा काली कमली बीछी है और उसके नीचे बाधम्बर बिछा है वहीं पर पाताल भैरवी है जो मुण्डमाला पहने खड़ी हैं। यहां पर चार द्वार हैं (1) रण द्वार (2) पाप द्वार (3) धर्म द्वार और (4) मोक्ष द्वार। रण द्वार कलयुग में बंद हुआ, धर्म द्वार एवं मोक्ष द्वार खुले हुए हैं। इसके साथ ही ब्रह्मा जी का पंचवा सिर है जिसे ब्रह्मकपाल कहा गया है। जिसमें उत्तर वाला सिर वह है जिस पर तर्पण करते हैं। जिसमें एक के बाद एक कुण्डों में पानी जमा होता है। पराणों में लिखा गया है कि उन कुण्डों में पानी के साथ अमृत बहता था। इस गुफा में 33 करोड़ देवताओं के बीच भगवान शिव का नर्मदेश्वर लिंग है जिस पर जितना भी पानी पड़ता है वह उसे सोख लेता है। इसके बाद आकाश गंगा है जिस पर बहुत लम्बी तारों की कतार है। इसके साथ ही सप्त ऋषि मंडल है।
 
स्कन्दपुरान में वर्णन है कि स्वयं महादेव शिव पाताल भुवनेश्वर में विराजमान रहते हैं और अन्य देवी देवता उनकी स्तुति करने यहाँ आते हैं। यह भी वर्णन है कि त्रेता युग में अयोध्या के सूर्यवंशी राजा रितुपर्ण जब एक जंगली हिरण का पीछा करते हुए इस गुफा में प्रविष्ट हुए तो उन्होने इस गुफा के भीतर महादेव शिव सहित 33 करोड देवताओं के साक्षात दर्शन किये। मनुस्मृति में कहा गया है कि भगवान शंकर कैलाश में सिर्फ तपस्या करते थे। उनके समय बिताने के लिए विष्णुजी ने उनके लिये यह स्थान चुना।
 
पाण्डवों के एक वर्ष के प्रवास के दौरान का दृश्य, उनके द्वारा जुए में हारना, सतयुग से कलयुग आने का चित्रण व कई प्राचीन शिल्प कला के दृष्य देखने को मिलते हैं। कुमाऊ एक धार्मिक स्थल के साथ ही रोमांचक पर्यटक स्थल के रूप में जाना जाता है।
 
 
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
==संबंधित लेख==
 
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