"प्रणव": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
छो (Adding category Category:हिन्दू धर्म कोश (को हटा दिया गया हैं।)) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "३" to "3") |
||
(3 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 7 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
*पवित्र घोष अथवा [[शब्द (व्याकरण)|शब्द]] (प्र+णु स्तवने+अप्) इसका प्रतीक रहस्यवादी पवित्र अक्षर 'ऊँ' है और इसका पूर्ण विस्तार ' | *पवित्र घोष अथवा [[शब्द (व्याकरण)|शब्द]] (प्र+णु स्तवने+अप्) इसका प्रतीक रहस्यवादी पवित्र अक्षर 'ऊँ' है और इसका पूर्ण विस्तार 'ओ3म्' रूप में होता है। | ||
*यह शब्द | *यह शब्द ब्रह्म का बोधक है, जिससे यह विश्व उत्पन्न होता है, जिसमें स्थित रहता है और जिसमें इसका लय हो जाता है। | ||
*यह विश्व नाम-रूपात्मक है, उसमें जितने पदार्थ हैं, इनकी अभिव्यक्ति वर्णों अथवा अक्षरों से होती है। जितने भी वर्ण हैं वे अ (कण्ठ्य [[स्वर (व्याकरण)|स्वर]]) और म् (ओष्ठ्य [[ | *यह विश्व नाम-रूपात्मक है, उसमें जितने पदार्थ हैं, इनकी अभिव्यक्ति वर्णों अथवा [[अक्षर|अक्षरों]] से होती है। जितने भी वर्ण हैं वे अ (कण्ठ्य [[स्वर (व्याकरण)|स्वर]]) और म् (ओष्ठ्य [[व्यंजन (व्याकरण)|व्यंजन]]) के बीच उच्चारित होते हैं। | ||
*इस प्रकार 'ओम्' सम्पूर्ण विश्व की अभिव्यक्ति, स्थिति और प्रलय का द्योतक है। | *इस प्रकार 'ओम्' सम्पूर्ण विश्व की अभिव्यक्ति, स्थिति और प्रलय का द्योतक है। | ||
*यह पवित्र और मांगलिक माना जाता है, इसलिए कार्यारम्भ और कार्यान्त में यह उच्चारित अथवा अंकित होता है। | *यह पवित्र और मांगलिक माना जाता है, इसलिए कार्यारम्भ और कार्यान्त में यह उच्चारित अथवा अंकित होता है। | ||
*वाजसनेयी संहिता, तैत्तिरीय संहिता, मुंण्डकोपनिषद तथा रामतापनीय उपनिषद में ' | *वाजसनेयी संहिता, तैत्तिरीय संहिता, मुंण्डकोपनिषद तथा रामतापनीय [[उपनिषद]] में '[[ओम]]' के अर्थ और महत्त्व का विशद विवेचन पाया जाता है। | ||
*प्रणव के रूप में [[प्रणववाद]] का मूल वेदमंत्रों में वर्तमान है। | *प्रणव के रूप में [[प्रणववाद]] का मूल वेदमंत्रों में वर्तमान है। | ||
पंक्ति 15: | पंक्ति 15: | ||
|शोध= | |शोध= | ||
}} | }} | ||
{{संदर्भ ग्रंथ}} | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
[[Category: | [[Category:हिन्दू धर्म]] [[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]] | ||
[[Category:हिन्दू धर्म कोश]] | [[Category:शब्द संदर्भ कोश]] | ||
[[Category:दर्शन कोश]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
10:10, 1 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण
- पवित्र घोष अथवा शब्द (प्र+णु स्तवने+अप्) इसका प्रतीक रहस्यवादी पवित्र अक्षर 'ऊँ' है और इसका पूर्ण विस्तार 'ओ3म्' रूप में होता है।
- यह शब्द ब्रह्म का बोधक है, जिससे यह विश्व उत्पन्न होता है, जिसमें स्थित रहता है और जिसमें इसका लय हो जाता है।
- यह विश्व नाम-रूपात्मक है, उसमें जितने पदार्थ हैं, इनकी अभिव्यक्ति वर्णों अथवा अक्षरों से होती है। जितने भी वर्ण हैं वे अ (कण्ठ्य स्वर) और म् (ओष्ठ्य व्यंजन) के बीच उच्चारित होते हैं।
- इस प्रकार 'ओम्' सम्पूर्ण विश्व की अभिव्यक्ति, स्थिति और प्रलय का द्योतक है।
- यह पवित्र और मांगलिक माना जाता है, इसलिए कार्यारम्भ और कार्यान्त में यह उच्चारित अथवा अंकित होता है।
- वाजसनेयी संहिता, तैत्तिरीय संहिता, मुंण्डकोपनिषद तथा रामतापनीय उपनिषद में 'ओम' के अर्थ और महत्त्व का विशद विवेचन पाया जाता है।
- प्रणव के रूप में प्रणववाद का मूल वेदमंत्रों में वर्तमान है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ