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‘‘मुझे लगता है कि हमें देश के लिए एक अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता है, ठीक वैसा ही दृष्टिकोण जैसा अंग्रेज़ों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम के समय हमारा था। उस समय राष्ट्रवाद की भावना बहुत प्रबल थी। भारत को एक विकसित राष्ट्र में बदलने के लिए आवश्यक यह दूसरा दृष्टिकोण एक बार फिर राष्ट्रवाद की भावना को शीर्ष पर लाएगा।’’ -कलाम
'''भारत की आवाज़''' [[भारत]] के ग्याहरवें [[राष्ट्रपति]] और 'मिसाइल मैन' के नाम से प्रसिद्ध '[[अब्दुल कलाम|ए.पी.जे. अब्दुल कलाम]]' की चर्चित पुस्तक है।
<blockquote>‘‘मुझे लगता है कि हमें देश के लिए एक अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता है, ठीक वैसा ही दृष्टिकोण जैसा अंग्रेज़ों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम के समय हमारा था। उस समय राष्ट्रवाद की भावना बहुत प्रबल थी। भारत को एक विकसित राष्ट्र में बदलने के लिए आवश्यक यह दूसरा दृष्टिकोण एक बार फिर राष्ट्रवाद की भावना को शीर्ष पर लाएगा।’’ -अब्दुल कलाम</blockquote>


विकास के लाभ उठाने के बाद अब [[भारत]] के लोग अधिक शिक्षा, अधिक अवसरों और अधिक विकास के लिए बेताब हैं। लेकिन समृद्ध और संगठित भारत के निर्माण का उनका यह सपना कहीं-न-कहीं चूर-चूर होता दिखाई दे रहा है: देश को बांटने वाली राजनीति, बढ़ती आर्थिक विषमता और देश तथा उसकी सीमाओं पर मौजूद डर और अशांति के दानव देश के मर्मस्थल पर चोट कर रहे हैं। ऐसी परिस्थितियों में देश और उसकी अवधारणा की रक्षा कैसे की जाए और विकास के लक्ष्य पर कैसे आगे बढ़ा जाए? यह पुस्तक कुछ ऐसे ही प्रश्न उठाती है और उनके उत्तर तलाशती है।  
विकास के लाभ उठाने के बाद अब [[भारत]] के लोग अधिक शिक्षा, अधिक अवसरों और अधिक विकास के लिए बेताब हैं। लेकिन समृद्ध और संगठित भारत के निर्माण का उनका यह सपना कहीं-न-कहीं चूर-चूर होता दिखाई दे रहा है: देश को बांटने वाली राजनीति, बढ़ती आर्थिक विषमता और देश तथा उसकी सीमाओं पर मौजूद डर और अशांति के दानव देश के मर्मस्थल पर चोट कर रहे हैं। ऐसी परिस्थितियों में देश और उसकी अवधारणा की रक्षा कैसे की जाए और विकास के लक्ष्य पर कैसे आगे बढ़ा जाए? यह पुस्तक कुछ ऐसे ही प्रश्न उठाती है और उनके उत्तर तलाशती है।  


[[डॉ. कलाम]] का मानना है कि किसी भी देश की आत्मा उसमें रहने वाले लोग होते हैं, और उनकी उन्नति में ही देश की उन्नति है। आदर्शवाद से ओतप्रोत, लेकिन वास्तविकता से जुड़ी भारत की आवाज़ दर्शाती है कि व्यक्गित और राष्ट्रीय स्तर पर प्रगति संभव है, बशर्ते हम इस सिद्धांत पर चलें कि '''देश किसी भी व्यक्ति या संगठन से बढ़कर होता है''' और यह समझें कि '''केवल सीमारहित मस्तिष्क ही सीमारहित समाज का निर्माण कर सकते हैं।''' भारत के ग्यारहवें [[राष्ट्रपति]] डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम देश के अब तक के सबसे लोकप्रिय राष्ट्रपति सिद्ध हुए हैं। वे भारत के उन लाखों युवाओं के आदर्श हैं जो उन्हीं की तरह मेहनत और ईमानदारी से सफलता पाना चाहते हैं।  
[[डॉ. कलाम]] का मानना है कि किसी भी देश की आत्मा उसमें रहने वाले लोग होते हैं, और उनकी उन्नति में ही देश की उन्नति है। आदर्शवाद से ओतप्रोत, लेकिन वास्तविकता से जुड़ी भारत की आवाज़ दर्शाती है कि व्यक्गित और राष्ट्रीय स्तर पर प्रगति संभव है, बशर्ते हम इस सिद्धांत पर चलें कि '''देश किसी भी व्यक्ति या संगठन से बढ़कर होता है''' और यह समझें कि '''केवल सीमारहित मस्तिष्क ही सीमारहित समाज का निर्माण कर सकते हैं।'''<ref>{{cite web |url=http://www.orientpaperbacks.com/books/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%86%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BC.html |title=भारत की आवाज़|accessmonthday=14 दिसम्बर |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=Orient Publishing |language=हिंदी }}</ref> भारत के ग्यारहवें [[राष्ट्रपति]] डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम देश के अब तक के सबसे लोकप्रिय राष्ट्रपति सिद्ध हुए हैं। वे भारत के उन लाखों युवाओं के आदर्श हैं जो उन्हीं की तरह मेहनत और ईमानदारी से सफलता पाना चाहते हैं।  


भारत की गिनती भी एक दिन विकसित देशों में की जाएगी, इसी विश्वास और संकल्प के साथ डॉ. कलाम राष्ट्रपति पद से मुक्त होने के बावजूद आज भी लोगों के बीच जाकर उनसे मिलते हैं, बातचीत करते हैं और उन्हें प्रोत्साहित करते हैं। लोग उनकी बात मंत्रमुग्ध होकर सुनते हैं, खासकर युवाओं के लिए उनकी कही हर बात विशेष महत्त्व रखती है, क्योंकि उन्हें लगता है कि देश के पुनरुत्थान की अगर कोई उम्मीद शेष है, तो वह केवल डॉ. कलाम ही हैं। शायद इसी कारण [[राष्ट्रपति]] के रूप में वे जहां भी गए, और आज भी वे जहां भी जाते हैं, लोग उनसे अपने मन में जब-तब उठने वाले ढेरों प्रश्न करते हैं।  
भारत की गिनती भी एक दिन विकसित देशों में की जाएगी, इसी विश्वास और संकल्प के साथ डॉ. कलाम राष्ट्रपति पद से मुक्त होने के बावजूद आज भी लोगों के बीच जाकर उनसे मिलते हैं, बातचीत करते हैं और उन्हें प्रोत्साहित करते हैं। लोग उनकी बात मंत्रमुग्ध होकर सुनते हैं, ख़ासकर युवाओं के लिए उनकी कही हर बात विशेष महत्त्व रखती है, क्योंकि उन्हें लगता है कि देश के पुनरुत्थान की अगर कोई उम्मीद शेष है, तो वह केवल डॉ. कलाम ही हैं। शायद इसी कारण [[राष्ट्रपति]] के रूप में वे जहां भी गए, और आज भी वे जहां भी जाते हैं, लोग उनसे अपने मन में जब-तब उठने वाले ढेरों प्रश्न करते हैं।  


*'''भारत की आवाज़''' उनसे पूछे गए ऐसे ही कुछ बेहद दिलचस्प, प्रासंगिक और कुछ अप्रासंगिक लेकिन रोचक प्रश्नों का संकलन है। ये प्रश्न भारत के युवाओं के सपनों, सरोकारों और महत्त्वाकांक्षाओं की झलक पेश करते हैं, और डॉ. कलाम के उत्तर सशक्त, संगठित और समृद्ध भारत के निर्माण की राह दिखाते हैं। यह पुस्तक विकसित भारत के निर्माण की राह दिखाती है। युवाओं को यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए। —दैनिक ट्रिब्यून
*'''भारत की आवाज़''' उनसे पूछे गए ऐसे ही कुछ बेहद दिलचस्प, प्रासंगिक और कुछ अप्रासंगिक लेकिन रोचक प्रश्नों का संकलन है। ये प्रश्न भारत के युवाओं के सपनों, सरोकारों और महत्त्वाकांक्षाओं की झलक पेश करते हैं, और डॉ. कलाम के उत्तर सशक्त, संगठित और समृद्ध भारत के निर्माण की राह दिखाते हैं। यह पुस्तक विकसित भारत के निर्माण की राह दिखाती है। युवाओं को यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए। —दैनिक ट्रिब्यून
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और इन सबके लिए श्रेष्ठ मनुष्य बनना बहुत आवश्यक है।  
और इन सबके लिए श्रेष्ठ मनुष्य बनना बहुत आवश्यक है।  


विकसित भारत के आपके विज़न में सामान्य व्यक्ति किस प्रकार अपना योगदान कर सकता है ? हमारे विकसित राष्ट्र के रूप में बढ़ने के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है हमारी पराजयवादी मनोवृत्ति। एक बाधा यह भी है कि हमारे लक्ष्य हमेशा छोटे होते हैं। सच बात तो यह है कि छोटे लक्ष्य रखना अपराध है। हमारे लोग जब ऊँचे और बड़े लक्ष्य निर्धारित करने लगेंगे, तब सब ठीक हो जाएगा और जनता का नेतृत्व करने के लिए तो ऐसे लोग चाहिए जो मिशनरी भावना से काम करें और जिनमें नेतृत्व करने की विशेष योग्यता भी हो। <ref>{{cite web |url=http://pustak.org/home.php?bookid=6056 |title=भारत की आवाज़|accessmonthday=14 दिसम्बर |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतीय साहित्य संग्रह |language=हिंदी }}</ref>
विकसित भारत के आपके विज़न में सामान्य व्यक्ति किस प्रकार अपना योगदान कर सकता है ? हमारे विकसित राष्ट्र के रूप में बढ़ने के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है हमारी पराजयवादी मनोवृत्ति। एक बाधा यह भी है कि हमारे लक्ष्य हमेशा छोटे होते हैं। सच बात तो यह है कि छोटे लक्ष्य रखना अपराध है। हमारे लोग जब ऊँचे और बड़े लक्ष्य निर्धारित करने लगेंगे, तब सब ठीक हो जाएगा और जनता का नेतृत्व करने के लिए तो ऐसे लोग चाहिए जो मिशनरी भावना से काम करें और जिनमें नेतृत्व करने की विशेष योग्यता भी हो। <ref>{{cite web |url=http://pustak.org/home.php?bookid=7846|title=भारत की आवाज़|accessmonthday=14 दिसम्बर |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतीय साहित्य संग्रह |language=हिंदी }}</ref>


==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

13:29, 1 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण

भारत की आवाज़ -अब्दुल कलाम
भारत की आवाज़ का आवरण पृष्ठ
भारत की आवाज़ का आवरण पृष्ठ
लेखक अब्दुल कलाम
मूल शीर्षक भारत की आवाज़
प्रकाशक राजपाल प्रकाशन
प्रकाशन तिथि 1 जनवरी, 2010
ISBN 978-81-7028-885
देश भारत
पृष्ठ: 180
भाषा हिंदी

भारत की आवाज़ भारत के ग्याहरवें राष्ट्रपति और 'मिसाइल मैन' के नाम से प्रसिद्ध 'ए.पी.जे. अब्दुल कलाम' की चर्चित पुस्तक है।

‘‘मुझे लगता है कि हमें देश के लिए एक अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता है, ठीक वैसा ही दृष्टिकोण जैसा अंग्रेज़ों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम के समय हमारा था। उस समय राष्ट्रवाद की भावना बहुत प्रबल थी। भारत को एक विकसित राष्ट्र में बदलने के लिए आवश्यक यह दूसरा दृष्टिकोण एक बार फिर राष्ट्रवाद की भावना को शीर्ष पर लाएगा।’’ -अब्दुल कलाम

विकास के लाभ उठाने के बाद अब भारत के लोग अधिक शिक्षा, अधिक अवसरों और अधिक विकास के लिए बेताब हैं। लेकिन समृद्ध और संगठित भारत के निर्माण का उनका यह सपना कहीं-न-कहीं चूर-चूर होता दिखाई दे रहा है: देश को बांटने वाली राजनीति, बढ़ती आर्थिक विषमता और देश तथा उसकी सीमाओं पर मौजूद डर और अशांति के दानव देश के मर्मस्थल पर चोट कर रहे हैं। ऐसी परिस्थितियों में देश और उसकी अवधारणा की रक्षा कैसे की जाए और विकास के लक्ष्य पर कैसे आगे बढ़ा जाए? यह पुस्तक कुछ ऐसे ही प्रश्न उठाती है और उनके उत्तर तलाशती है।

डॉ. कलाम का मानना है कि किसी भी देश की आत्मा उसमें रहने वाले लोग होते हैं, और उनकी उन्नति में ही देश की उन्नति है। आदर्शवाद से ओतप्रोत, लेकिन वास्तविकता से जुड़ी भारत की आवाज़ दर्शाती है कि व्यक्गित और राष्ट्रीय स्तर पर प्रगति संभव है, बशर्ते हम इस सिद्धांत पर चलें कि देश किसी भी व्यक्ति या संगठन से बढ़कर होता है और यह समझें कि केवल सीमारहित मस्तिष्क ही सीमारहित समाज का निर्माण कर सकते हैं।[1] भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम देश के अब तक के सबसे लोकप्रिय राष्ट्रपति सिद्ध हुए हैं। वे भारत के उन लाखों युवाओं के आदर्श हैं जो उन्हीं की तरह मेहनत और ईमानदारी से सफलता पाना चाहते हैं।

भारत की गिनती भी एक दिन विकसित देशों में की जाएगी, इसी विश्वास और संकल्प के साथ डॉ. कलाम राष्ट्रपति पद से मुक्त होने के बावजूद आज भी लोगों के बीच जाकर उनसे मिलते हैं, बातचीत करते हैं और उन्हें प्रोत्साहित करते हैं। लोग उनकी बात मंत्रमुग्ध होकर सुनते हैं, ख़ासकर युवाओं के लिए उनकी कही हर बात विशेष महत्त्व रखती है, क्योंकि उन्हें लगता है कि देश के पुनरुत्थान की अगर कोई उम्मीद शेष है, तो वह केवल डॉ. कलाम ही हैं। शायद इसी कारण राष्ट्रपति के रूप में वे जहां भी गए, और आज भी वे जहां भी जाते हैं, लोग उनसे अपने मन में जब-तब उठने वाले ढेरों प्रश्न करते हैं।

  • भारत की आवाज़ उनसे पूछे गए ऐसे ही कुछ बेहद दिलचस्प, प्रासंगिक और कुछ अप्रासंगिक लेकिन रोचक प्रश्नों का संकलन है। ये प्रश्न भारत के युवाओं के सपनों, सरोकारों और महत्त्वाकांक्षाओं की झलक पेश करते हैं, और डॉ. कलाम के उत्तर सशक्त, संगठित और समृद्ध भारत के निर्माण की राह दिखाते हैं। यह पुस्तक विकसित भारत के निर्माण की राह दिखाती है। युवाओं को यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए। —दैनिक ट्रिब्यून
  • ‘नंबर वन’ तो अपने कलाम साहब हैं ही और इस पुस्तक से मालूम होता है कि वे अपने देश को बड़ा बनाने का सपना हकीकत में कैसे बदलते देखना चाहते हैं। —खुशवंत सिंह
  • ‘भारत की आवाज़’ पढ़ने से पता चलता है कि राष्ट्रपति पद से मुक्त होने के बाद भी कलाम इतने लोकप्रिय क्यों हैं। इस पुस्तक में कहीं कलाम एक दार्शनिक के रूप में नज़र आते हैं तो कहीं उनकी बातों में एक जननेता की झलक दिखाई देती है। —तहलका
भारत की आवाज़

स्वतन्त्रता आंदोलन ने हमारे अंदर यह भाव पैदा कर दिया कि राष्ट्र किसी व्यक्ति या संस्था से बड़ा होता है। किन्तु विगत कुछ दशकों से यह राष्ट्रीय भाव लुप्त होता जा रहा है। आज आवश्यकता है कि सभी राजनैतिक दल आपस में सहयोग करें और इस ज्वलंत प्रश्न का उत्तर दें- ‘‘भारत कब एक विकसित राष्ट्र बनेगा ?’’ धर्म-निरपेक्षता के सिद्धान्त के प्रति अटूट निष्ठा होना चाहिए। धर्म-निरपेक्षता हमारी राष्ट्रीयता का आधार है और हमारी सभ्यता का एक प्रबल पक्ष है। सभी धर्मों के नेताओं को एक ही तरह का संदेश देना चाहिए जिससे लोगों के दिल-दिमाग में एकता का भाव पैदा हो जिससे हमारा देश खुशहाल और सम्पन्न हो सके।

आज समय की माँग है कि हर नागरिक अनुशासित आचरण करे, इससे जागरूक नागरिकों का निर्माण होगा। किसी देश के लोग जितने अच्छे होते हैं वह देश उतना ही अच्छा होता है। किसी देश की संरचना में वहाँ की जनता के जीवन-मूल्य, नैतिकता और आचरण प्रकट होते हैं। ये बहुत महत्त्वपूर्ण कारक होते हैं जो निर्धारित करते हैं कि देश प्रगति के पथ पर चलेगा या फिर ठहराव के दौर से गुज़रेगा। हमें अपने दैनिक जीवन में ईमानदारी, निष्ठा और सहनशीलता जैसे मूल्यों का पालन करना है। इससे हमारी राजनीति राष्ट्रनीति में बदल जाएगी। हमें सामाजिक स्तर पर यह सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना होगा कि हम अपने देश के लिए क्या कर सकते हैं।

हमने अपने पूर्वजों द्वारा किए गए कार्यों और उनकी छोड़ी गई विरासत से बहुत लाभ उठाया है। अब यह हमारा अधिकार और दायित्व है कि हम अपनी भावी पीढ़ी के लिए एक सकारात्मक परंपरा स्थापित करें जिसके कारण वह हमें याद रखेगी। यदि 54 करोड़ युवा इस भावना के साथ काम करें ‘‘मैं यह कर सकता हूँ’’, ‘‘हम यह कर सकते हैं’’ और ‘‘भारत यह कर सकता है’’, तो भारत को विकसित देश बनने से कोई नहीं रोक सकता

इनमें से प्रत्येक व्यक्ति देश की उत्तम सेवा कर सकता है।
  • सैनिक का कार्य है देश के एक अरब से अधिक नागरिकों की रात-दिन इस तरह सुरक्षा करना कि वे शान्तिपूर्वक देश के विकास का कार्य करते रह सकें।
  • शिक्षक का कार्य है जागृत नागरिकों और भविष्य के नेताओं का निर्माण।
  • डॉक्टर का ध्येय-वाक्य होने चाहिए—‘मानवता के कष्टों का, अपने दिमाग का सही उपयोग करते हुए निवारण करना।’
  • वैज्ञानिक का कार्य है निरन्तर विकास के लिए नये-नये उपाय प्रदान करना।
  • राजनीतिज्ञ का कार्य है समाज के सभी वर्गों के सभी कार्यों का समग्र राष्ट्रीय विकास की दिशा में आयोजन करना।

और इन सबके लिए श्रेष्ठ मनुष्य बनना बहुत आवश्यक है।

विकसित भारत के आपके विज़न में सामान्य व्यक्ति किस प्रकार अपना योगदान कर सकता है ? हमारे विकसित राष्ट्र के रूप में बढ़ने के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है हमारी पराजयवादी मनोवृत्ति। एक बाधा यह भी है कि हमारे लक्ष्य हमेशा छोटे होते हैं। सच बात तो यह है कि छोटे लक्ष्य रखना अपराध है। हमारे लोग जब ऊँचे और बड़े लक्ष्य निर्धारित करने लगेंगे, तब सब ठीक हो जाएगा और जनता का नेतृत्व करने के लिए तो ऐसे लोग चाहिए जो मिशनरी भावना से काम करें और जिनमें नेतृत्व करने की विशेष योग्यता भी हो। [2]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारत की आवाज़ (हिंदी) Orient Publishing। अभिगमन तिथि: 14 दिसम्बर, 2013।
  2. भारत की आवाज़ (हिंदी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 14 दिसम्बर, 2013।

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