"धनुष्कोटि": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
(धनुषकोडी को अनुप्रेषित (रिडायरेक्ट))
 
(इसी सदस्य द्वारा किए गए बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'''धनुष्कोटि''' [[रामेश्वरम]], [[मद्रास]] से लगभग 12 मील {{मील|मील=12}} की दूरी पर दक्षिण की ओर स्थित है। यहाँ [[अरब सागर]] और [[हिंद महासागर]] का संगम होने के कारण इसे श्राद्धतीर्थ मानकर पितृकर्म करने का विधान है। यहाँ [[लक्ष्मणतीर्थ]] में भी मुण्डन और [[श्राद्ध]] करने का प्रचलन है। इस स्थान पर [[समुद्र]] में [[स्नान]] करने के बाद अर्ध्यदान किया जाता है। यहाँ भारतीय प्राय:द्वीप की नोक समुद्र के अन्दर तक चली गई प्रतीत होती है।
#REDIRECT [[धनुषकोडी]]
==कथा==
दोनों ओर से दो समुद्र 'महोदधि' और 'रत्नाकर' धनुष्कोटि में मिलते हैं। इस स्थान का संबंध [[श्रीराम|श्रीराम चंद्र]] जी से बताया जाता है। कथा है कि भगवान श्रीराम जब [[लंका]] पर विजय प्राप्त करने के उपरान्त भगवती [[सीता]] के साथ वापस लौटने लगे, तब नवनियुक्त लंकापति [[विभीषण]] ने प्रार्थना की- "हे प्रभो! आपके द्वारा बनवाया गया यह सेतु बना रहा तो भविष्य में इस मार्ग से [[भारत]] के बलाभिमानी राजा मेरी लंका पर आक्रमण करेंगे।" लंका नरेश विभीषण के अनुरोध पर श्रीरामचन्द्र जी ने अपने [[धनुष अस्त्र|धनुष]] की कोटि (नोक) से सेतु को एक स्थान से तोडकर उस भाग को समुद्र में डुबो दिया। इससे उस स्थान का नाम 'धनुष्कोटि' हो गया।
==तीर्थ स्थल==
इस पतितपावन धनुष्कोटि [[तीर्थ]] में जप-तप, [[स्नान]]-दान आदि करने से महापातकों का नाश, मनोकामना की पूर्ति तथा सद्गति मिलती है। धनुष्कोटि का दर्शन करने वाले व्यक्ति के [[हृदय]] की अज्ञानमयी ग्रंथि कट जाती है, उसके सब संशय दूर हो जाते हैं और संचित पापों का नाश हो जाता है। यहाँ [[पिण्डदान]] करने से [[पितर|पितरों]] को कल्पपर्यन्ततृप्ति रहती है। धनुष्कोटि तीर्थ में [[पृथ्वी]] के दस कोटि सहस्र (एक खरब) तीर्थों का वास है।
 
*स्कंदसेतु माहात्म्य<ref>स्कंदसेतु माहात्म्य 33, 65</ref> में इस स्थान को पुण्यतीर्थ माना गया है-
<blockquote>'दक्षिणाम्बुनिधी पुण्ये रामसेतौ विमुक्तिदे, धनुष्कोटिरिति ख्यातं तीर्थमस्ति विमुक्तिदम्'।</blockquote>
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=462|url=}}
<references/>
==संबंधित लेख==
{{पौराणिक स्थान}}
[[Category:पौराणिक स्थान]][[Category:पौराणिक कोश]]
__INDEX__
__NOTOC__

09:21, 5 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण

अनुप्रेषण का लक्ष्य: