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'''सरुतरु''' [[मेघालय]] राज्य में [[शिलांग]] के पठार पर [[गुवाहाटी]] से 25 किमी दक्षिण-पूर्व में [[ब्रह्मपुत्र नदी]] की सहायक नदी दिगारु के तट पर स्थित है। | |||
*इस स्थल का उत्खनन सन् 1967 ई. से 1973 ई. के मध्य किया गया। | |||
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*सरुतरु पर एक छोटी पहाड़ी पर चट्टान की गलन से उत्पन्न मिट्टी का जमाव पाया गया है। जिसकी परत पर लगभग 40 सेमी. मोटी नव-प्रस्तरकालीन आवासीय स्तर स्थित था। इस स्तर से स्लेट व बलुए पत्थर से बने नव-प्रस्तर उपकरण प्राप्त हुए हैं। इनमें प्रमुख प्रकार स्कन्धयुक्त व गोल मूँठ वाली कुल्हाड़ियाँ हैं। | *सरुतरु पर एक छोटी पहाड़ी पर चट्टान की गलन से उत्पन्न मिट्टी का जमाव पाया गया है। जिसकी परत पर लगभग 40 सेमी. मोटी नव-प्रस्तरकालीन आवासीय स्तर स्थित था। इस स्तर से स्लेट व बलुए पत्थर से बने नव-प्रस्तर उपकरण प्राप्त हुए हैं। इनमें प्रमुख प्रकार स्कन्धयुक्त व गोल मूँठ वाली कुल्हाड़ियाँ हैं। | ||
*इस स्थल से प्राप्त मृद्भाण्ड परम्परा दओजली-हैडिंग के समतुल्य ही है। | *इस स्थल से प्राप्त मृद्भाण्ड परम्परा दओजली-हैडिंग के समतुल्य ही है। | ||
*सरुतरु से समरकालीन अर्थव्यवस्था के सम्बन्ध में कोई प्रत्यक्ष प्रमाण प्राप्त नहीं हुए हैं। | *सरुतरु से समरकालीन अर्थव्यवस्था के सम्बन्ध में कोई प्रत्यक्ष प्रमाण प्राप्त नहीं हुए हैं। | ||
*सरुतरु से एक किमी की दूरी पर स्थित मरकडोला के उत्खनन के आधार पर इस क्षेत्र में नव-प्रस्तर परम्परा को प्रथम शताब्दी ई. तक प्रचलित माना जा सकता है। इसका आधार इस स्थल पर प्राप्त एक मीटर के आवासीय जमाव से प्राप्त मृद्भाण्ड हैं। | *सरुतरु से एक किमी की दूरी पर स्थित मरकडोला के उत्खनन के आधार पर इस क्षेत्र में नव-प्रस्तर परम्परा को प्रथम शताब्दी ई. तक प्रचलित माना जा सकता है। इसका आधार इस स्थल पर प्राप्त एक मीटर के आवासीय जमाव से प्राप्त मृद्भाण्ड हैं। | ||
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14:29, 2 जनवरी 2015 के समय का अवतरण
सरुतरु मेघालय राज्य में शिलांग के पठार पर गुवाहाटी से 25 किमी दक्षिण-पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी की सहायक नदी दिगारु के तट पर स्थित है।
- इस स्थल का उत्खनन सन् 1967 ई. से 1973 ई. के मध्य किया गया।
- सरुतरु पर एक छोटी पहाड़ी पर चट्टान की गलन से उत्पन्न मिट्टी का जमाव पाया गया है। जिसकी परत पर लगभग 40 सेमी. मोटी नव-प्रस्तरकालीन आवासीय स्तर स्थित था। इस स्तर से स्लेट व बलुए पत्थर से बने नव-प्रस्तर उपकरण प्राप्त हुए हैं। इनमें प्रमुख प्रकार स्कन्धयुक्त व गोल मूँठ वाली कुल्हाड़ियाँ हैं।
- इस स्थल से प्राप्त मृद्भाण्ड परम्परा दओजली-हैडिंग के समतुल्य ही है।
- सरुतरु से समरकालीन अर्थव्यवस्था के सम्बन्ध में कोई प्रत्यक्ष प्रमाण प्राप्त नहीं हुए हैं।
- सरुतरु से एक किमी की दूरी पर स्थित मरकडोला के उत्खनन के आधार पर इस क्षेत्र में नव-प्रस्तर परम्परा को प्रथम शताब्दी ई. तक प्रचलित माना जा सकता है। इसका आधार इस स्थल पर प्राप्त एक मीटर के आवासीय जमाव से प्राप्त मृद्भाण्ड हैं।
- सरुतरु के निकट अरुणाचल प्रांत में मिशमी पर्वत की घाटी, नागालैण्ड का उत्तरी पर्वतीय क्षेत्र, मिज़ोरम व मणिपुर के उत्तरपूर्व के सीमांत प्रदेशों में भी नव-प्रस्तरकालीन उपकरण प्राप्त हुए हैं।
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