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|पूरा नाम=अनन्य अलि | |||
|अन्य नाम=भगवानदास | |||
|जन्म=[[संवत]] 1740 (सन 1683 ई.) के आसपास | |||
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|मृत्यु=1733 ई. के लगभग | |||
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|मुख्य रचनाएँ='सिद्धांत नित्य विहार', 'वृन्दावन वर्णन', 'विविध लीला वर्णन', 'ऋतु वर्णन', 'नखशिख वर्णन', 'राधाकृष्ण रूपवर्णन' आदि। | |||
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'''अनन्य अलि''' की [[राधावल्लभ सम्प्रदाय]] के अन्य कवियों में अपनी 'लीला स्वप्न प्रकास सूधी बात' शीर्षक गद्य वार्ता के कारण पर्याप्त प्रसिद्ध है। उनके लिखे हुए 80 [[ग्रंथ]] बताये जाते हैं। 'अनन्य अली की वाणी' नाम से उनका संकलन हुआ है। अनन्य अली की वाणी में प्रसाद और माधुर्य का सुन्दर योग है। जाति से [[वैश्य]] होने के कारण वाणिज्य-व्यापार के अनेक रूपक उन्होंने बाँधे हैं। | '''अनन्य अलि''' की [[राधावल्लभ सम्प्रदाय]] के अन्य कवियों में अपनी 'लीला स्वप्न प्रकास सूधी बात' शीर्षक गद्य वार्ता के कारण पर्याप्त प्रसिद्ध है। उनके लिखे हुए 80 [[ग्रंथ]] बताये जाते हैं। 'अनन्य अली की वाणी' नाम से उनका संकलन हुआ है। अनन्य अली की वाणी में प्रसाद और माधुर्य का सुन्दर योग है। जाति से [[वैश्य]] होने के कारण वाणिज्य-व्यापार के अनेक रूपक उन्होंने बाँधे हैं। | ||
==जन्म== | ==जन्म== |
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अनन्य अलि
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पूरा नाम | अनन्य अलि |
अन्य नाम | भगवानदास |
जन्म | संवत 1740 (सन 1683 ई.) के आसपास |
मृत्यु | 1733 ई. के लगभग |
कर्म भूमि | भारत |
मुख्य रचनाएँ | 'सिद्धांत नित्य विहार', 'वृन्दावन वर्णन', 'विविध लीला वर्णन', 'ऋतु वर्णन', 'नखशिख वर्णन', 'राधाकृष्ण रूपवर्णन' आदि। |
प्रसिद्धि | कवि |
नागरिकता | भारतीय |
जाति | वैश्य |
विशेष | अनन्य अली के लिखे हुए 80 ग्रंथ बताये जाते हैं। 'अनन्य अली की वाणी' नाम से उनका संकलन हुआ है। |
अन्य जानकारी | अनन्य अली की वाणी में प्रसाद और माधुर्य का सुन्दर योग है। जाति से वैश्य होने के कारण वाणिज्य-व्यापार के अनेक रूपक उन्होंने बाँधे हैं। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
अनन्य अलि की राधावल्लभ सम्प्रदाय के अन्य कवियों में अपनी 'लीला स्वप्न प्रकास सूधी बात' शीर्षक गद्य वार्ता के कारण पर्याप्त प्रसिद्ध है। उनके लिखे हुए 80 ग्रंथ बताये जाते हैं। 'अनन्य अली की वाणी' नाम से उनका संकलन हुआ है। अनन्य अली की वाणी में प्रसाद और माधुर्य का सुन्दर योग है। जाति से वैश्य होने के कारण वाणिज्य-व्यापार के अनेक रूपक उन्होंने बाँधे हैं।
जन्म
अनन्य अलि का जन्म संवत 1740 (सन 1683 ई.) के आसपास हुआ था। राधावल्लभ सम्प्रदाय के अन्य कवियों में अनन्य अलि अपनी 'लीला स्वप्न प्रकास सूधी बात' शीर्षक गद्य वार्ता के कारण पर्याप्त प्रसिद्ध हैं। 'स्वप्न प्रकाश' के अंत: साक्ष्य के आधार पर वे वैश्य जाति के प्रतीत होते हैं। उनके घर में व्यापार वाणिज्य का काम होता था। उनके पिता भी राधावल्लभीय थे, अत: सेवा-पूजा का वातावरण पहले से ही घर में विद्यमान था।[1]
वैराग्य
अनन्य अली का पूर्व नाम 'भगवानदास' था। बीस वर्ष की आयु में वैराग्य होने पर अनन्य अलि घरबार छोड़कर वृन्दावन चले गये। रचना की शैली तथा भाषा के आधार पर वे बुन्देलखण्ड के निवासी प्रतीत होते हैं। उनके लिखे हुए 80 ग्रंथ बताये जाते हैं। 'अनन्य अली की वाणी' नाम से उनका संकलन हुआ है।
स्वप्न लेखन
अनन्य अली ने अपने तेरह स्वप्नों का वर्णन गद्य में किया है। उसी में लिखा है कि राधा ने प्रसन्न होकर मुझे नया नाम 'अनन्य अली' दिया। स्वप्न लिखने में प्रवृत्त होने से पहले उन्हें स्वयं संकोच का अनुभव हुआ। उन्होंने लिखा है कि- "ये सपने लिखने उचित नाहीं हैं, ये मेरो हियो अति काचौ है, वस्तु परी पच्यौ नाहीं। तातैनिकसि परद्यो तातै लिखी है। और मोसों पतित कोऊ नाहीं, सकल ब्रह्मांड के पतितन कौ हौं महारज हौं।"[1]
रचनाएँ
अनन्य अली की वाणी का विपुल विस्तार है। उन्होंने 'सिद्धांत नित्य विहार', 'वृन्दावन वर्णन', 'विविध लीला वर्णन', 'ऋतु वर्णन', 'नखशिख वर्णन', 'राधाकृष्ण रूपवर्णन' आदि अनेक विषयों पर रचनाएँ की हैं। सम्पूर्ण रचना का संकलन लगभग 6000 पदों का है।
अनन्य अली की वाणी में प्रसाद और माधुर्य का सुन्दर योग है। जाति से वैश्य होने के कारण वाणिज्य-व्यापार के अनेक रूपक उन्होंने बाँधे हैं। प्रत्येक ग्रंथ का शीर्षक उसके विषय के आधार पर दिया गया है। काव्य व रस की दृष्टि से भी उनकी वाणी अत्यन्त समृद्ध है। लीलाएँ लिखने में उन्हें पूर्ण सफलता मिली है। 'स्वप्न प्रसंग' के गद्य को देखकर यह कहा जा सकता है कि तत्कालीन गद्य लेखकों में यह कृति अपना विशिष्ट स्थान रखती है।[1]
निधन
ग्रंथ लेखन के आधार पर अनन्य अलि का रचना-काल संवत सन 1702 से 1733 ई. तक है। अत: इसी के आस-पास उनका निधन मानना चाहिए।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- [सहायक ग्रंथ- राधावल्लभ सम्प्रदाय और सिद्धांत 390-विजयेन्द्र स्नातक; गोस्वामी हितहरिवंश और उनका सम्प्रदाय-श्री ललित चरण गोस्वामी]
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