"सरला देवी": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
छो (Text replace - "अविभावक" to "अभिभावक")
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
|मृत्यु=[[1945]]
|मृत्यु=[[1945]]
|मृत्यु स्थान=
|मृत्यु स्थान=
|अविभावक=स्वर्ण कुमारी (माता)
|अभिभावक=स्वर्ण कुमारी (माता)
|पति/पत्नी=
|पति/पत्नी=
|संतान=दीपक चौधरी<ref name="aa"/>
|संतान=दीपक चौधरी<ref name="aa"/>

05:01, 29 मई 2015 के समय का अवतरण

सरला देवी
सरला देवी
सरला देवी
पूरा नाम सरला देवी
जन्म 1827
मृत्यु 1945
अभिभावक स्वर्ण कुमारी (माता)
संतान दीपक चौधरी[1]
कर्म भूमि भारत
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी कांग्रेस के ऐतिहासिक 'बनारस अधिवेशन' (1911) में सरला देवी ने भाग लिया था और भारत के राष्ट्रगीत 'वन्दे मातरम्' प्रथम बार का उद्घोष किया।

सरला देवी (अंग्रेज़ी: Sarla Devi; जन्म- 1827; मृत्यु- 1945) कवि के रूप में ख्यातिप्राप्त गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर की भांजी थीं। कांग्रेस के ऐतिहासिक 'बनारस अधिवेशन' (1911) में इन्होंने भाग लिया था और भारत के राष्ट्रगीत 'वन्दे मातरम्' का उद्घोष किया। अपने कई महत्त्वपूर्ण कार्यों से सरला देवी ने काफ़ी अच्छी लोकप्रियता प्राप्त कर ली थी।

जन्म तथा शिक्षा

सरला देवी का जन्म 1827 ई. में हुआ था। ये रबींद्रनाथ टैगोर की बड़ी बहन 'स्वर्ण कुमारी' की बेटी थीं।[1] स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद सरला देवी ने बंगाल के सुप्रसिद्ध पत्र 'भारती' का सम्पादन कार्य सँभाला। वर्ष 1905 ई. के कांग्रेस के ऐतिहासिक 'बनारस अधिवेशन' में उन्होंने भाग लिया एवं पहली बार 'वन्दे मातरम्' का घोष किया था। तभी से यह नारा भारतीय क्रांतिकारियों का युद्ध घोष बन गया।

विवाह

सरला देवी का विवाह 1905 ई. में पंजाब के रामभुज दत्त चौधरी के साथ हुआ। इस विवाह से उनका कार्य क्षेत्र विस्तृत होकर पंजाब तक फैल गया था। सरला देवी का एक बेटा भी था, जिसका नाम दीपक चौधरी था।

उत्सवों का आरम्भ

सरला देवी ने लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक द्वारा महाराष्ट्र में आयोजित 'गणपति' एवं 'शिवाजी' उत्सवों की तरह बंगाल में भी दो उत्सव प्रारम्भ किए थे।

सम्पादन कार्य

पंजाब में सरला देवी ने उर्दू एवं अंग्रेज़ी भाषा के दो पत्रों का सम्पादन किया।

क्रांतिकारियों की मदद

1919 ई. में 'रौलट एक्ट' का विरोध करने पर सरला देवी के पति को आजीवन कारावास हो गया, परंतु जन-सामान्य में लोकप्रिय सरला देवी को गिरफ़्तार करने का साहस अंग्रेज़ सरकार न कर सकी। पति की गिरफ़्तारी के बाद वे गुप्त रूप से क्रांतिकारियों की मदद करती रहीं। सरला देवी के पति जब जेल में थे, तब उन्होंने सरला देवी को महात्मा गांधी के घर पर रहने के लिए कहा था।[1]

  • डॉ. मजूमदार के अनुसार- "सरला देवी बीसवीं सदी के दूसरे एवं तीसरे दशकों में बंगाल और पंजाब के क्रांतिकारियों के बीच की महत्त्वपूर्ण कड़ी बन गई थीं।"

निधन

वर्ष 1945 ई. में अस्वस्थता के कारण सरला देवी का निधन हो गया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 महात्मा गाँधी और सरला देवी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 08 फ़रवरी, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख