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'''भँवरगीत''' में [[नंददास]] ने [[कृष्ण]] कथा के [[उद्धव]] [[गोपी]] सम्बंधी प्रसिद्ध प्रसंग को एक स्वतंत्र [[खण्ड काव्य]] के रूप में रचा है। इस रचना में पर्याप्त नाटकीयता, विषया की स्पष्टता, [[भाषा]] की सरलता और प्रांजलता, कथा की क्रमबद्धता और [[छंद]] की अनूठी मनोहारिता है। यह अवश्य है कि इसमें वैसी रसवत्ता और भाव की तल्लीनता नहीं मिलती, जैसी कि [[सूरदास]] के 'भ्रमर गीत' के पदों में पायी जाती है।  नंददास की रचना में बुद्धि और तर्क की प्रधानता है। नंददास की गोपिकाएँ अध्यात्म और [[न्याय दर्शन]] की सहायता से उद्धव को परास्त करने का प्रयत्न करती हैं।
'''भँवरगीत''' '[[भक्तिकाल]]' के प्रसिद्ध [[नंददास|कवि नंददास]] द्वारा रचित [[खण्ड काव्य]] है। नंददास 16वीं शती के अंतिम चरण के [[कवि]] थे। वे [[हिन्दी]] में '[[अष्टछाप]]' के प्रमुख कवि थे, जो [[सूरदास]] के बाद सबसे प्रसिद्ध हुए।


*'भँवरगीत' में [[नंददास]] ने [[कृष्ण]] कथा के [[उद्धव]] [[गोपी]] सम्बंधी प्रसिद्ध प्रसंग को एक स्वतंत्र [[खण्ड काव्य]] के रूप में रचा है।
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भँवरगीत 'भक्तिकाल' के प्रसिद्ध कवि नंददास द्वारा रचित खण्ड काव्य है। नंददास 16वीं शती के अंतिम चरण के कवि थे। वे हिन्दी में 'अष्टछाप' के प्रमुख कवि थे, जो सूरदास के बाद सबसे प्रसिद्ध हुए।

  • 'भँवरगीत' में नंददास ने कृष्ण कथा के उद्धव गोपी सम्बंधी प्रसिद्ध प्रसंग को एक स्वतंत्र खण्ड काव्य के रूप में रचा है।
  • इस रचना में पर्याप्त नाटकीयता, विषय की स्पष्टता, भाषा की सरलता और प्रांजलता, कथा की क्रमबद्धता और छंद की अनूठी मनोहारिता है।
  • यह अवश्य है कि 'भँवरगीत' में वैसी रसवत्ता और भाव की तल्लीनता नहीं मिलती, जैसी कि सूरदास के 'भ्रमरगीत' के पदों में पायी जाती है।
  • 'भँवरगीत' की रचना में बुद्धि और तर्क की प्रधानता है।
  • नंददास की गोपिकाएँ अध्यात्म और न्याय दर्शन की सहायता से उद्धव को परास्त करने का प्रयत्न करती हैं।
  • 'भँवरगीत' में नंददास ने उद्धव को एक अद्वैत वेदान्त के सर्मथक ज्ञानमार्गी पण्डित के रूप में उपस्थित किया है, जो न केवल गोपियों की उत्कट प्रेम-भक्ति, बल्कि उनके पाण्डित्यपूर्ण तर्कों का लोहा मानकर भक्तिमार्ग में दीक्षित हो जाते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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