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==संक्षिप्त परिचय== | ==संक्षिप्त परिचय== | ||
* दत्तो वामन पोतदार का जन्म 5 अगस्त, 1890 को महाराष्ट्र के बीरबंडी नामक | * दत्तो वामन पोतदार का जन्म 5 अगस्त, 1890 को महाराष्ट्र के बीरबंडी नामक कस्बे में हुआ था। | ||
* मराठी इतिहास के प्रकांड | * मराठी इतिहास के प्रकांड विद्वान् पोतदार जी अपने आपमें एक संस्था थे। | ||
* ये पूना के ‘भारत इतिहास संशोधन मंडल’ के संस्थापक थे जो कि आज एक महत्वपूर्ण स्थापना के रूप में इतिहास के शोध पर | * ये पूना के ‘भारत इतिहास संशोधन मंडल’ के संस्थापक थे जो कि आज एक महत्वपूर्ण स्थापना के रूप में इतिहास के शोध पर उपलब्धियाँ लेकर एक शीर्ष स्थापना मानी जाती है। | ||
* [[मराठी भाषा]] में | * [[मराठी भाषा]] में इन्होंने सैंकड़ों लेख, किताबें लिखीं, जिन्हें मान्यता प्राप्त है। | ||
* दत्तो वामन पोतदार ने पूना विश्वविद्यालय के कुलपति के नाते भी बड़ी जिम्मेदारी निभाई, पर उनकी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि हैं- राष्ट्रभाषा हिंदी की सेवा। | * दत्तो वामन पोतदार ने पूना विश्वविद्यालय के कुलपति के नाते भी बड़ी जिम्मेदारी निभाई, पर उनकी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि हैं- राष्ट्रभाषा हिंदी की सेवा। | ||
* पूरे महाराष्ट्र में अनेक शिक्षण संस्थाएँ स्थापित | * पूरे महाराष्ट्र में अनेक शिक्षण संस्थाएँ स्थापित कीं। पूना शहर में आप पुस्तकालय तथा वाचनालयों का जो जाल फैला दिखाई देता है, उसमें प्रत्येक में पोतदार जी को श्रेय जाता है। | ||
* महाराष्ट्र के राष्ट्रभाषा-प्रचार कार्य में उनकी बड़ी सहायता रही। | * महाराष्ट्र के राष्ट्रभाषा-प्रचार कार्य में उनकी बड़ी सहायता रही। | ||
* वे उत्तम वक्ता और कुशल संगठनकर्ता थे। | * वे उत्तम वक्ता और कुशल संगठनकर्ता थे। | ||
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दत्तो वामन पोतदार
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पूरा नाम | दत्तो वामन पोतदार |
जन्म | 5 अगस्त, 1890 |
मृत्यु | 6 अक्टूबर, 1979 |
कर्म-क्षेत्र | साहित्यकार एवं समाजसेवी |
मुख्य रचनाएँ | ‘मराठे आणि इंग्रेज’, ‘मराठी गद्याचा इंग्रेजी अवतार’ |
भाषा | मराठी, हिन्दी |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म भूषण |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | हिंदी को महाराष्ट्र की दूसरी सबसे बड़ी भाषा बनाने का श्रेय उनको ही है। इनको महाराष्ट्र का 'साहित्यिक भीष्म' भी कहा जाता है। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
दत्तो वामन पोतदार (अंग्रेज़ी: Datto Vaman Potdar, जन्म: 5 अगस्त, 1890 – मृत्यु: 6 अक्टूबर, 1979) साहित्यकार एवं प्रसिद्ध समाजसेवी थे। हिंदी को महाराष्ट्र की दूसरी सबसे बड़ी भाषा बनाने का श्रेय उनको ही है। इनको महाराष्ट्र का 'साहित्यिक भीष्म' भी कहा जाता है। इस कार्य के लिए उन्होंने आजीवन अविवाहित रहकर सेवा करने का दृढ़ निर्णय लिया। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन् 1967 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
संक्षिप्त परिचय
- दत्तो वामन पोतदार का जन्म 5 अगस्त, 1890 को महाराष्ट्र के बीरबंडी नामक कस्बे में हुआ था।
- मराठी इतिहास के प्रकांड विद्वान् पोतदार जी अपने आपमें एक संस्था थे।
- ये पूना के ‘भारत इतिहास संशोधन मंडल’ के संस्थापक थे जो कि आज एक महत्वपूर्ण स्थापना के रूप में इतिहास के शोध पर उपलब्धियाँ लेकर एक शीर्ष स्थापना मानी जाती है।
- मराठी भाषा में इन्होंने सैंकड़ों लेख, किताबें लिखीं, जिन्हें मान्यता प्राप्त है।
- दत्तो वामन पोतदार ने पूना विश्वविद्यालय के कुलपति के नाते भी बड़ी जिम्मेदारी निभाई, पर उनकी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि हैं- राष्ट्रभाषा हिंदी की सेवा।
- पूरे महाराष्ट्र में अनेक शिक्षण संस्थाएँ स्थापित कीं। पूना शहर में आप पुस्तकालय तथा वाचनालयों का जो जाल फैला दिखाई देता है, उसमें प्रत्येक में पोतदार जी को श्रेय जाता है।
- महाराष्ट्र के राष्ट्रभाषा-प्रचार कार्य में उनकी बड़ी सहायता रही।
- वे उत्तम वक्ता और कुशल संगठनकर्ता थे।
- मराठी साहित्य सम्मेलन के वे सभापति रहे।
प्रसिद्ध पुस्तकें
- ‘मराठे आणि इंग्रेज’
- ‘मराठी गद्याचा इंग्रेजी अवतार’
सम्मान और पुरस्कार
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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