"तबही लौं जीवो भलो -रहीम": अवतरणों में अंतर
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जीना तभी तक अच्छा है, जब तक कि दान देना कम न हो संसार में दान-रहित जीवन कुत्सित है। उसे सफल कैसे कहा जा सकता है ? | जीना तभी तक अच्छा है, जब तक कि दान देना कम न हो संसार में दान-रहित जीवन कुत्सित है। उसे सफल कैसे कहा जा सकता है ? | ||
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12:26, 18 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण
तबही लौं जीवो भलो, दीबो होय न धीम ।
जग में रहिबो कुचित गति, उचित होय ‘रहीम’ ॥
- अर्थ
जीना तभी तक अच्छा है, जब तक कि दान देना कम न हो संसार में दान-रहित जीवन कुत्सित है। उसे सफल कैसे कहा जा सकता है ?
रहीम के दोहे |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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