"भार झोंकि कै भार में -रहीम": अवतरणों में अंतर

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;अर्थ
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अहम् को यानी खुदी के भार को भाड़ में झोंककर हम तो पार उतर गये। बीच धार में तो वे ही डूबे, जिनके सिर पर अहंकार का भार रखा हुआ था, या जिन्होंने स्वयं भार रख लिया था|
अहम् को यानी खुदी के भार को भाड़ में झोंककर हम तो पार उतर गये। बीच धार में तो वे ही डूबे, जिनके सिर पर अहंकार का भार रखा हुआ था, या जिन्होंने स्वयं भार रख लिया था।


{{लेख क्रम3| पिछला=भजौं तो काको मैं भजौं -रहीम|मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=भावी काहू ना दही -रहीम}}
{{लेख क्रम3| पिछला=भजौं तो काको मैं भजौं -रहीम|मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=भावी काहू ना दही -रहीम}}

11:07, 20 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण

भार झोंकि कै भार में, ‘रहिमन’ उतरे पार ।
पै बूड़े मँझधार में , जिनके सिर पर भार ॥

अर्थ

अहम् को यानी खुदी के भार को भाड़ में झोंककर हम तो पार उतर गये। बीच धार में तो वे ही डूबे, जिनके सिर पर अहंकार का भार रखा हुआ था, या जिन्होंने स्वयं भार रख लिया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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