"बरु रहीम कानन भलो -रहीम": अवतरणों में अंतर

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निर्धन हो जाने पर बन्धु-बान्धवों के बीच रहना उचित नहीं। इससे तो वन में जाकर वस जाना और वहाँ के [[फल|फलों]] पर गुजर करना कहीं अच्छा है।
निर्धन हो जाने पर बन्धु-बान्धवों के बीच रहना उचित नहीं। इससे तो वन में जाकर वस जाना और वहाँ के [[फल|फलों]] पर गुजर करना कहीं अच्छा है।


{{लेख क्रम3| पिछला=रूप कथा पद -रहीम|मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=वे रहीम नर धन्य हैं -रहीम}}
{{लेख क्रम3| पिछला=रूप कथा पद -रहीम|मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=सबै कहावैं लसकरी -रहीम}}
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12:22, 27 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण

बरु ‘रहीम’ कानन भलो, वास करिय फल भोग ।
बंधु मध्य धनहीन ह्वै, बसिबो उचित न योग ॥

अर्थ

निर्धन हो जाने पर बन्धु-बान्धवों के बीच रहना उचित नहीं। इससे तो वन में जाकर वस जाना और वहाँ के फलों पर गुजर करना कहीं अच्छा है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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