"कहहु भगति पथ कवन प्रयासा": अवतरणों में अंतर
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कहहु भगति पथ कवन प्रयासा। जोग न मख जप तप उपवासा। | कहहु भगति पथ कवन प्रयासा। जोग न मख जप तप उपवासा। | ||
सरल सुभाव न मन कुटिलाई। जथा लाभ संतोष सदाई॥1॥ | सरल सुभाव न मन कुटिलाई। जथा लाभ संतोष सदाई॥1॥ |
13:08, 22 जून 2016 के समय का अवतरण
कहहु भगति पथ कवन प्रयासा
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
कहहु भगति पथ कवन प्रयासा। जोग न मख जप तप उपवासा। |
- भावार्थ
कहो तो, भक्ति मार्ग में कौन-सा परिश्रम है? इसमें न योग की आवश्यकता है, न यज्ञ, जप, तप और उपवास की! (यहाँ इतना ही आवश्यक है कि) सरल स्वभाव हो, मन में कुटिलता न हो और जो कुछ मिले उसी में सदा संतोष रखे॥1॥
कहहु भगति पथ कवन प्रयासा |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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