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करि दंडवत सप्रेम द्विज सिव सन्मुख कर जोरि। | करि दंडवत सप्रेम द्विज सिव सन्मुख कर जोरि। | ||
बिनय करत गदगद स्वर समुझि घोर गति मोरि॥107 ख॥ | बिनय करत गदगद स्वर समुझि घोर गति मोरि॥107 ख॥ | ||
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प्रेम सहित दण्डवत करके वे ब्राह्मण [[शिव|श्री शिव जी]] के सामने हाथ जोड़कर मेरी भयंकर गति (दण्ड) का विचार कर गदगद वाणी से विनती करने लगे-॥107 (ख)॥ | प्रेम सहित दण्डवत करके वे ब्राह्मण [[शिव|श्री शिव जी]] के सामने हाथ जोड़कर मेरी भयंकर गति (दण्ड) का विचार कर गदगद वाणी से विनती करने लगे-॥107 (ख)॥ | ||
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07:16, 10 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
करि दंडवत सप्रेम द्विज
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
सभी (7) काण्ड क्रमश: | बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड |
- रुद्राष्टक
करि दंडवत सप्रेम द्विज सिव सन्मुख कर जोरि। |
- भावार्थ
प्रेम सहित दण्डवत करके वे ब्राह्मण श्री शिव जी के सामने हाथ जोड़कर मेरी भयंकर गति (दण्ड) का विचार कर गदगद वाणी से विनती करने लगे-॥107 (ख)॥
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करि दंडवत सप्रेम द्विज | ![]() |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-526
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