"यह रहस्य रघुनाथ कर": अवतरणों में अंतर
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यह रहस्य रघुनाथ कर बेगि न जानइ कोइ। | यह रहस्य रघुनाथ कर बेगि न जानइ कोइ। | ||
जो जानइ रघुपति कृपाँ सपनेहुँ मोह न होइ॥116 क॥ | जो जानइ रघुपति कृपाँ सपनेहुँ मोह न होइ॥116 क॥ | ||
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04:53, 15 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
यह रहस्य रघुनाथ कर
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
सभी (7) काण्ड क्रमश: | बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड |
यह रहस्य रघुनाथ कर बेगि न जानइ कोइ। |
- भावार्थ
श्री रघुनाथ जी का यह रहस्य (गुप्त मर्म) जल्दी कोई भी नहीं जान पाता। श्री रघुनाथजी की कृपा से जो इसे जान जाता है, उसे स्वप्न में भी मोह नहीं होता॥116 (क)॥
यह रहस्य रघुनाथ कर |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-533
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