"सुनि भुसुंडि के बचन": अवतरणों में अंतर
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सुनि भुसुंडि के बचन सुभ देखि राम पद नेह। | सुनि भुसुंडि के बचन सुभ देखि राम पद नेह। | ||
बोलेउ प्रेम सहित गिरा गरुड़ बिगत संदेह॥124 ख॥ | बोलेउ प्रेम सहित गिरा गरुड़ बिगत संदेह॥124 ख॥ | ||
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भुशुण्डिजी के मंगलमय वचन सुनकर और [[श्रीराम|श्रीराम जी]] के चरणों में उनका अतिशय प्रेम देखकर संदेह से भलीभाँति छूटे हुए [[गरुड़|गरुड़ जी]] प्रेमसहित वचन बोले॥124 (ख)॥ | भुशुण्डिजी के मंगलमय वचन सुनकर और [[श्रीराम|श्रीराम जी]] के चरणों में उनका अतिशय प्रेम देखकर संदेह से भलीभाँति छूटे हुए [[गरुड़|गरुड़ जी]] प्रेमसहित वचन बोले॥124 (ख)॥ | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== |
05:36, 20 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
सुनि भुसुंडि के बचन
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
सभी (7) काण्ड क्रमश: | बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड |
सुनि भुसुंडि के बचन सुभ देखि राम पद नेह। |
- भावार्थ
भुशुण्डिजी के मंगलमय वचन सुनकर और श्रीराम जी के चरणों में उनका अतिशय प्रेम देखकर संदेह से भलीभाँति छूटे हुए गरुड़ जी प्रेमसहित वचन बोले॥124 (ख)॥
सुनि भुसुंडि के बचन |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-540
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