"करि पूजा मारीच तब": अवतरणों में अंतर

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<h4 style="text-align:center;">रामचरितमानस तृतीय सोपान (अरण्य काण्ड) : मारीच प्रसंग और स्वर्णमृग रूप में मारीच का मारा जाना, सीताजी द्वारा लक्ष्मण को भेजना</h4>
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रामचरितमानस तृतीय सोपान (अरण्य काण्ड) : मारीच प्रसंग और स्वर्णमृग रूप में मारीच का मारा जाना, सीताजी द्वारा लक्ष्मण को भेजना

करि पूजा मारीच तब
रामचरितमानस
रामचरितमानस
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड अरण्यकाण्ड
दोहा

करि पूजा मारीच तब सादर पूछी बात।
कवन हेतु मन ब्यग्र अति अकसर आयहु तात॥24॥

भावार्थ

तब मारीच ने उसकी पूजा करके आदरपूर्वक बात पूछी- हे तात! आपका मन किस कारण इतना अधिक व्यग्र है और आप अकेले आए हैं?॥24॥



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करि पूजा मारीच तब
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दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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