"रामचरितमानस सप्तम सोपान (उत्तरकाण्ड)": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
<h4 style="text-align:center;">रामचरितमानस सप्तम सोपान (उत्तर काण्ड) : मंगलाचरण</h4> | |||
{{सूचना बक्सा पुस्तक | {{सूचना बक्सा पुस्तक | ||
|चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg | |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg | ||
पंक्ति 61: | पंक्ति 62: | ||
कुन्द के फूल, [[चंद्रमा]] और [[शंख]] के समान सुंदर गौरवर्ण, जगज्जननी श्री [[पार्वती|पार्वती जी]] के पति, वान्छित फल के देने वाले, (दुखियों पर सदा), दया करने वाले, सुंदर [[कमल]] के समान नेत्र वाले, [[कामदेव]] से छुड़ाने वाले (कल्याणकारी) श्री [[शंकर |शंकर जी]] को मैं नमस्कार करता हूँ॥3॥ | कुन्द के फूल, [[चंद्रमा]] और [[शंख]] के समान सुंदर गौरवर्ण, जगज्जननी श्री [[पार्वती|पार्वती जी]] के पति, वान्छित फल के देने वाले, (दुखियों पर सदा), दया करने वाले, सुंदर [[कमल]] के समान नेत्र वाले, [[कामदेव]] से छुड़ाने वाले (कल्याणकारी) श्री [[शंकर |शंकर जी]] को मैं नमस्कार करता हूँ॥3॥ | ||
{{लेख क्रम4| पिछला= | {{लेख क्रम4| पिछला=रामचरितमानस उत्तरकाण्ड |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=रहा एक दिन अवधि कर}} | ||
13:44, 4 अगस्त 2016 के समय का अवतरण
रामचरितमानस सप्तम सोपान (उत्तर काण्ड) : मंगलाचरण
रामचरितमानस सप्तम सोपान (उत्तरकाण्ड)
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
सभी (7) काण्ड क्रमश: | बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड |
केकीकण्ठाभनीलं सुरवरविलसद्विप्रपादाब्जचिह्नं |
- भावार्थ
मोर के कण्ठ की आभा के समान (हरिताभ) नीलवर्ण, देवताओं में श्रेष्ठ, ब्राह्मण (भृगुजी) के चरणकमल के चिह्न से सुशोभित, शोभा से पूर्ण, पीताम्बरधारी, कमल नेत्र, सदा परम प्रसन्न, हाथों में बाण और धनुष धारण किए हुए, वानर समूह से युक्त भाई लक्ष्मण जी से सेवित, स्तुति किए जाने योग्य, श्री जानकी जी के पति, रघुकुल श्रेष्ठ, पुष्पक विमान पर सवार श्री रामचंद्र जी को मैं निरंतर नमस्कार करता हूँ॥1॥
कोसलेन्द्रपदकन्जमंजुलौ कोमलावजमहेशवन्दितौ। |
- भावार्थ
कोसलपुरी के स्वामी श्री रामचंद्रजी के सुंदर और कोमल दोनों चरणकमल ब्रह्मा जी और शिव जी द्वारा वन्दित हैं, श्री जानकीजी के करकमलों से दुलराए हुए हैं और चिन्तन करने वाले के मन रूपी भौंरे के नित्य संगी हैं अर्थात् चिन्तन करने वालों का मन रूपी भ्रमर सदा उन चरणकमलों में बसा रहता है॥2॥
कुन्दइन्दुदरगौरसुन्दरं अम्बिकापतिमभीष्टसिद्धिदम्। |
भावार्थ कुन्द के फूल, चंद्रमा और शंख के समान सुंदर गौरवर्ण, जगज्जननी श्री पार्वती जी के पति, वान्छित फल के देने वाले, (दुखियों पर सदा), दया करने वाले, सुंदर कमल के समान नेत्र वाले, कामदेव से छुड़ाने वाले (कल्याणकारी) श्री शंकर जी को मैं नमस्कार करता हूँ॥3॥
रामचरितमानस सप्तम सोपान (उत्तरकाण्ड) |
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख