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| <quiz display=simple> | | <quiz display=simple> |
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| {भावों और विचारों को प्रकट करने वाले मानव-मुख से निकले ध्वनि-संकेतों को क्या कहते हैं? | | {भारतीय [[आर्य|आर्यों]] की [[भाषा]] में 'ट' वर्ग की ध्वनियाँ किसकी देन हैं? |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -वर्ण | | +द्रविड़ भाषाओं की |
| -[[व्यंजन (व्याकरण)|व्यंजन]] | | -तिब्बती भाषाओं की |
| +[[भाषा]]
| | -लैटिन भाषा की |
| -लिपि | | -किसी की नहीं |
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| {एक भाषा दूसरी भाषा से क्या लेती है? | | {'ट', 'ठ', 'ड', 'ढ' वर्णों का प्रयोग होता है- |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -[[अक्षर]] | | -माधुर्य |
| -[[ध्वनि]] | | -प्रसाद |
| +शब्दावली | | +ओज |
| -इनमें से कोई नहीं | | -इनमें से कोई नहीं |
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| {सर्वप्रथम भाषा का प्रयोग किस रूप में हुआ? | | {[[वीर रस]] का स्थायी भाव क्या होता है? |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| +सांकेतिक
| | -रति |
| -मौखिक | | -हास्य |
| -लिखित
| | +उत्साह |
| -इनमें से कोई नहीं | | -क्रोध |
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| {[[संस्कृत भाषा]] का प्राचीनतम रूप कहाँ दिखाई पड़ता है? | | {स्थायी भावों की कुल संख्या कितनी है? |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| +[[ऋग्वेद]]
| | -10 |
| -[[उपनिषद]] | | +9 |
| -[[रामायण]]
| | -11 |
| -[[महाभारत]] | | -12 |
| ||[[चित्र:Rigveda.jpg|100px|right]]ऋग्वेद सबसे प्राचीनतम ग्रन्थ है। 'ॠक' का अर्थ होता है, [[छन्द|छन्दों]] रचना या [[श्लोक]]। [[ऋग्वेद]] के सूक्त विविध [[देवता|देवताओं]] की स्तुति करने वाले भाव भरे गीत हैं। इनमें [[भक्ति]]-भाव की प्रधानता है। यद्यपि ऋग्वेद में अन्य प्रकार के सूक्त भी हैं, परन्तु देवताओं की स्तुति करने वाले स्त्रोतों की प्रधानता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ऋग्वेद]]
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| {[[हिन्दी भाषा]] का जन्म हुआ है- | | {'धनाक्षरी छंद' किस प्रकार का [[छंद]] है? |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -लौकिक [[संस्कृत]] से | | -मात्रिक |
| +[[पाली भाषा|पाली]] [[प्राकृत भाषा|प्राकृत]] से | | +वर्णित |
| -मागधी से | | -मिश्र |
| -वैदिक [[संस्कृत]] से
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| ||पालि प्राचीन [[भारत]] की एक [[भाषा]] थी। यह हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की एक बोली या [[प्राकृत]] है। [[प्राकृत भाषा]] भारतीय आर्यभाषा का एक प्राचीन रूप है। इसके प्रयोग का समय 500 ई.पू. से 1000 ई. सन तक माना जाता है। धार्मिक कारणों से जब [[संस्कृत]] का महत्त्व कम होने लगा तो प्राकृत भाषा अधिक व्यवहार में आने लगी। इसके चार रूप विशेषत: उल्लेखनीय हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[प्राकृत भाषा|प्राकृत]]
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| ||[[पालि भाषा]] थेरवादी [[बौद्ध]] धर्मशास्त्र की पवित्र भाषा है। उत्तर भारतीय मूल की मध्य भारतीय-आर्य भाषा है। पालि भाषा का इतिहास बुद्धकाल से शुरू होता है। [[बुद्ध]] अपनी शिक्षाओं के माध्यम के लिए विद्वानों की भाषा [[संस्कृत]] के विरुद्ध थे, और अपने अनुयायियों को स्थानीय बोलियों के प्रयोग के लिए प्रोत्साहित करते थे, इसलिए [[बौद्ध धर्म]] शास्त्रीय भाषा के रूप में पालि भाषा का उपयोग शुरू हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पालि भाषा]]
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| {'ग्रियर्सन' ने किसे 'देशी हिन्दुस्तानी' कहा है?
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| +खड़ी बोली
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| -दक्खिनी हिन्दी
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| -[[अवधी भाषा|अवधी]]
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| -इनमें से कोई नहीं | | -इनमें से कोई नहीं |
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| {स्वयंभू ने किस [[भाषा]] को 'देसी भाषा' कहा है?
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| -[[संस्कृत]]
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| -[[प्राकृत]]
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| +[[अपभ्रंश भाषा|अपभ्रंश]]
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| -[[पालि भाषा|पालि]]
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| ||सातवीं शताब्दी के कवि 'दंडी' ने 'आभीर' जैसी काव्यात्मक भाषाओं को अपभ्रंश कहा है। इस तरह इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है, कि तीसरी शताब्दी में निश्चित रूप से अपभ्रंश के नाम से ज्ञात बोलियाँ थीं, जो क्रमशः साहित्यिक स्तर तक विकसित हुईं। छठी शताब्दी में 'भामह' ने कविता को [[संस्कृत]], [[प्राकृत]] तथा [[अपभ्रंश भाषा]] के रूप में वर्गीकृत किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अपभ्रंश भाषा|अपभ्रंश]]
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| {किस पुस्तक में [[हिन्दी]] का सर्वप्रथम उल्लेख हुआ?
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| |type="()"}
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| -[[महाभारत]]
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| +[[रामचरितमानस]]
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| -[[ऋग्वेद]]
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| -अवेस्ता
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| ||[[चित्र:Tulsidas.jpg|100px|right]]'रामचरितमानस' [[तुलसीदास]] की सबसे प्रमुख कृति है। इसकी रचना संवत 1631 ई. की [[रामनवमी]] को [[अयोध्या]] में प्रारम्भ हुई थी, किन्तु इसका कुछ अंश [[काशी]] ([[वाराणसी]]) में भी निर्मित हुआ था। यह इसके [[किष्किन्धा काण्ड वा. रा.|किष्किन्धा काण्ड]] के प्रारम्भ में आने वाले एक सोरठे से निकलती है, उसमें काशी सेवन का उल्लेख है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[रामचरितमानस]]
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| {[[शौरसेनी भाषा|शौरसेनी]], पैशाची, महाराष्ट्री, अर्द्धमागधी और मागधी, ये निम्न में से किस [[भाषा]] के पाँच भेद हैं?
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| |type="()"}
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| -[[पालि भाषा|पालि]]
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| +[[प्राकृत]]
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| -मागधी
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| -[[संस्कृत]]
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| ||[[प्राकृत भाषा]] भारतीय आर्यभाषा का एक प्राचीन रूप है। इसके प्रयोग का समय 500 ई.पू. से 1000 ई. सन तक माना जाता है। धार्मिक कारणों से जब [[संस्कृत]] का महत्त्व कम होने लगा, तो प्राकृत भाषा अधिक व्यवहार में आने लगी। इसके चार रूप विशेषत: उल्लेखनीय हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[प्राकृत]]
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| {भारतीय [[आर्य|आर्यों]] की [[भाषा]] में 'ट' वर्ग की ध्वनियाँ किसकी देन हैं?
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| |type="()"}
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| +द्रविड़ भाषाओं की
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| -तिब्बती भाषाओं की
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| -लैटिन भाषा की
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| -किसी की नहीं
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| </quiz> | | </quiz> |
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