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'''रागदरबारी''' [[हिन्दी]] के प्रसिद्ध साहित्यकार [[श्रीलाल शुक्ल]] द्वारा रचित व्यंग्य रचना है। इस रचना के लिये श्रीलाल शुक्ल जी को [[1970]] में '[[साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी|साहित्य अकादमी पुरस्कार]]' से सम्मानित किया गया।
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'''रागदरबारी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Raagdarbari'') [[हिन्दी]] के प्रसिद्ध साहित्यकार [[श्रीलाल शुक्ल]] द्वारा रचित व्यंग्य रचना है। इस रचना के लिये श्रीलाल शुक्ल जी को [[1970]] में '[[साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी|साहित्य अकादमी पुरस्कार]]' से सम्मानित किया गया।


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*यह ऐसा [[उपन्यास]] है, जो [[गाँव]] की [[कथा]] के माध्यम से आधुनिक भारतीय जीवन की मूल्यहीनता को सहजता और निर्ममता से अनावृत करता है। शुरू से अन्त तक इतने निस्संग और सोद्देश्य व्यंग्य के साथ लिखा गया हिंदी का शायद यह पहला वृहत् उपन्यास है।
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*उपन्यास की कथा भूमि एक बड़े नगर से कुछ दूर बसे गाँव शिवपालगंज की है, जहाँ की जिन्दगी प्रगति और विकास के समस्त नारों के बावजूद, निहित स्वार्थों और अनेक अवांछनीय तत्वों के आघातों के सामने घिसट रही है। शिवपालगंज की पंचायत, कॉलेज की प्रबन्ध समिति और कोआपरेटिव सोसाइटी के सूत्रधार वैद्यजी साक्षात वह राजनीतिक संस्कृति हैं, जो प्रजातन्त्र और लोकहित के नाम पर हमारे चारों ओर फल-फूल रही हैं।
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रागदरबारी
रागदरबारी का आवरण पृष्ठ
रागदरबारी का आवरण पृष्ठ
लेखक श्रीलाल शुक्ल
मूल शीर्षक 'रागदरबारी'
प्रकाशन तिथि 1938
ISBN 81-267-0478-0
देश भारत
पृष्ठ: 330
भाषा हिन्दी
शैली व्यंग्य
विशेष 1968 में 'रागदरबारी' का प्रकाशन हुआ और 1969 में इस पर श्रीलाल शुक्ल को 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' मिला।

रागदरबारी (अंग्रेज़ी: Raagdarbari) हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल द्वारा रचित व्यंग्य रचना है। इस रचना के लिये श्रीलाल शुक्ल जी को 1970 में 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।

  • यह ऐसा उपन्यास है, जो गाँव की कथा के माध्यम से आधुनिक भारतीय जीवन की मूल्यहीनता को सहजता और निर्ममता से अनावृत करता है। शुरू से अन्त तक इतने निस्संग और सोद्देश्य व्यंग्य के साथ लिखा गया हिंदी का शायद यह पहला वृहत् उपन्यास है।
  • उपन्यास ‘राग दरबारी’ का लेखन 1964 के अन्त में शुरू हुआ। अपने अन्तिम रूप में 1967 में यह समाप्त हुआ।
  • 1968 में इसका प्रकाशन हुआ और 1969 में इस पर श्रीलाल शुक्ल को 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' मिला। 1986 में एक दूरदर्शन-धारावाहिक के रूप में इसे लाखों दर्शकों की सराहना प्राप्त हुई।
  • राग दरबारी व्यंग्य-कथा नहीं है। इसमें श्रीलाल शुक्ल जी ने स्वतंत्रता के बाद के भारत के ग्रामीण जीवन की मूल्यहीनता को परत-दर-परत उघाड़ कर रख दिया है।
  • उपन्यास की कथा भूमि एक बड़े नगर से कुछ दूर बसे गाँव शिवपालगंज की है, जहाँ की जिन्दगी प्रगति और विकास के समस्त नारों के बावजूद, निहित स्वार्थों और अनेक अवांछनीय तत्वों के आघातों के सामने घिसट रही है। शिवपालगंज की पंचायत, कॉलेज की प्रबन्ध समिति और कोआपरेटिव सोसाइटी के सूत्रधार वैद्यजी साक्षात वह राजनीतिक संस्कृति हैं, जो प्रजातन्त्र और लोकहित के नाम पर हमारे चारों ओर फल-फूल रही हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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