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-[[हरिश्चंद्र]]
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-[[दुष्यंत]]
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||[[चित्र:Dhruva-Temple-Madhuvan.jpg|100px|right|border|ध्रुव]]'ध्रुव' [[उत्तानपाद|महाराज उत्तानपाद]] के पुत्र थे। उत्तानपाद की [[सुनीति]] और [[सुरुचि]] नामक दो भार्यायें थीं। राजा उत्तानपाद के सुनीति से [[ध्रुव]] तथा सुरुचि से [[उत्तम]] नामक पुत्र उत्पन्न हुये। यद्यपि सुनीति बड़ी रानी थीं, किन्तु राजा उत्तानपाद का प्रेम सुरुचि के प्रति अधिक था। अपनी विमाता के कटु वचनों के कारण बालक ध्रुव वन चले गये और [[विष्णु|भगवान विष्णु]] की कठिन तपस्या की। भगवान ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि- "हे राजकुमार! मैं तेरे अन्तःकरण की बात को जानता हूँ। तेरी सभी इच्छायें पूर्ण होंगी। तेरी [[भक्ति]] से प्रसन्न होकर मैं तुझे वह लोक प्रदान करता हूँ, जिसके चारों ओर ज्योतिष-चक्र घूमता रहता है तथा जिसके आधार पर यह सारे [[ग्रह]], [[नक्षत्र]] घूमते हैं। प्रलयकाल में भी जिसका नाश नहीं होता। [[सप्तर्षि]] भी नक्षत्रों के साथ जिसकी प्रदक्षिणा करते रहते हैं।"{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ध्रुव]]
||[[चित्र:Dhruva-Temple-Madhuvan.jpg|100px|right|border|ध्रुव जी मन्दिर, मधुवन, मथुरा]]'ध्रुव' [[उत्तानपाद|महाराज उत्तानपाद]] के पुत्र थे। उत्तानपाद की [[सुनीति]] और [[सुरुचि]] नामक दो भार्यायें थीं। राजा उत्तानपाद के सुनीति से [[ध्रुव]] तथा सुरुचि से [[उत्तम]] नामक पुत्र उत्पन्न हुये। यद्यपि सुनीति बड़ी रानी थीं, किन्तु राजा उत्तानपाद का प्रेम सुरुचि के प्रति अधिक था। अपनी विमाता के कटु वचनों के कारण बालक ध्रुव वन चले गये और [[विष्णु|भगवान विष्णु]] की कठिन तपस्या की। भगवान ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि- "हे राजकुमार! मैं तेरे अन्तःकरण की बात को जानता हूँ। तेरी सभी इच्छायें पूर्ण होंगी। तेरी [[भक्ति]] से प्रसन्न होकर मैं तुझे वह लोक प्रदान करता हूँ, जिसके चारों ओर ज्योतिष-चक्र घूमता रहता है तथा जिसके आधार पर यह सारे [[ग्रह]], [[नक्षत्र]] घूमते हैं। प्रलयकाल में भी जिसका नाश नहीं होता। [[सप्तर्षि]] भी नक्षत्रों के साथ जिसकी प्रदक्षिणा करते रहते हैं।"{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ध्रुव]]
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09:31, 27 जनवरी 2017 के समय का अवतरण