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{{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय
'''अभिप्रेरण''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Motivation'') का अर्थ है, किसी व्यक्ति के लक्ष्योन्मुख (goal-oriented) व्यवहार को सक्रिय या उर्जान्वित करना है। अभिप्रेरण दो तरह का होता है - आन्तरिक (intrinsic) या वाह्य (extrinsic)। अभिप्रेरण के बहुत से सिद्धान्त है। हमारे व्यवहार किसी-न-किसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए होते है। हम जो कुछ करते है उनके पीछे कोई न कोई प्रयोजन होता है। अभिप्रेरण हमारे सभी कार्यों का आवश्यक आधार है। हमारी शारीरिक और मानसिक आवश्यकताएँ अभिप्रेरण के रूप में हमारे विभिन्न प्रकार के व्यवहारों को प्रेरित करती है।
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|चित्र का नाम=ब्रज का मौर्य काल
अभिप्रेरण के विकास में मूल कारण हमारी शारीरिक आवश्यकताएँ, जैसे भूख और प्यास, होती है। लेकिन आयु और अनुभव में वृद्धि के साथ-साथ हमारी शारीरिक आवश्यकताएँ सामाजिक और सांस्कृतिक अर्थ ग्रहण कर लेती है। इनके साथ हमारे भावों और विचारों, रुचियों और अभिवृत्तियों का संबंध हो जाता है। इस प्रकार अभिप्रेरण का आरंभ में जो पार्थिव आधार था वह कालांतर में [[आयु]] और अनुभव में वृद्धि के फलस्वरूप सामाजिक और सांस्कृतिक रूप धारण कर लेता है। पशु जगत में अभिप्रेरण का मूल आधार शारीरिक आवश्यकताएँ होती है। लेकिन मानवजगत में सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियाँ अभिप्रेरण का स्रोत बन जाती है।
|विवरण=[[मगध]] राज्य की शक्ति महात्मा [[बुद्ध]] से पहले ही बहुत बढ़ने लगी थी। पहले मगध राज्य की राजधानी राजगृह थी, लेकिन बाद में [[पाटलिपुत्र]] ([[पटना]]) मगध साम्राज्य  की राजधानी हुई।
 
|शीर्षक 1=ब्रज क्षेत्र
==== आवश्यक अंग ====
|पाठ 1=
अभिप्रेरण का आवश्यक अंग प्रयोजन (मोटिव) है। वस्तुत: प्रयोजन के क्रियात्मक रूप (फ़ेनामेनन) को ही अभिप्रेरण कहते है। प्रयोजन कई प्रकार के होते है, लेकिन स्थूल रूप से उन्हें शारीरिक और मनोवैज्ञानिक कोटियों में बाँट सकते है। अवगम (लर्निग) द्वारा प्रयोजन में संशोधन होता है। बालक की शिक्षा-दीक्षा उसके शारीरिक प्रयोजनों को वांछित सामाजिक और सांस्कृतिक प्रयोजनों का रूप प्रदान करती है। इन्हीं प्रयोजनों के आधार पर किसी व्यक्ति का अभिप्रेरण बनता है। यह कथन ठीक है कि बिना प्रयोजनों के अभिप्रेरण का अस्तित्त्व ही नहीं होता। व्यक्ति किस दिशा में, किस सीमा तक, कितनी शक्ति के साथ प्रयास करेगा, रुचि लेगा और प्रेरित होगा, यह उसके प्रयोजनों पर निर्भर है। अभिप्रेरण में व्यक्ति के विभिन्न प्रयोजन क्रियाशील होकर उसके कार्यों और व्यवहारों को दिशा प्रदान करते है। अभिप्रेरण का संबंध व्यक्ति के जीवनमूल्यों और विश्वासों से भी होता है। व्यक्ति ज्यों-ज्यों विकसित होता है त्यों-त्यों वह अपने जीवनमूल्यों और विश्वासों में अभिप्रेरित होता है। शिक्षा द्वारा व्यक्ति में वांछित जीवनमूल्यों और विश्वासों के प्रति सम्मान पैदा किया जाता है। यही जीवनमूल्य और विश्वास व्यक्ति के अभिप्रेरण के आवश्यक अंग बन जाते है। इस प्रकार अभिप्रेरण शारीरिक और मानसिक प्रयोजनों का क्रियाशील रूप है। इसका सामाजिक और सांस्कृतिक आधार होता है और इसमें व्यक्ति के जीवनमूल्यों और विश्वासों का महत्वपूर्ण स्थान है।<ref>सं.ग्रं.---यंग : मोटिवेशन ऑव बिहेवियर; मैक्लैंड : स्टडीज इन मोटिवेशन; मैसलो : मोटिवेशन ऐंड पर्सनालिटी।</ref><ref>{{cite web |url=http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%A3 |title=अभिप्रेरण|accessmonthday=09 फरवरी |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतखोज |language= हिंदी}}</ref>
|शीर्षक 2=ब्रज के केंद्र
 
|पाठ 2=[[मथुरा]] एवं [[वृन्दावन]]
 
|शीर्षक 3=ब्रज के वन
 
|पाठ 3=[[कोटवन]], [[काम्यवन]], [[कुमुदवन]], [[कोकिलावन]], [[खदिरवन]], [[तालवन]], [[बहुलावन]], [[बिहारवन]], [[बेलवन]], [[भद्रवन]], [[भांडीरवन]], [[मधुवन]], [[महावन]], [[लौहजंघवन]] एवं [[वृन्दावन]]
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
|शीर्षक 4=भाषा
<references/>
|पाठ 4=[[हिंदी]] और [[ब्रजभाषा]]
==संबंधित लेख==
|शीर्षक 5=प्रमुख पर्व एवं त्योहार
__INDEX__
|पाठ 5=[[होली]], [[कृष्ण जन्माष्टमी]], [[यम द्वितीया]], [[गुरु पूर्णिमा]], [[राधाष्टमी]], [[गोवर्धन पूजा]], [[गोपाष्टमी]], [[नन्दोत्सव]] एवं [[कंस मेला]]
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|शीर्षक 6=प्रमुख दर्शनीय स्थल
|पाठ 6=[[कृष्ण जन्मभूमि]], [[द्वारिकाधीश मन्दिर]], [[राजकीय संग्रहालय मथुरा|राजकीय संग्रहालय]], [[बांके बिहारी मन्दिर वृन्दावन|बांके बिहारी मन्दिर]], [[रंग नाथ जी मन्दिर वृन्दावन|रंग नाथ जी मन्दिर]], [[गोविन्द देव मन्दिर वृन्दावन|गोविन्द देव मन्दिर]], [[इस्कॉन मन्दिर वृन्दावन|इस्कॉन मन्दिर]], [[मदन मोहन मन्दिर वृन्दावन|मदन मोहन मन्दिर]], [[दानघाटी गोवर्धन|दानघाटी मंदिर]], [[मानसी गंगा गोवर्धन|मानसी गंगा]], [[कुसुम सरोवर गोवर्धन|कुसुम सरोवर]], [[जयगुरुदेव मन्दिर मथुरा|जयगुरुदेव मन्दिर]], [[राधा रानी मंदिर बरसाना|राधा रानी मंदिर]], [[नन्द जी मंदिर नन्दगाँव|नन्द जी मंदिर]], [[विश्राम घाट मथुरा|विश्राम घाट ]], [[बलदेव मन्दिर मथुरा|दाऊजी मंदिर]]
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|संबंधित लेख=[[ब्रज का पौराणिक इतिहास]], [[ब्रज चौरासी कोस की यात्रा]], [[मूर्ति कला मथुरा]]
|अन्य जानकारी=मौर्य सम्राट [[अशोक]] [[मगध]] साम्राज्य का ही सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक नहीं था वरन् वह भारत वर्ष के महान सम्राटों में से एक था। ई.. पूर्व 232 में अशोक की मृत्यु के बाद क्रमश: सात मौर्य शासक मगध साम्राज्य के अधिकारी हुए।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन={{अद्यतन|12:41, 3 नवम्बर 2016 (IST)}}
}}<noinclude>[[Category:ब्रज]]</noinclude>

11:01, 9 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण

अभिप्रेरण (अंग्रेज़ी: Motivation) का अर्थ है, किसी व्यक्ति के लक्ष्योन्मुख (goal-oriented) व्यवहार को सक्रिय या उर्जान्वित करना है। अभिप्रेरण दो तरह का होता है - आन्तरिक (intrinsic) या वाह्य (extrinsic)। अभिप्रेरण के बहुत से सिद्धान्त है। हमारे व्यवहार किसी-न-किसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए होते है। हम जो कुछ करते है उनके पीछे कोई न कोई प्रयोजन होता है। अभिप्रेरण हमारे सभी कार्यों का आवश्यक आधार है। हमारी शारीरिक और मानसिक आवश्यकताएँ अभिप्रेरण के रूप में हमारे विभिन्न प्रकार के व्यवहारों को प्रेरित करती है।

अभिप्रेरण के विकास में मूल कारण हमारी शारीरिक आवश्यकताएँ, जैसे भूख और प्यास, होती है। लेकिन आयु और अनुभव में वृद्धि के साथ-साथ हमारी शारीरिक आवश्यकताएँ सामाजिक और सांस्कृतिक अर्थ ग्रहण कर लेती है। इनके साथ हमारे भावों और विचारों, रुचियों और अभिवृत्तियों का संबंध हो जाता है। इस प्रकार अभिप्रेरण का आरंभ में जो पार्थिव आधार था वह कालांतर में आयु और अनुभव में वृद्धि के फलस्वरूप सामाजिक और सांस्कृतिक रूप धारण कर लेता है। पशु जगत में अभिप्रेरण का मूल आधार शारीरिक आवश्यकताएँ होती है। लेकिन मानवजगत में सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियाँ अभिप्रेरण का स्रोत बन जाती है।

आवश्यक अंग

अभिप्रेरण का आवश्यक अंग प्रयोजन (मोटिव) है। वस्तुत: प्रयोजन के क्रियात्मक रूप (फ़ेनामेनन) को ही अभिप्रेरण कहते है। प्रयोजन कई प्रकार के होते है, लेकिन स्थूल रूप से उन्हें शारीरिक और मनोवैज्ञानिक कोटियों में बाँट सकते है। अवगम (लर्निग) द्वारा प्रयोजन में संशोधन होता है। बालक की शिक्षा-दीक्षा उसके शारीरिक प्रयोजनों को वांछित सामाजिक और सांस्कृतिक प्रयोजनों का रूप प्रदान करती है। इन्हीं प्रयोजनों के आधार पर किसी व्यक्ति का अभिप्रेरण बनता है। यह कथन ठीक है कि बिना प्रयोजनों के अभिप्रेरण का अस्तित्त्व ही नहीं होता। व्यक्ति किस दिशा में, किस सीमा तक, कितनी शक्ति के साथ प्रयास करेगा, रुचि लेगा और प्रेरित होगा, यह उसके प्रयोजनों पर निर्भर है। अभिप्रेरण में व्यक्ति के विभिन्न प्रयोजन क्रियाशील होकर उसके कार्यों और व्यवहारों को दिशा प्रदान करते है। अभिप्रेरण का संबंध व्यक्ति के जीवनमूल्यों और विश्वासों से भी होता है। व्यक्ति ज्यों-ज्यों विकसित होता है त्यों-त्यों वह अपने जीवनमूल्यों और विश्वासों में अभिप्रेरित होता है। शिक्षा द्वारा व्यक्ति में वांछित जीवनमूल्यों और विश्वासों के प्रति सम्मान पैदा किया जाता है। यही जीवनमूल्य और विश्वास व्यक्ति के अभिप्रेरण के आवश्यक अंग बन जाते है। इस प्रकार अभिप्रेरण शारीरिक और मानसिक प्रयोजनों का क्रियाशील रूप है। इसका सामाजिक और सांस्कृतिक आधार होता है और इसमें व्यक्ति के जीवनमूल्यों और विश्वासों का महत्वपूर्ण स्थान है।[1][2]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सं.ग्रं.---यंग : मोटिवेशन ऑव बिहेवियर; मैक्लैंड : स्टडीज इन मोटिवेशन; मैसलो : मोटिवेशन ऐंड पर्सनालिटी।
  2. अभिप्रेरण (हिंदी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 09 फरवरी, 2017।

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