"श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 21 श्लोक 19-20": अवतरणों में अंतर
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परी सखी! इन साँवरे-गोरे किशोरों की तो गति ही निराली है। जब वे सिरपर नोवना (दुहते समय गाय के पैर बाँधने की रस्सी) लपेटकर और कंधो पर फंदा (भागने वाली गायों को पकड़ने की रस्सी) रखकर गायों को एक वन से दूसरे वन में हाँककर ले जाते हैं, साथ में ग्वालबाल भी होते हैं और मधुर-मधुर संगीत गाते हुए बाँसुरी की तान छेड़ते हैं, उस समय मनुष्यों की तो बात ही क्या अन्य शरीरधारियों में भी चलने वाले चेतन पशु-पक्षी और जड़ नदी आदि तो स्थिर हो जाते हैं, तथा अचल-वृक्षों को भी रोमांच हो आता है। जादूभरी वंशी का और क्या चमत्कार सुनाऊँ । | परी सखी! इन साँवरे-गोरे किशोरों की तो गति ही निराली है। जब वे सिरपर नोवना (दुहते समय गाय के पैर बाँधने की रस्सी) लपेटकर और कंधो पर फंदा (भागने वाली गायों को पकड़ने की रस्सी) रखकर गायों को एक वन से दूसरे वन में हाँककर ले जाते हैं, साथ में ग्वालबाल भी होते हैं और मधुर-मधुर संगीत गाते हुए बाँसुरी की तान छेड़ते हैं, उस समय मनुष्यों की तो बात ही क्या अन्य शरीरधारियों में भी चलने वाले चेतन पशु-पक्षी और जड़ नदी आदि तो स्थिर हो जाते हैं, तथा अचल-वृक्षों को भी रोमांच हो आता है। जादूभरी वंशी का और क्या चमत्कार सुनाऊँ । | ||
परीक्षित्! वृन्दावनविहारी श्रीकृष्ण की ऐसी-ऐसी एक नहीं, अनेक लीलाएँ हैं। गोपियाँ प्रति-दिन आपस में उनका वर्णन करतीं और तन्मय हो जातीं। भगवान लीलाएँ उनके | परीक्षित्! वृन्दावनविहारी श्रीकृष्ण की ऐसी-ऐसी एक नहीं, अनेक लीलाएँ हैं। गोपियाँ प्रति-दिन आपस में उनका वर्णन करतीं और तन्मय हो जातीं। भगवान लीलाएँ उनके हृदय में स्फुरित होने लगतीं । | ||
09:57, 24 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण
दशम स्कन्ध: एकविंशोऽध्यायः (21) (पूर्वार्ध)
श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: एकविंशोऽध्यायः श्लोक 19-20 का हिन्दी अनुवाद
परी सखी! इन साँवरे-गोरे किशोरों की तो गति ही निराली है। जब वे सिरपर नोवना (दुहते समय गाय के पैर बाँधने की रस्सी) लपेटकर और कंधो पर फंदा (भागने वाली गायों को पकड़ने की रस्सी) रखकर गायों को एक वन से दूसरे वन में हाँककर ले जाते हैं, साथ में ग्वालबाल भी होते हैं और मधुर-मधुर संगीत गाते हुए बाँसुरी की तान छेड़ते हैं, उस समय मनुष्यों की तो बात ही क्या अन्य शरीरधारियों में भी चलने वाले चेतन पशु-पक्षी और जड़ नदी आदि तो स्थिर हो जाते हैं, तथा अचल-वृक्षों को भी रोमांच हो आता है। जादूभरी वंशी का और क्या चमत्कार सुनाऊँ ।
परीक्षित्! वृन्दावनविहारी श्रीकृष्ण की ऐसी-ऐसी एक नहीं, अनेक लीलाएँ हैं। गोपियाँ प्रति-दिन आपस में उनका वर्णन करतीं और तन्मय हो जातीं। भगवान लीलाएँ उनके हृदय में स्फुरित होने लगतीं ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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