"रामायण सामान्य ज्ञान 3": अवतरणों में अंतर

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{[[राम]] और [[हनुमान]] का मिलन किस [[पर्वत]] के पास हुआ था?
|type="()"}
+[[ऋष्यमूक पर्वत|ऋष्यमूक]]
-गंधमादन
-[[कैलास पर्वत|कैलास]]
-[[पारसनाथ शिखर|पारसनाथ]]
||[[चित्र:Ram-Hanuman.jpg|right|100px|राम-हनुमान मिलन]][[वाल्मीकि रामायण]] में वर्णित वानरों की राजधानी [[किष्किंधा]] के निकट 'ऋष्यमूक पर्वत' स्थित था। ऋष्यमूक पर्वत [[रामायण]] की घटनाओं से सम्बद्ध [[दक्षिण भारत]] का एक पवित्र पर्वत है। यहाँ [[विरूपाक्ष मन्दिर]] के पास से ऋष्यमूक पर्वत के लिए मार्ग जाता है। यहीं पर [[हनुमान]] की भेंट श्री राम से हुई, जिनके द्वारा [[सुग्रीव]] और [[राम]] की मित्रता हुई। यहाँ [[तुंगभद्रा नदी]] [[धनुष अस्त्र|धनुष]] के आकार में बहती है। [[सुग्रीव]] किष्किंधा से निष्कासित होने पर अपने भाई [[बालि]] के डर से इसी [[पर्वत]] पर छिप कर रहता था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ऋष्यमूक पर्वत|ऋष्यमूक]]
{[[हनुमान]] के [[पिता]] का नाम क्या था?
|type="()"}
-[[सुग्रीव]]
-[[जामवन्त]]
+[[केसरी वानर राज|केसरी]]
-इनमें से कोई नहीं
|| '''हनुमान''' केसरी और [[अंजना]] (अंजनी) देवी के पुत्र थे। अंजना वास्तव में पुन्जिकस्थला नाम की एक स्वर्ग अप्सरा थी, जो एक शाप के कारण नारी वानर के रूप में धरती पर जन्मी। उस शाप का प्रभाव भगवान [[शिव]] के अंश को जन्म देने के बाद ही समाप्त होने का योग था। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[केसरी वानर राज|केसरी]]
{निम्न में से किसने [[हनुमान]] की ठोड़ी पर [[वज्र अस्त्र|वज्र]] से प्रहार किया था?
|type="()"}
+[[इन्द्र]]
-[[परशुराम]]
-[[रावण]]
-[[मेघनाद]]
||[[चित्र:Hanuman.jpg|right|100px|हनुमान]]जब [[राहु]] ने देखा कि [[हनुमान]] [[सूर्य]] को निगलने जा रहा है, तब वह [[इन्द्र]] के पास गया और बोला- 'मैं सूर्य को ग्रसने गया था, किंतु वहाँ तो कोई और ही जा रहा है।' इन्द्र क्रुद्ध होकर [[ऐरावत]] पर बैठकर चल पड़े। राहु उनसे भी पहले घटनास्थल पर आ पहुँचा। हनुमान ने उसे भी [[फल]] समझा तथा उसकी ओर झपटे। उसने इन्द्र को आवाज़ दी। हनुमान ने ऐरावत को देखा और उसे भी बड़ा फल जानकर वे पकड़ने के लिए बढ़े। इन्द्र ने क्रुद्ध होकर अपने [[वज्र अस्त्र|वज्र]] से प्रहार किया, जिससे हनुमान की बायीं ठोड़ी टूट गयी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हनुमान]]
{निम्नलिखित में से [[शत्रुघ्न]] के पुत्र कौन थे?
|type="()"}
-[[अंगद |अंगद]]
+[[सुबाहु (शत्रुघ्न पुत्र)|सुबाहु]]
-[[अंशुमान]]
-[[कुश]]
||'सुबाहु' [[राम]] के भाई [[शत्रुघ्न]] के पुत्र थे। [[विदिशा]] नगरी के विषय में [[रामायण]] में एक परंपरा का वर्णन मिलता है, जिसके अनुसार रामचन्द्र ने इस नगरी को शत्रुघ्न को सौंप दिया था। शत्रुघ्न के दो पुत्र उत्पन्न हुये थे, जिनमें [[सुबाहु (शत्रुघ्न पुत्र)|सुबाहु]] छोटा पुत्र था। उन्होंने इसे विदिशा नगरी का शासक नियुक्त कर दिया था। थोड़े ही समय में यह नगर अपनी अनुकूल परिस्थितियों के कारण पनप उठा और समस्त [[भारत]] में प्रसिद्ध हो गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुबाहु (शत्रुघ्न पुत्र)|सुबाहु]]
{किस [[ऋषि]] ने श्री [[राम]] के सामने ही योगाग्नि से अपने शरीर को भस्म कर लिया?
|type="()"}
-[[जैमिनि]]
-[[त्रिजट मुनि|त्रिजट]]
-[[गौतम ऋषि|गौतम]]
+[[शरभंग ऋषि|शरभंग]]
{[[सम्पाती]] और [[जटायु]] के [[पिता]] का नाम क्या था?
|type="()"}
+[[अरुण देवता|अरुण]]
-[[अश्विनीकुमार]]
-[[वरुण देवता|वरुण]]
-[[उत्तानपाद]]
||[[चित्र:Surya-arun.jpg|right|100px|सारथि अरुण]]प्रजापति [[कश्यप]] की पत्नी विनता के दो पुत्र थे- [[गरुड़]] और [[अरुण देवता|अरुण]]। अरुण [[सूर्य]] के सारथी हुए। [[सम्पाती]] और [[जटायु]] इन्हीं अरुण के पुत्र थे। बचपन में सम्पाती और जटायु ने सूर्य-मण्डल को स्पर्श करने के उद्देश्य से लम्बी उड़ान भरी। सूर्य के असहनीय तेज़ से व्याकुल होकर जटायु तो बीच रास्ते से ही लौट आये, किन्तु सम्पाती उड़ते ही गये। सूर्य के सन्निकट पहुँचने पर सूर्य के प्रखर [[ताप]] से सम्पाती के पंख जल गये और वे [[समुद्र]] के तट पर गिरकर चेतना शून्य हो गये।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अरुण देवता]]
{[[राम]] को वानर राज [[सुग्रीव]] से मित्रता की सलाह किसने दी थी?
|type="()"}
-[[अहल्या|अहिल्या]]
-[[कैकसी]]
+[[शबरी]]
-इनमें से कोई नहीं
||'शबरी' का वास्तविक नाम 'श्रमणा' था और वह [[भील]] समुदाय की 'शबरी' जाति से संबंध रखती थी। [[शबरी]] के [[पिता]] भीलों के राजा थे। [[सीता]] की खोज में जब [[राम]] और [[लक्ष्मण]] उसकी कुटिया में पधारे, तब उसने राम का सत्कार किया और उन्हें सीता की खोज के लिये [[सुग्रीव]] से मित्रता करने की सलाह दी। भगवान श्री राम के दर्शन करने के बाद वह स्वयं को योगाग्नि में भस्म करके सदा के लिये श्री राम के चरणों में लीन हो गई।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शबरी]]
{निम्न में से किस स्त्री को मतंग ऋषि ने आश्रय प्रदान किया?
|type="()"}
-[[सीता]]
+[[शबरी]]
-[[उर्मिला]]
-[[देवयानी]]
||[[विवाह]] की रात शबरी घर से भागकर जंगल में आ गयी, किंतु निम्न जाति की होने के कारण उसे कहीं आश्रय नहीं मिला। वह रात्रि में जल्दी उठकर, जिधर से [[ऋषि]] निकलते, उस रास्ते को नदी तक साफ करती। कँकरीली ज़मीन में बालू बिछा आती। जंगल में जाकर लकड़ी काटकर डाल आती। इन सब कामों को वह इतनी तत्परता से छिपकर करती कि कोई ऋषि देख न ले। यह कार्य वह कई वर्षों तक करती रही। अन्त में 'मतंग' ऋषि ने उस पर कृपा की। महर्षि मतंग ने सामाजिक बहिष्कार स्वीकार किया, किन्तु शरणागत शबरी का त्याग नहीं किया। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शबरी]]
{निम्न में से किस वानर ने [[दुंदुभी दैत्य]] का वध किया था?
|type="()"}
-[[नल (रामायण)|नल]]
-[[सुग्रीव]]
+[[बालि]]
-[[अंगद (बाली पुत्र)|अंगद]]
||[[दुंदुभी दैत्य|दुंदुभी]], [[कैलास पर्वत]] के समान एक विशाल [[दैत्य]] था, जिसमें हज़ार [[हाथी|हाथियों]] का बल था। एक भयंकर युद्ध में दुंदुभी का वध [[बालि]] के हाथों हुआ, जिसने उसके शव को उठाकर एक [[योजन]] दूर फेंक दिया। मार्ग में उसके मुँह से निकली [[रक्त]] की बूंदें महर्षि मतंग के आश्रम पर जाकर गिरीं। महर्षि मतंग ने बालि को शाप दिया कि वह और उसके वानरों में से कोई यदि उनके आश्रम के पास एक योजन की दूरी तक आयेगा तो मर जायेगा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[दुंदुभी दैत्य]]
{[[लंका]] के राजा [[रावण]] की पुत्री का क्या नाम था?
|type="()"}
+अवली
-[[रेणुका]]
-[[ताड़का|ताड़का]]
-[[दमयंती]]
{श्री [[राम]] की सेना में [[विश्वकर्मा]] के अंशावतार कौन थे?
{श्री [[राम]] की सेना में [[विश्वकर्मा]] के अंशावतार कौन थे?
|type="()"}
|type="()"}
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-[[राम]]
-[[राम]]
+[[मेघनाद]]
+[[मेघनाद]]
||मेघनाद ने 'निकुंभिला' के स्थान पर जाकर 'अग्निष्टोम', '[[अश्वमेघ यज्ञ|अश्वमेघ]]' आदि सात [[यज्ञ]] करके [[शिव]] से अनेक वर प्राप्त किये थे। मेघनाद को [[ब्रह्मा]] के वरदान से 'ब्रह्माशिर' नाम का [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र]] और इच्छानुसार चलने वाले घोड़े प्राप्त थे। वह जिस सिद्धि को प्राप्त करने निकुंभिलादेवी के मंदिर में गया था, उसे सिद्ध करने के उपरांत [[देवता|देवताओं]] समेत [[इन्द्र]] भी उसे जीतने में असमर्थ हो जाते। ब्रह्मा ने उससे कहा था- 'हे इन्द्रजित, यदि तुम्हारा कोई शत्रु निकुंभिला में यज्ञ समाप्त करने से पूर्व तुमसे युद्ध करेगा तो तुम मारे जाओगे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मेघनाद]]
||मेघनाद ने 'निकुंभिला' के स्थान पर जाकर 'अग्निष्टोम', '[[अश्वमेध यज्ञ|अश्वमेध]]' आदि सात [[यज्ञ]] करके [[शिव]] से अनेक वर प्राप्त किये थे। मेघनाद को [[ब्रह्मा]] के वरदान से 'ब्रह्माशिर' नाम का [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र]] और इच्छानुसार चलने वाले घोड़े प्राप्त थे। वह जिस सिद्धि को प्राप्त करने निकुंभिलादेवी के मंदिर में गया था, उसे सिद्ध करने के उपरांत [[देवता|देवताओं]] समेत [[इन्द्र]] भी उसे जीतने में असमर्थ हो जाते। ब्रह्मा ने उससे कहा था- 'हे इन्द्रजित, यदि तुम्हारा कोई शत्रु निकुंभिला में यज्ञ समाप्त करने से पूर्व तुमसे युद्ध करेगा तो तुम मारे जाओगे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मेघनाद]]


{राजा [[जनक]] के भाई कुशध्वज किस नगर के राजा थे?
{राजा [[जनक]] के भाई कुशध्वज किस नगर के राजा थे?

12:29, 1 मार्च 2017 के समय का अवतरण

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1 श्री राम की सेना में विश्वकर्मा के अंशावतार कौन थे?

जामवन्त
नल और नील
सुग्रीव
अंगद

2 ब्रह्मा ने 'ब्रह्माशिर' नामक अस्त्र किसे प्रदान किया था?

रावण
कुम्भकर्ण
राम
मेघनाद

3 राजा जनक के भाई कुशध्वज किस नगर के राजा थे?

सांकाश्य
मिथिला
साकेत
अश्वतीर्थ

4 निम्न में से किस नगरी की स्थापना राक्षसों के राजा मधु ने की थी?

अनुराधापुर
दंडकारण्य
मधुपुरी
अंताखी

5 रामायण में कुल कितने अध्याय हैं?

7
9
11
5

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