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| {{सूचना बक्सा स्वतन्त्रता सेनानी
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| |चित्र का नाम=गोपीनाथ शाह
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| |पूरा नाम=गोपीनाथ शाह
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| |जन्म=[[1901]]
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| |जन्म भूमि=[[हुगली ज़िला]], [[पश्चिम बंगाल]]
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| |मृत्यु=[[12 जनवरी]], [[1924]]
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| |बाहरी कड़ियाँ=
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| |अद्यतन=04:31, [[10 मार्च]]-[[2017]] (IST)
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| '''गोपीनाथ साहा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Gopinath Saha'', जन्म- [[1901]], [[हुगली ज़िला]], [[पश्चिम बंगाल]]; मृत्यु- [[12 जनवरी]], [[1924]]) पश्चिम बंगाल के प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे। वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य थे।<ref>{{cite web |url=http://www.kranti1857.org/pish%20bangal%20%20krantikari.php#Saha|title=गोपीनाथ शाह|accessmonthday=16 मार्च|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=क्रांति 1857|language= हिंदी}}</ref>
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| ==परिचय==
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| गोपीनाथ शाह का जन्म पूर्वी बंगाल के हुगली ज़िले के समरपुर नामक स्थान पर सन 1901 में हुआ था। समरपुर से उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की। वे युगान्तर पार्टी की ओर आकर्षित हुए।
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| ==मृत्यु==
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| गोपीनाथ शाह को पुलिस उपायुक्त सर चार्ल्स टेगर्ट की हत्या के लिए बुलाया गया किन्तु गलती से उन्होंने अर्नस्ट डे नामक एक अन्य [[अंग्रेज]] अधिकारी को गोली मार दी। [[12 जनवरी]], [[1924]] को उन्हें गिरफ्तार कर फांसी पर लटका दिया गया।
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| {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
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| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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| ==संबंधित लेख==
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| {{स्वतंत्रता सेनानी}}
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| {{सूचना बक्सा स्वतन्त्रता सेनानी
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| |चित्र=Blankimage.png
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| |चित्र का नाम=सरदार अजीत सिंह
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| |पूरा नाम=सरदार अजीत सिंह
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| |अन्य नाम=
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| |जन्म=[[1881]]
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| |जन्म भूमि= [[जालंधर ज़िला]], [[पंजाब]]
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| |मृत्यु=[[12 जनवरी]], [[1924]]
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| |मृत्यु स्थान=
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| |मृत्यु कारण=
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| |अभिभावक=
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| |पति/पत्नी=हरनाम कौर
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| |संतान=
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| |स्मारक=
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| |क़ब्र=
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| |नागरिकता=भारतीय
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| |प्रसिद्धि=
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| |आंदोलन=
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| |जेल यात्रा=
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| |कार्य काल=
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| |पुरस्कार-उपाधि=
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| |विशेष योगदान=
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| |संबंधित लेख=[[भगत सिंह|सरदार भगत सिंह]], [[लाला लाजपत राय]]
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| |शीर्षक 1=
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| |अन्य जानकारी= सरदार अजीत सिंह ने कुछ पत्रिकाएं निकाली तथा भारतीय स्वाधीनता के अग्रिम कारणों पर अनेक पुस्तकें लिखी। इन [[दिन|दिनों]] में सरदार अजीत सिंह ने 40 [[भाषा|भाषाओं]] पर अधिकार प्राप्त कर लिया था।
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| |बाहरी कड़ियाँ=
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| |अद्यतन=04:31, [[10 मार्च]]-[[2017]] (IST)
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| '''सरदार अजीत सिंह''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sardar Ajit Singh'', जन्म- [[1881]], [[जालंधर ज़िला]], [[पंजाब]]; मृत्यु- [[15 अगस्त]], [[1947]]) [[भारत]] के सुप्रसिद्ध राष्ट्रभक्त एवं क्रांतिकारी थे। ये प्रख्यात शहीद [[भगत सिंह|सरदार भगत सिंह]] के [[चाचा]] थे।<ref>{{cite web |url=http://www.kranti1857.org/panjab%20krantikari.php#Ajit%20Singh|title=सरदार अजीत सिंह|accessmonthday=16 मार्च|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=क्रांति 1857|language= हिंदी}}</ref>
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| ==परिचय==
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| सरदार अजीत सिंह का जन्म पंजाब के जालन्धर ज़िले के एक [[गांव]] में हुआ था। इनके जन्म दिन की तारीख ठीक-ठीक मालूम नहीं है। अजीत सिंह ने जालन्धर और [[लाहौर]] से शिक्षा ग्रहण की। सरदार अजीत सिंह की पत्नि 40 साल तक एकाकी और तपस्वी जीवन बिताने वाली श्रीमती हरनाम कौर भी वैसे ही जीवत व्यक्तित्व वाली महिला थीं।
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| ==जेल यात्रा एवं लेखन कार्य==
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| सरदार अजीत सिंह को राजनीतिक 'विद्रोही' घोषित कर दिया गया था। उनका अधिकांश जीवन जेल में बीता। [[1906]] ई. में [[लाला लाजपत राय|लाला लाजपत राय जी]] के साथ ही साथ उन्हें भी देश निकाले का दण्ड दिया गया था। सरदार अजीत सिंह ने [[1907]] के भू-संबंधी आन्दोलन में हिस्सा लिया तथा इन्हें गिरफ्तार कर [[बर्मा]] की माण्डले जेल में भेज दिया गया। इन्होंने कुछ पत्रिकाएं निकाली तथा भारतीय स्वाधीनता के अग्रिम कारणों पर अनेक पुस्तकें लिखी। सरदार अजीत सिंह को हिटलर और मुसोलिनी से मिलाया। मुसोलिनी तो उनके व्यक्तित्व के मुरीद थे। इन [[दिन|दिनों]] में सरदार अजीत सिंह ने 40 [[भाषा|भाषाओं]] पर अधिकार प्राप्त कर लिया था।
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| ==क्रांतिकारी गतिविधियाँ==
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| अजीत सिंह के बारे में कभी [[बाल गंगाधर तिलक|श्री बाल गंगाधर तिलक]] ने कहा था ये स्वतंत्र [[भारत]] के प्रथम [[राष्ट्रपति]] बनने योग्य हैं। जब तिलक ने ये कहा था तब सरदार अजीत सिंह की उम्र केवल 25 [[वर्ष]] थी। [[1909]] में सरदार अपना घर बार छोड़ कर देश सेवा के लिए विदेश यात्रा पर निकल चुके थे, उस समय उनकी उम्र 27 वर्ष की थी। [[ईरान]] के रास्ते तुर्की, [[जर्मनी]], [[ब्राजील]], स्विट्जरलैंड, [[इटली]], [[जापान]] आदि देशों में रहकर उन्होंने क्रांति का बीज बोया और आजाद हिन्द फौज की स्थापना की। अजीत सिंह ने [[भारत]] और विदेशों में होने वाली क्रांतिकारी गतिविधियों में पूर्ण रूप से सहयोग दिया। उन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन को चुनौती दी तथा भारत के औपनिवेशिक शासन की आलोचना की और खुलकर विरोध भी किया। रोम रेडियो को तो अजीत सिंह ने नया नाम दे दिया था, 'आजाद हिन्द रेडियो' तथा इसके मध्यम से क्रांति का प्रचार प्रसार किया। अजीत सिंह परसिया, [[रोम]] तथा दक्षिणी अफ्रीका में रहे तथा सन [[1947]] को [[भारत]] वापिस लौट आए। भारत लौटने पर पत्नी ने पहचान के लिए कई सवाल पूछे, जिनका सही जवाब मिलने के बाद भी उनकी पत्नी को विश्वास नहीं हुआ। अजीत सिंह इतनी [[भाषा|भाषाओं]] के ज्ञानी हो चुके थे कि उन्हें पहचानना बहुत ही मुश्किल था।
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| ==मृत्यु==
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| जिस दिन [[भारत]] आजाद हुआ उस दिन सरदार अजीत सिंह की आत्मा भी शरीर से मुक्त हो गई। भारत के विभाजन से वे इतने व्यथित थे कि [[15 अगस्त]], [[1947]] के सुबह 4 बजे उन्होंने अपने पूरे [[परिवार]] को जगाया, और जय हिन्द कह कर दुनिया से विदा ले ली।
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| {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
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| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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| ==संबंधित लेख==
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| {{स्वतंत्रता सेनानी}}
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