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{{सूचना बक्सा प्रसिद्ध व्यक्तित्व
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'''जगत सिंह'''  [[हिन्दी]] के प्रसिद्ध [[कवि]] थे। ये [[केशवदास]] से भी प्रभावित थे और उनकी '[[कविप्रिया]]' तथा '[[रसिकप्रिया]]' की टीकाएँ लिखकर अपनी शास्त्रीय रुचि का परिचय दिया है। इन्होंने मुख्यत: शास्त्रीय ग्रंथों की रचना की है और [[संस्कृत]] के आचार मम्मट, विश्वनाथ, जयदेव के सिद्धांतों की आलोचनात्मक व्याख्या करने में इनकी वृत्ति विशेष रूप से रमी है।


==परिचय==
जगत सिंह ये बिसेन वंश की भिनगा जिला बहरामपुर वाली शाखा के दिग्विजय सिंह के पुत्र थे, जो बलरामपुर से पाँच मील दूर देवतहा के ताल्लुकेदार थे। इन्होंने 'भारती कण्ठाभरण' में अपने कुल का परिचय दिया है। इनका रचनाकाल 1800 ई. से 1820 ई. तक माना जा सकता है। इनके काव्य-गुरु शिवकवि अरसेला बन्दीजन थे। इन्होंने मुख्यत: शास्त्रीय ग्रंथों की रचना की है और [[संस्कृत]] के आचार मम्मट, विश्वनाथ, जयदेव के सिद्धांतों की आलोचनात्मक व्याख्या करने में इनकी वृत्ति विशेष रूप से रमी है। ये [[केशवदास]] से भी प्रभावित थे और उनकी 'कविप्रिया' तथा 'रसिकप्रिया' की टीकाएँ लिखकर अपनी शास्त्रीय रुचि का परिचय दिया है।
==रचनाएँ==
इनका सर्वाधिक चर्चित [[ग्रंथ]] '[[साहित्य सुधानिधि]]' है। ग्रंथ की रचना-तिथि 'हि. का. शा. इ.' में सं. 1858 विक्रम संवत<ref>1801 ई.</ref> दी गयी है, इसमें पाठ इस प्रकार है- "संवत वषु शर बसुशशि अरु गुरुवार"। और हि. सा. बृ. ई.,भा. 6 में यह तिथि 1892 विक्रम सवत<ref>1835 ई.</ref>मानी गयी है और पाठ इस प्रकार दिया गया है- "दृग रस वसु ससि संवत अनु गुरुवार"।
===प्रमुख ग्रंथ===
जगत सिंह का प्रमुख आधार ग्रंथ है 'चन्द्रालोक' पर कवि ने अन्य प्रमुख ग्रंथों- 'नाट्यशास्त्र', 'काव्यप्रकाश', 'साहित्यदर्पण' आदि से सहायता लेने की घोषणा की है। इसमें 10 तरंगे और 636 बरवै है। इस ग्रंथ में काव्यशास्त्र के विशेष की विस्तार से दिया गया है। इनके अन्य ग्रंथों में 'चित्र-मीमांसा' की हस्तलिखित प्रतियाँ ना. प्र. स. [[काशी]] में हैं। यह चित्रकाव्य विषयक ग्रंथ 'रसमृगांक'<ref>1806 ई.</ref>का उल्लेख हुआ है। इन ग्रन्थों के अतिरिक्त 'दिग्विजयभूषण' की भूमिका में भगवती प्रसाद सिंह ने इनके अन्य ग्रंथों का भी उल्लेख किया है- 'रसमंजरी कोष' <ref>1806 ई.</ref>, 'उत्तर-मंजरी', 'जगतविलास', 'नखशिख', 'भारती-कण्ठाभरण'<ref>लिपिकाल 1807 ई.</ref>, 'जगतप्रकाश' <ref>1808 ई.</ref> और 'नायिकादर्शन'<ref>1820 ई.</ref>। इन्होंने '[[साहित्य सुधानिधि]]' का उल्लेख नहीं किया है।
=== साहित्य में स्थान ===
जगतसिंह में कवि की अपेक्षा आचार्य प्रधान है। आचार्यत्व की दृष्टि से उन्होंने संक्षेप में काम लेने का प्रयत्न किया है। काव्य-शास्त्र के विविध पक्षों की मीमांसा करने का प्रयत्न इन्होंने अपने ग्रंथों में किया है परंतु [[संस्कृत]] आचार्यों की उक्तियों को प्रस्तुत करने के प्रयत्न में इसमें काव्य-सौन्दर्य नहीं आ पाया है। काव्य में 'ध्वनि को महत्त्व देने पर भी इनके [[काव्य]] में वैसी व्यंजना नहीं है।' भाषा सरल और [[छन्द|छन्दों]] के अनुकूल है।
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
{{भारत के कवि}}
__INDEX__
__NOTOC__
{{सूचना बक्सा प्रसिद्ध व्यक्तित्व
|चित्र=Blankimage.png
|चित्र का नाम=गोपीनाथ पुरोहित
|पूरा नाम=
|अन्य नाम=
|जन्म=[[1863]] ई.
|जन्म भूमि=[[जयपुर]], [[राजस्थान]]
|मृत्यु=
|मृत्यु स्थान=
|अभिभावक=
|पति/पत्नी=
|संतान=
|गुरु=
|कर्म भूमि=
|कर्म-क्षेत्र=
|मुख्य रचनाएँ= 'वेनिस का बैपारी', 'मनभावन'<ref>1896 ई.</ref>और प्रेमलीला<ref>1897 ई.</ref>
|विषय=
|खोज=
|भाषा=[[हिन्दी]], [[संस्कृत]]
|शिक्षा=
|विद्यालय=
|पुरस्कार-उपाधि=
|प्रसिद्धि=लेखक, शिक्षाशास्त्री
|विशेष योगदान=
|नागरिकता=भारतीय
|संबंधित लेख=
|शीर्षक 1=
|पाठ 1=
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|शीर्षक 3=
|पाठ 3=
|शीर्षक 4=
|पाठ 4=
|शीर्षक 5=
|पाठ 5=
|अन्य जानकारी=जगत सिंह का प्रमुख आधार ग्रंथ है 'चन्द्रालोक' पर कवि ने अन्य प्रमुख ग्रंथों- 'नाट्यशास्त्र', 'काव्यप्रकाश', 'साहित्यदर्पण' आदि से सहायता लेने की घोषणा की है।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}
'''गोपीनाथ पुरोहित''' (जन्म- [[1863]] ई. [[जयपुर]], [[राजस्थान]]) प्रसिद्ध साहित्यकार थे। इन्हें [[संस्कृत|संस्कृत भाषा]] का भी अच्छा ज्ञान था। इन्होंने  'भर्तृहरि शतकत्रयम्'<ref>1896 ई.</ref> का [[अंग्रेजी]] अनुवाद और [[हिन्दी]] भाषांतर<ref>टिप्पणी और व्याख्या सहित</ref>भी प्रस्तुत की थी। पुरोहित जी का [[युग]] के अनुवादकों में श्रेष्ठ स्थान है।
=== परिचय ===
गोपीनाथ पुरोहित जन्म 1863 ई.को [[जयपुर]], [[राजस्थान]] में हुआ था। इन्होंने [[भारतेन्दु युग|भारतेन्दु-युग]] में ही अंग्रेजी-साहित्य की विश्वप्रसिद्ध कृतियों के अनुवाद की ओर हिन्दी-लेखकों ने ध्यान दिया था। स्वंय [[भारतेंदु हरिश्चंद्र|भारतेंदु]] ने शेक्सपियर के नाटकों का अनुवाद किया था। [[1896]] ई. में [[जयपुर]] के पुरोहित गोपीनाथ एम.ए. एक अच्छे अनुवादक के रूप में सामने आये।
== रचनाएँ ==
पुरोहित जी ने शेक्सपियर के तीन नाटकों- 'मरचेष्ट ऑफ़ वेनिस' 'ऐज यू लाइक इट' और 'रोमियों ऐण्ड जूलियट' का अनुवाद क्रमश: 'वेनिस का बैपारी', 'मनभावन'<ref>1896 ई.</ref>और प्रेमलीला <ref>1897 ई.</ref>नाम से किया। इन्होंने पद्याशों में भी गद्य में ही अनूदित किया है। आपने सिसरों के निबन्ध का 'मित्रता' शीर्षक और 'ग्रेज एलजी' का 'शोकोक्ति' भाषा [[छ्न्द|छ्न्दों]] में अनुवाद किया। 'शोकोक्ति' भाषा में अनुदित है। आपने 'वीरेंद्र' (1897) नामक वीर और श्रृंगार रस- प्रधान उपन्यास की छाया पर लिखा गया है।
;उपन्यास
इसमें एक ऐतिहासिक उपन्यास की छाया पर लिखा प्रस्तुत किया गया है और भाषा पात्रों के अनुसार कहीं शुद्ध [[उर्दू]] और कहीं शुद्ध [[हिन्दी]] है। पुरोहित जी को [[संस्कृत]] का भी अच्छा ज्ञान था और इन्होंने 'भर्तृहरि शतकत्रयम्' <ref>1896 ई.</ref> का अंग्रेजी अनुवाद और हिन्दी भाषांतर<ref>टिप्पणी और व्याख्या सहित</ref> भी प्रस्तुत किया था। 'सतीचरित-चमत्कार' <ref>1900 ई.</ref> नामक आपकी एक मौलिक कृति भी प्राप्त होती है।
=== श्रेष्ठ स्थान ===
ये अविकल अनुवाद के पक्ष में थे और कवि के आशय को कवि के ही शब्दों, वाक्यों और मुहावरों में प्रकट करना चाहते थे। इस प्रयत्न में कहीं-कहीं आपके अनुवादों में [[अंग्रेजी]] के मुहावरे ज्यों के त्यों भाषांतरित होकर आ गये हैं। आपकी भाषा परमार्जित और प्रवाहमयी है। इनका [[युग]] के अनुवादकों में श्रेष्ठ स्थान है।
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
{{भारत के कवि}}
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__NOTOC__

11:20, 28 मई 2017 के समय का अवतरण