"संध्या के बाद -सुमित्रानंदन पंत": अवतरणों में अंतर
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|मृत्यु=[[28 दिसंबर]], 1977 | |मृत्यु=[[28 दिसंबर]], 1977 | ||
|मृत्यु स्थान=[[प्रयाग]], [[उत्तर प्रदेश]] | |मृत्यु स्थान=[[प्रयाग]], [[उत्तर प्रदेश]] | ||
|मुख्य रचनाएँ=वीणा, पल्लव, चिदंबरा, युगवाणी, लोकायतन, हार, आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष, युगपथ, स्वर्णकिरण, कला और बूढ़ा चाँद आदि | |मुख्य रचनाएँ=[[वीणा -सुमित्रानन्दन पंत|वीणा]], [[पल्लव -सुमित्रानन्दन पंत|पल्लव]], चिदंबरा, [[युगवाणी -सुमित्रानन्दन पंत|युगवाणी]], [[लोकायतन -सुमित्रानन्दन पंत|लोकायतन]], हार, आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष, [[युगपथ -सुमित्रानन्दन पंत|युगपथ]], [[स्वर्णकिरण -सुमित्रानन्दन पंत|स्वर्णकिरण]], कला और बूढ़ा चाँद आदि | ||
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ताम्रपर्ण पीपल से, शतमुख | ताम्रपर्ण पीपल से, शतमुख | ||
झरते चंचल स्वर्णिम निझर! | झरते चंचल स्वर्णिम निझर! | ||
ज्योति | |||
सूर्य | ज्योति स्तंभ-सा धँस सरिता में | ||
सूर्य क्षितिज पर होता ओझल | |||
बृहद जिह्म ओझल केंचुल-सा | बृहद जिह्म ओझल केंचुल-सा | ||
लगता चितकबरा गंगाजल! | लगता चितकबरा गंगाजल! | ||
धूपछाँह के रंग की रेती | धूपछाँह के रंग की रेती | ||
अनिल ऊर्मियों से सर्पांकित | अनिल ऊर्मियों से सर्पांकित | ||
नील लहरियों में लोरित | नील लहरियों में लोरित | ||
पीला जल रजत जलद से बिंबित! | पीला जल रजत जलद से बिंबित! | ||
सिकता, सलिल, समीर सदा से, | सिकता, सलिल, समीर सदा से, | ||
स्नेह पाश में बँधे समुज्ज्वल, | स्नेह पाश में बँधे समुज्ज्वल, | ||
अनिल | अनिल पिघलकर सलिल, सलिल | ||
ज्यों गति द्रव खो बन गया लवोपल | ज्यों गति द्रव खो बन गया लवोपल! | ||
शंख घट बज गया मंदिर में | शंख घट बज गया मंदिर में | ||
लहरों में होता कंपन, | लहरों में होता कंपन, | ||
दीप शीखा-सा ज्वलित कलश | दीप शीखा-सा ज्वलित कलश | ||
नभ में उठकर करता निराजन! | नभ में उठकर करता निराजन! | ||
तट पर बगुलों-सी वृद्धाएँ | तट पर बगुलों-सी वृद्धाएँ | ||
विधवाएँ जप ध्यान में मगन, | विधवाएँ जप ध्यान में मगन, | ||
मंथर धारा में बहता | मंथर धारा में बहता | ||
जिनका अदृश्य, गति अंतर-रोदन! | जिनका अदृश्य, गति अंतर-रोदन! | ||
दूर तमस रेखाओं सी, | दूर तमस रेखाओं सी, | ||
उड़ती पंखों सी-गति चित्रित | उड़ती पंखों सी-गति चित्रित | ||
सोन खगों की पाँति | सोन खगों की पाँति | ||
आर्द्र ध्वनि से निरव नभ करती मुखरित! | आर्द्र ध्वनि से निरव नभ करती मुखरित! | ||
स्वर्ण चूर्ण-सी उड़ती गोरज | स्वर्ण चूर्ण-सी उड़ती गोरज | ||
किरणों की बादल-सी जलकर, | किरणों की बादल-सी जलकर, | ||
सनन तीर-सा जाता नभ में | |||
ज्योतित पंखों कंठों का स्वर! | ज्योतित पंखों कंठों का स्वर! | ||
लौटे खग, गायें घर लौटीं | लौटे खग, गायें घर लौटीं | ||
लौटे कृषक श्रांत श्लथ डग धर | लौटे कृषक श्रांत श्लथ डग धर | ||
छिपे गृह में म्लान चराचर | छिपे गृह में म्लान चराचर | ||
छाया भी हो गई अगोचर | छाया भी हो गई अगोचर! | ||
लौट पैंठ से व्यापारी भी | लौट पैंठ से व्यापारी भी | ||
जाते घर, उस पार नाव पर, | जाते घर, उस पार नाव पर, | ||
ऊँटों, घोड़ों के संग बैठे | ऊँटों, घोड़ों के संग बैठे | ||
ख़ाली बोरों पर, हुक्का भर! | |||
जोड़ों की सुनी द्वभा में, | जोड़ों की सुनी द्वभा में, | ||
झूल रही निशि छाया छाया गहरी, | झूल रही निशि छाया छाया गहरी, | ||
डूब रहे निष्प्रभ विषाद में | डूब रहे निष्प्रभ विषाद में | ||
खेत, बाग, गृह, तरू, तट लहरी! | खेत, बाग, गृह, तरू, तट लहरी! | ||
बिरहा गाते गाड़ी वाले, | |||
[[बिरहा]] गाते गाड़ी वाले, | |||
भूँक-भूँकर लड़ते कूकर, | भूँक-भूँकर लड़ते कूकर, | ||
हुआँ-हुआँ करते सियार, | हुआँ-हुआँ करते सियार, | ||
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मंद पवन में तिरती | मंद पवन में तिरती | ||
नीली रेशम की-सी हलकी जाली! | नीली रेशम की-सी हलकी जाली! | ||
बत्ती जल दुकानों में | बत्ती जल दुकानों में | ||
बैठे सब कस्बे के व्यापारी, | बैठे सब कस्बे के व्यापारी, | ||
मौन मंद आभा में | मौन मंद आभा में | ||
हिम की ऊँध रही लंबी अधियारी! | हिम की ऊँध रही लंबी अधियारी! | ||
धुआँ अधिक देती है | धुआँ अधिक देती है | ||
टिन की ढबरी, कम करती उजियाली, | टिन की ढबरी, कम करती उजियाली, | ||
मन से कढ़ अवसाद श्रांति | मन से कढ़ अवसाद श्रांति | ||
आँखों के आगे बुनती जाला! | आँखों के आगे बुनती जाला! | ||
छोटी-सी बस्ती के भीतर | छोटी-सी बस्ती के भीतर | ||
लेन-देन के थोथे सपने | लेन-देन के थोथे सपने | ||
दीपक के मंडल में मिलकर | दीपक के मंडल में मिलकर | ||
मँडराते घिर सुख-दुख अपने! | मँडराते घिर सुख-दुख अपने! | ||
कँप-कँप उठते लौ के संग | कँप-कँप उठते लौ के संग | ||
कातर उर क्रंदन, मूक निराशा, | कातर उर क्रंदन, मूक निराशा, | ||
क्षीण ज्योति ने चुपके ज्यों | क्षीण ज्योति ने चुपके ज्यों | ||
गोपन मन को दे दी हो भाषा! | गोपन मन को दे दी हो भाषा! | ||
लीन हो गई क्षण में बस्ती, | लीन हो गई क्षण में बस्ती, | ||
मिली खपरे के घर आँगन, | मिली खपरे के घर आँगन, | ||
भूल गए लाला अपनी सुधी, | भूल गए लाला अपनी सुधी, | ||
भूल गया सब ब्याज, मूलधन! | भूल गया सब ब्याज, मूलधन! | ||
सकूची-सी परचून किराने की ढेरी | सकूची-सी परचून किराने की ढेरी | ||
लग रही ही तुच्छतर, | लग रही ही तुच्छतर, | ||
इस | इस नीरव प्रदोष में आकुल | ||
उमड़ रहा अंतर जग बाहर! | उमड़ रहा अंतर जग बाहर! | ||
अनुभव करता लाला का मन, | अनुभव करता लाला का मन, | ||
छोटी हस्ती का सस्तापन, | छोटी हस्ती का सस्तापन, | ||
जाग उठा उसमें मानव, | जाग उठा उसमें मानव, | ||
औ' असफल जीवन का उत्पीड़न! | औ' असफल जीवन का उत्पीड़न! | ||
दैन्य | |||
दैन्य दु:ख अपमान ग्लानि | |||
चिर क्षुधित पिपासा, मृत अभिलाषा, | चिर क्षुधित पिपासा, मृत अभिलाषा, | ||
बिना आय की क्लांति बनी रही | बिना आय की क्लांति बनी रही | ||
उसके जीवन की परिभाषा! | उसके जीवन की परिभाषा! | ||
जड़ अनाज के ढेर सदृश ही | जड़ अनाज के ढेर सदृश ही | ||
वह दीन-भर बैठा गद्दी पर | वह दीन-भर बैठा गद्दी पर | ||
बात-बात पर झूठ बोलता | बात-बात पर झूठ बोलता | ||
कौड़ी-सी स्पर्धा में मर-मर! | कौड़ी-सी स्पर्धा में मर-मर! | ||
फिर भी क्या कुटुंब पलता है? | फिर भी क्या कुटुंब पलता है? | ||
रहते स्वच्छ सुधर सब परिजन? | रहते स्वच्छ सुधर सब परिजन? | ||
बना पा रहा वह पक्का घर? | बना पा रहा वह पक्का घर? | ||
मन में सुख है? जुटता है धन? | मन में सुख है? जुटता है धन? | ||
खिसक गई कंधों में कथड़ी | खिसक गई कंधों में कथड़ी | ||
ठिठुर रहा अब सर्दी से तन, | ठिठुर रहा अब सर्दी से तन, | ||
सोच रहा बस्ती का बनिया | सोच रहा बस्ती का बनिया | ||
घोर विवशता का कारण! | घोर विवशता का कारण! | ||
शहरी बनियों-सा वह भी उठ | शहरी बनियों-सा वह भी उठ | ||
क्यों बन जाता नहीं महाजन? | क्यों बन जाता नहीं महाजन? | ||
रोक दिए हैं किसने उसकी | रोक दिए हैं किसने उसकी | ||
जीवन | जीवन उन्नति के सब साधन? | ||
यह क्यों संभव नहीं | यह क्यों संभव नहीं | ||
व्यवस्था में जग की कुछ हो परिवर्तन? | व्यवस्था में जग की कुछ हो परिवर्तन? | ||
कर्म और गुण के समान ही | कर्म और गुण के समान ही | ||
सकल आय- | सकल आय-व्यय का हो वितरण? | ||
घुसे घरौंदे में | |||
घुसे घरौंदे में मिट्टी के | |||
अपनी-अपनी सोच रहे जन, | अपनी-अपनी सोच रहे जन, | ||
क्या ऐसा कुछ नहीं, | क्या ऐसा कुछ नहीं, | ||
फूँक दे जो सबमें सामूहिक जीवन? | फूँक दे जो सबमें सामूहिक जीवन? | ||
मिलकर जन निर्माण करे जग, | मिलकर जन निर्माण करे जग, | ||
मिलकर भोग | मिलकर भोग जीवन करे जीवन का, | ||
जन विमुक्त हो जन-शोषण से, | जन विमुक्त हो जन-शोषण से, | ||
हो समाज अधिकारी धन का? | हो समाज अधिकारी धन का? | ||
दरिद्रता पापों की जननी, | दरिद्रता पापों की जननी, | ||
मिटे जनों के पाप, ताप, भय, | मिटे जनों के पाप, ताप, भय, | ||
सुंदर हो अधिवास, वसन, तन, | सुंदर हो अधिवास, वसन, तन, | ||
पशु पर मानव की हो जय? | पशु पर मानव की हो जय? | ||
वक्ति नहीं, जग की परिपाटी | वक्ति नहीं, जग की परिपाटी | ||
दोषी जन के दु:ख क्लेश की | दोषी जन के दु:ख क्लेश की | ||
जन का श्रम जन में बँट जाए, | जन का श्रम जन में बँट जाए, | ||
प्रजा सुखी हो देश देश की! | प्रजा सुखी हो देश देश की! | ||
टूट गया वह स्वप्न वणिक का, | टूट गया वह स्वप्न वणिक का, | ||
आई जब बुढि़या बेचारी, | आई जब बुढि़या बेचारी, | ||
आध-पाव आटा लेने | आध-पाव आटा लेने | ||
लो, लाला ने फिर डंडी मारी! | लो, लाला ने फिर डंडी मारी! | ||
चीख उठा घुघ्घू डालों में | चीख उठा घुघ्घू डालों में | ||
लोगों ने पट दिए द्वार पर, | लोगों ने पट दिए द्वार पर, |
14:02, 2 जून 2017 के समय का अवतरण
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सिमटा पंख साँझ की लाली |
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