"रहिमन निज मन की व्यथा -रहीम": अवतरणों में अंतर

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सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥
;अर्थ
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अपने दुख को अपने मन में ही रखनी चाहिए। दूसरों को सुनाने से लोग सिर्फ उसका मजाक उड़ाते हैं परन्तु दुख को कोई बांटता नहीं है।
अपने दु:ख को अपने मन में ही रखनी चाहिए। दूसरों को सुनाने से लोग सिर्फ उसका मजाक उड़ाते हैं परन्तु दु:ख को कोई बांटता नहीं है।


{{लेख क्रम3| पिछला=रहिमन विपदा ही भली -रहीम |मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=रहिमन चुप हो बैठिये -रहीम}}
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14:05, 2 जून 2017 के समय का अवतरण

रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥

अर्थ

अपने दु:ख को अपने मन में ही रखनी चाहिए। दूसरों को सुनाने से लोग सिर्फ उसका मजाक उड़ाते हैं परन्तु दु:ख को कोई बांटता नहीं है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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