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* फ़िल्म : बॉर्डर (1997)
* संगीतकार : अनु मलिक
* गायक : रूप कुमार राठौड़, सोनू निगम
* गीतकार: जावेद अख़्तर
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<poem>
<poem>
कर चले हम फ़िदा, जान-ओ-तन साथीयों
संदेशे आते हैं
अब तुम्हारे हवाले वतन साथीयों ...
हमें तड़पाते हैं
तो चिट्ठी आती है
तो पूछ जाती है
के घर कब आओगे...
लिखो कब आओगे...
की तुम बिन ये घर सूना सूना है


सांस थमती गई, नब्ज जमती गई,
संदेशे आते हैं
फिर भी बढ़ते कदम को ना रुकने दिया
हमें तड़पाते हैं
कट गये सर हमारे तो कुछ ग़म नहीं
तो चिट्ठी आती है
सर हिमालय का हमने न झुकने दिया
तो पूछ जाती है
मरते मरते रहा बाँकपन साथीयों
के घर कब आओगे...
अब तुम्हारे हवाले वतन साथीयों ...
लिखो कब आओगे...
की तुम बिन ये घर सूना सूना है


जिन्दा रहने के मौसम बहुत हैं मगर
किसी दिलवाली ने किसी मतवाली ने
जान देने की रुत रोज आती नहीं
हमें ख़त लिखा है
हुस्न और इश्क दोनो को रुसवा करे
की हमसे पूछा है
वो जवानी जो खूँ में नहाती नहीं
किसी की सांसों ने, किसी की धड़कन ने
बाँध लो अपने सर पर कफ़न साथीयों
किसी की चूड़ी ने, किसी के कंगन ने
अब तुम्हारे हवाले वतन साथीयों ...
किसी के कजरे ने, किसी के गजरे ने
महकती सुबहों ने, मचलती शामों ने
अकेली रातो ने, अधूरी बातों ने
तरसती बाहों ने
और पूछा है तरसी निगाहों ने
के घर कब आओगे...
लिखो कब आओगे...
की तुम बिन ये दिल सूना सूना है


राह कुर्बानियों की ना वीरान हो
संदेशे आते हैं
तुम सजाते ही रहना नये काफ़िले
हमें तड़पाते हैं
फ़तह का जश्न इस जश्न के बाद है
तो चिट्ठी आती है
जिन्दगी मौत से मिल रही है गले
तो पूछ जाती है
आज धरती बनी है दुल्हन साथीयों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथीयों ...


खेंच दो अपने खूँ से जमीं पर लकीर
के घर कब आओगे..
इस तरफ आने पाये ना रावण कोई
लिखो कब आओगे..
तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे
की तुम बिन ये घर सूना सूना है
छूने पाये ना सीता का दामन कोई
 
राम भी तुम तुम्हीं लक्ष्मण साथीयों
मोहब्बत वालों ने, हमारे यारों ने
अब तुम्हारे हवाले वतन साथीयों ...
हमें ये लिखा है के हमसे पूछा है
</poem>
हमारे गांव ने आम की छाओं ने
{{Poemclose}}
पुराने पीपल ने बरसते बादल ने
खेत खलियानों ने हरे मैदानों ने
बसंती बेलों ने झूमती बेलों ने
लचकते झूलो ने बेहेकते फूलो ने
चाताक्ति कलियों ने
और पूछा है गांव की गलियों ने
के घर कब आओगे..
लिखो कब आओगे..
की तुम बिन गांव सूना सूना है
 
संदेशे आते हैं
हमें तड़पाते हैं
तो चिट्ठी आती है
तो पूछ जाती है
के घर कब आओगे..
लिखो कब आओगे..
की तुम बिन ये घर सूना सूना है
 
कभी एक ममता की
प्यार की गंगा की
वो चिट्ठी आती है
साथ वो लाती है
मेरे दिन बचपन के
खेल वो आंगन के
वो साया आंचल का
वो टीका काजल का
वो लोरी रातों मे वो नरमी हाथों में
वो चाहत आंखों में वो चिंता बातों में
बिगड़ना ऊपर से मोहब्बत अन्दर से
करे वो देवी मां
यही हर ख़त में पूछे मेरी मां
 
के घर कब आओगे..
लिखो कब आओगे
की तुम बिन आंगन सूना सूना है


* फिल्म : हकीकत
संदेशे आते हैं
* संगीतकार :
हमें तड़पाते हैं
* गायक : 
तो चिट्ठी आती है
* रचनाकार : कैफी आज़मी
तो पूछ जाती है
के घर कब आओगे..
लिखो कब आओगे
की तुम बिन ये घर सूना सूना है


ए गुजरने वाली हवा बता
मेरा इतना काम करेगी क्या
मेरे गांव जा मेरे दोस्तो मो सलाम दे
मेरी गांव में है जो वो गली
जहां रहती है मेरी दिलरुबा
उसे मेरे प्यार का जाम दे..
वहीं थोड़ी दूर है घर मेरा
मेरे घर में है मेरी बूढी मां
मेरे माँ के पैरों को छूके
उसे उसके बेटा का नाम दे
ए गुजरने वाली हवा ज़रा
मेरे दोस्तो मेरी दिलरुबा
मेरी माँ को मेरा प्रेम दे
उन्हें जाके ये पैग़ाम दे


मै वापस आऊंगा..
फिर अपने गांव में
उसी की छाओं में
की माँ के आंचल से
गांव के पीपल से
किसी के काजल से
किया जो वादा था वो निभाऊंगा
मै एक दिन आऊंगा........
</poem>
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{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
 
*[http://www.youtube.com/watch?v=uMkPweupmBo संदेशे आते हैं (यू-ट्यूब)]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
 
{{देश भक्ति गीत}}
[[Category:नया पन्ना दिसंबर-2011]]
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__NOTOC__

14:07, 2 जून 2017 के समय का अवतरण

संक्षिप्त परिचय
  • फ़िल्म : बॉर्डर (1997)
  • संगीतकार : अनु मलिक
  • गायक : रूप कुमार राठौड़, सोनू निगम
  • गीतकार: जावेद अख़्तर

संदेशे आते हैं
हमें तड़पाते हैं
तो चिट्ठी आती है
तो पूछ जाती है
के घर कब आओगे...
लिखो कब आओगे...
की तुम बिन ये घर सूना सूना है

संदेशे आते हैं
हमें तड़पाते हैं
तो चिट्ठी आती है
तो पूछ जाती है
के घर कब आओगे...
लिखो कब आओगे...
की तुम बिन ये घर सूना सूना है

किसी दिलवाली ने किसी मतवाली ने
हमें ख़त लिखा है
की हमसे पूछा है
किसी की सांसों ने, किसी की धड़कन ने
किसी की चूड़ी ने, किसी के कंगन ने
किसी के कजरे ने, किसी के गजरे ने
महकती सुबहों ने, मचलती शामों ने
अकेली रातो ने, अधूरी बातों ने
तरसती बाहों ने
और पूछा है तरसी निगाहों ने
के घर कब आओगे...
लिखो कब आओगे...
की तुम बिन ये दिल सूना सूना है

संदेशे आते हैं
हमें तड़पाते हैं
तो चिट्ठी आती है
तो पूछ जाती है

के घर कब आओगे..
लिखो कब आओगे..
की तुम बिन ये घर सूना सूना है

मोहब्बत वालों ने, हमारे यारों ने
हमें ये लिखा है के हमसे पूछा है
हमारे गांव ने आम की छाओं ने
पुराने पीपल ने बरसते बादल ने
खेत खलियानों ने हरे मैदानों ने
बसंती बेलों ने झूमती बेलों ने
लचकते झूलो ने बेहेकते फूलो ने
चाताक्ति कलियों ने
और पूछा है गांव की गलियों ने
के घर कब आओगे..
लिखो कब आओगे..
की तुम बिन गांव सूना सूना है

संदेशे आते हैं
हमें तड़पाते हैं
तो चिट्ठी आती है
तो पूछ जाती है
के घर कब आओगे..
लिखो कब आओगे..
की तुम बिन ये घर सूना सूना है

कभी एक ममता की
प्यार की गंगा की
वो चिट्ठी आती है
साथ वो लाती है
मेरे दिन बचपन के
खेल वो आंगन के
वो साया आंचल का
वो टीका काजल का
वो लोरी रातों मे वो नरमी हाथों में
वो चाहत आंखों में वो चिंता बातों में
बिगड़ना ऊपर से मोहब्बत अन्दर से
करे वो देवी मां
यही हर ख़त में पूछे मेरी मां

के घर कब आओगे..
लिखो कब आओगे
की तुम बिन आंगन सूना सूना है

संदेशे आते हैं
हमें तड़पाते हैं
तो चिट्ठी आती है
तो पूछ जाती है
के घर कब आओगे..
लिखो कब आओगे
की तुम बिन ये घर सूना सूना है

ए गुजरने वाली हवा बता
मेरा इतना काम करेगी क्या
मेरे गांव जा मेरे दोस्तो मो सलाम दे
मेरी गांव में है जो वो गली
जहां रहती है मेरी दिलरुबा
उसे मेरे प्यार का जाम दे..
वहीं थोड़ी दूर है घर मेरा
मेरे घर में है मेरी बूढी मां
मेरे माँ के पैरों को छूके
उसे उसके बेटा का नाम दे
ए गुजरने वाली हवा ज़रा
मेरे दोस्तो मेरी दिलरुबा
मेरी माँ को मेरा प्रेम दे
उन्हें जाके ये पैग़ाम दे

मै वापस आऊंगा..
फिर अपने गांव में
उसी की छाओं में
की माँ के आंचल से
गांव के पीपल से
किसी के काजल से
किया जो वादा था वो निभाऊंगा
मै एक दिन आऊंगा........

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