"गुनागार संसार दुख": अवतरणों में अंतर
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गुनागार संसार | गुनागार संसार दु:ख रहित बिगत संदेह। | ||
तजि मम चरन सरोज प्रिय तिन्ह कहुँ देह न गेह॥45॥ | तजि मम चरन सरोज प्रिय तिन्ह कहुँ देह न गेह॥45॥ | ||
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14:07, 2 जून 2017 के समय का अवतरण
गुनागार संसार दुख
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अरण्यकाण्ड |
गुनागार संसार दु:ख रहित बिगत संदेह। |
- भावार्थ
गुणों के घर, संसार के दुःखों से रहित और संदेहों से सर्वथा छूटे हुए होते हैं। मेरे चरण कमलों को छोड़कर उनको न देह ही प्रिय होती है, न घर ही॥45॥
गुनागार संसार दुख |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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