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बेसनगर को [[पाली भाषा|पाली]] [[बौद्ध]] ग्रंथों में 'वेस्सागर' तथा [[संस्कृत साहित्य]] में विदिशा के नाम से पुकारा गया है। [[भिलसा]] रेलवे स्टेशन से पश्चिम की तरफ़ क़रीब 2 मील {{मील|मील=2}} की दूरी पर स्थित यह स्थान पुरातत्वेत्ताओं की सांस्कृतिक भूमि कहा जा सकता है। यह वेत्रवती और [[बेस नदी]] से घिरा हुआ है तथा शेष दो तरफ़ की भूमि पर प्राचीर बनाकर नगर को एक क़िले का रूप प्रदान कर दिया गया था।<ref name="ab">{{cite web |url=http://www.ignca.nic.in/coilnet/mw038.htm |title=बेसनगर|accessmonthday=27 जनवरी|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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====अवशेष====
====अवशेष====
प्राचीन काल का वैभव संपन्न यह नगर अब टूटी-फूटी मूर्तियों व कलायुक्त भवनों का खंडहर मात्र रह गया है। यहाँ पाये जाने वाले भग्नावशेष ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी से 11वीं शताब्दी तक की कहानी कहते हैं। अब भी इस स्थान पर ही एक तरफ़ 'बेस' नामक ग्राम बचा हुआ है। बेसनगर का राजनीतिक महत्व [[मौर्य काल]] में [[अशोक]] के समय से बढ़ा। शुंग काल में यह बहुत ही प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र के रूप में दूर-दूर तक जाना जाता था। यह स्थान [[हिन्दू]] व [[बौद्ध]] दोनों के लिए ही महत्वपूर्ण था। [[गुप्त काल]] तक इसकी समृद्धि क़ायम रही। उसके पश्चात इसके कृत्रिम इतिहास का स्पष्ट साक्ष्य नहीं मिलता।
प्राचीन काल का वैभव संपन्न यह नगर अब टूटी-फूटी मूर्तियों व कलायुक्त भवनों का खंडहर मात्र रह गया है। यहाँ पाये जाने वाले भग्नावशेष ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी से 11वीं शताब्दी तक की कहानी कहते हैं। अब भी इस स्थान पर ही एक तरफ़ 'बेस' नामक ग्राम बचा हुआ है। बेसनगर का राजनीतिक महत्व [[मौर्य काल]] में [[अशोक]] के समय से बढ़ा। शुंग काल में यह बहुत ही प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र के रूप में दूर-दूर तक जाना जाता था। यह स्थान [[हिन्दू]] व [[बौद्ध]] दोनों के लिए ही महत्त्वपूर्ण था। [[गुप्त काल]] तक इसकी समृद्धि क़ायम रही। उसके पश्चात् इसके कृत्रिम इतिहास का स्पष्ट साक्ष्य नहीं मिलता।
==उत्खनन कार्य==
==उत्खनन कार्य==
10वीं शताब्दी में नदी के दूसरी तरफ़ स्थित '[[भिलसा]]' अस्तित्व में आ चुका था। बेसनगर के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए पुरातत्व विभाग द्वारा उत्खनन कार्य किये गये थे। उत्खनन में मिले कुछ [[अवशेष]] ईसवी काल के प्रारंभ के सामाजिक जीवन पर प्रकाश डालते हैं। [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार यहाँ [[पुष्यमित्र शुंग]] ने [[यज्ञ]] किया था। खुदाई में बड़े-बड़े यज्ञों की कार्यस्थली के विशेष चिह्न मिले हैं। विद्धानों द्वारा शास्त्रार्थ किये जाने वाले कक्ष एवं भोजनशाला का प्रमाण भी मिलता है। इसके अलावा विभिन्न कार्यों से संबद्ध कई तरह की मुद्राएँ तथा [[मिट्टी]] की पकाई हुई वस्तुओं से उनके जीवन की झांकी प्रतिबिंबित होती है।<ref name="ab"/>
10वीं शताब्दी में नदी के दूसरी तरफ़ स्थित '[[भिलसा]]' अस्तित्व में आ चुका था। बेसनगर के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए पुरातत्व विभाग द्वारा उत्खनन कार्य किये गये थे। उत्खनन में मिले कुछ [[अवशेष]] ईसवी काल के प्रारंभ के सामाजिक जीवन पर प्रकाश डालते हैं। [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार यहाँ [[पुष्यमित्र शुंग]] ने [[यज्ञ]] किया था। खुदाई में बड़े-बड़े यज्ञों की कार्यस्थली के विशेष चिह्न मिले हैं। विद्धानों द्वारा शास्त्रार्थ किये जाने वाले कक्ष एवं भोजनशाला का प्रमाण भी मिलता है। इसके अलावा विभिन्न कार्यों से संबद्ध कई तरह की मुद्राएँ तथा [[मिट्टी]] की पकाई हुई वस्तुओं से उनके जीवन की झांकी प्रतिबिंबित होती है।<ref name="ab"/>

07:44, 23 जून 2017 के समय का अवतरण

हेलिओडोरस स्तंभ, विदिशा

बेसनगर पूर्वी मालवा में स्थित प्राचीन नगर विदिशा का ही आधुनिक नाम है। शुंग राजाओं के शासन काल में इस नगर का बहुत ही महत्त्व था। शुंग राजाओं के शासन के बाद भी अनेक वर्षों तक बेसनगर स्थानीय शासकों की राजधानी बना रहा। यहाँ के शासकों ने भारत की पश्चिमोत्तर सीमा पर स्थित यवन शासकों के साथ राजनीतिक सम्बन्ध बना रखे थे। बेसनगर में भगवान वासुदेव के सम्मान में तक्षशिला के राजा एंटिआल्किडस के राजदूत हेलियोडोरस ने लगभग 135 ई. पू. में एक 'गरुड़ ध्वज' स्थापित कराया गया था।

इतिहास

बेसनगर को पाली बौद्ध ग्रंथों में 'वेस्सागर' तथा संस्कृत साहित्य में विदिशा के नाम से पुकारा गया है। भिलसा रेलवे स्टेशन से पश्चिम की तरफ़ क़रीब 2 मील (लगभग 3.2 कि.मी.) की दूरी पर स्थित यह स्थान पुरातत्वेत्ताओं की सांस्कृतिक भूमि कहा जा सकता है। यह वेत्रवती और बेस नदी से घिरा हुआ है तथा शेष दो तरफ़ की भूमि पर प्राचीर बनाकर नगर को एक क़िले का रूप प्रदान कर दिया गया था।[1]

अवशेष

प्राचीन काल का वैभव संपन्न यह नगर अब टूटी-फूटी मूर्तियों व कलायुक्त भवनों का खंडहर मात्र रह गया है। यहाँ पाये जाने वाले भग्नावशेष ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी से 11वीं शताब्दी तक की कहानी कहते हैं। अब भी इस स्थान पर ही एक तरफ़ 'बेस' नामक ग्राम बचा हुआ है। बेसनगर का राजनीतिक महत्व मौर्य काल में अशोक के समय से बढ़ा। शुंग काल में यह बहुत ही प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र के रूप में दूर-दूर तक जाना जाता था। यह स्थान हिन्दूबौद्ध दोनों के लिए ही महत्त्वपूर्ण था। गुप्त काल तक इसकी समृद्धि क़ायम रही। उसके पश्चात् इसके कृत्रिम इतिहास का स्पष्ट साक्ष्य नहीं मिलता।

उत्खनन कार्य

10वीं शताब्दी में नदी के दूसरी तरफ़ स्थित 'भिलसा' अस्तित्व में आ चुका था। बेसनगर के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए पुरातत्व विभाग द्वारा उत्खनन कार्य किये गये थे। उत्खनन में मिले कुछ अवशेष ईसवी काल के प्रारंभ के सामाजिक जीवन पर प्रकाश डालते हैं। पुराणों के अनुसार यहाँ पुष्यमित्र शुंग ने यज्ञ किया था। खुदाई में बड़े-बड़े यज्ञों की कार्यस्थली के विशेष चिह्न मिले हैं। विद्धानों द्वारा शास्त्रार्थ किये जाने वाले कक्ष एवं भोजनशाला का प्रमाण भी मिलता है। इसके अलावा विभिन्न कार्यों से संबद्ध कई तरह की मुद्राएँ तथा मिट्टी की पकाई हुई वस्तुओं से उनके जीवन की झांकी प्रतिबिंबित होती है।[1]

कई साहित्यिक तथा पुरातात्विक प्रमाण इस स्थान का यवनों से संबंध स्पष्ट करते हैं। अभिलेखों में मिले शब्द 'द्विमित्रिय' को सिकंदर कालीन यूनानी शासक के रूप में माना जाता है। खाम बाबा का निर्माण भी यवन राजदूत अंकलितस ने ही करवाया था। यह कहा जाता है कि वर्तमान दुर्जनपुरा वही स्थान है, जहाँ यवनों का वास हुआ करता है। पहले यह दुमितपुरा के नाम से जाना जाता था।

इन्हें भी देखें: विदिशा


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 बेसनगर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 27 जनवरी, 2013।

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