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*[[राजपूत काल|राजपूत कालीन]] एक सुदृढ़ दुर्ग नूरपुर में स्थित है, जो [[इतिहास]] की दृष्टि से एक उल्लेखनीय स्मारक है।
*[[राजपूत काल|राजपूत कालीन]] एक सुदृढ़ दुर्ग नूरपुर में स्थित है, जो [[इतिहास]] की दृष्टि से एक उल्लेखनीय स्मारक है।
*अपनी चित्रकारी के लिए मशहूर नूरपुर ने चित्रकारी की कई ऊँचाईयों को छुआ है।
*अपनी चित्रकारी के लिए मशहूर नूरपुर ने चित्रकारी की कई ऊँचाईयों को छुआ है।
*बसौली के राजा कृपाल सिंह की मृत्यु के पश्चात उनके दरबार के चित्रकार [[जम्मू]], रामनगर, नूरपुर तथा गुलेर में जाकर बस गए थे।
*[[बसौली]] के राजा कृपाल सिंह की मृत्यु के पश्चात् उनके दरबार के चित्रकार [[जम्मू]], रामनगर, नूरपुर तथा गुलेर में जाकर बस गए थे।
*इन चित्रकारों ने नूरपुर आकर बसौली की परम्परा को जीवित रखा और उसके कर्कश स्वरूप को बदल कर उसमें कोमलता का नवीन पुट दिया, जिससे कांगड़ा की शैली का सूत्रपात हुआ।
*इन चित्रकारों ने नूरपुर आकर बसौली की परम्परा को जीवित रखा और उसके कर्कश स्वरूप को बदल कर उसमें कोमलता का नवीन पुट दिया, जिससे कांगड़ा की शैली का सूत्रपात हुआ।



07:48, 23 जून 2017 के समय का अवतरण

नूरपुर कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश का एक ऐतिहासिक स्थान है। चित्रकला की प्रसिद्ध 'कांगड़ा शैली', जो 18वीं शती में अपने विकास के चरमोत्कर्ष पर थी, का नूरपुर तथा गुलेर में जन्म हुआ था।[1]

  • राजपूत कालीन एक सुदृढ़ दुर्ग नूरपुर में स्थित है, जो इतिहास की दृष्टि से एक उल्लेखनीय स्मारक है।
  • अपनी चित्रकारी के लिए मशहूर नूरपुर ने चित्रकारी की कई ऊँचाईयों को छुआ है।
  • बसौली के राजा कृपाल सिंह की मृत्यु के पश्चात् उनके दरबार के चित्रकार जम्मू, रामनगर, नूरपुर तथा गुलेर में जाकर बस गए थे।
  • इन चित्रकारों ने नूरपुर आकर बसौली की परम्परा को जीवित रखा और उसके कर्कश स्वरूप को बदल कर उसमें कोमलता का नवीन पुट दिया, जिससे कांगड़ा की शैली का सूत्रपात हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 506 |

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