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'''ज़फ़रनामा''' [[सिक्ख|सिक्खों]] के दसवें और अंतिम गुरु [[गुरु गोविन्द सिंह|गोविन्द सिंह]] द्वारा लिखा गया वह पत्र है, जो उन्होंने आनन्दपुर छोड़ने के बाद सन 1706 में [[मुग़ल]] [[औरंगज़ेब|बादशाह औरंगज़ेब]] को लिखा था। इस पत्र को पढ़ कर औरंगज़ेब अत्यंत प्रभावित हुआ था। इस समय बादशाह औरंगज़ेब अपने जीवन के अंतिम दिन जी रहा था। यह पत्र मूल रूप से [[फ़ारसी भाषा]] में लिखा गया था। 'ज़फ़रनामा' में गुरु गोविन्द सिंह ने औरंगज़ेब के अत्याचारों के विरुद्ध आवाज़ उठाई थी। इस पत्र को 'विजय पत्र' भी कहा जाता है। नि:संदेह गुरु गोविन्द सिंह का यह पत्र आध्यात्मिकता, कूटनीति तथा शौर्य की अद्भुत त्रिवेणी है।
'''ज़फ़रनामा''' [[सिक्ख|सिक्खों]] के दसवें और अंतिम गुरु [[गुरु गोविन्द सिंह|गोविन्द सिंह]] द्वारा लिखा गया वह पत्र है, जो उन्होंने आनन्दपुर छोड़ने के बाद सन 1706 में [[मुग़ल]] [[औरंगज़ेब|बादशाह औरंगज़ेब]] को लिखा था। इस पत्र को पढ़ कर औरंगज़ेब अत्यंत प्रभावित हुआ था। इस समय बादशाह औरंगज़ेब अपने जीवन के अंतिम दिन जी रहा था। यह पत्र मूल रूप से [[फ़ारसी भाषा]] में लिखा गया था। 'ज़फ़रनामा' में गुरु गोविन्द सिंह ने औरंगज़ेब के अत्याचारों के विरुद्ध आवाज़ उठाई थी। इस पत्र को 'विजय पत्र' भी कहा जाता है। नि:संदेह गुरु गोविन्द सिंह का यह पत्र आध्यात्मिकता, कूटनीति तथा शौर्य की अद्भुत त्रिवेणी है।
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==ऐतिहासिक पत्र==
==ऐतिहासिक पत्र==
[[छत्रपति शिवाजी]] द्वारा [[राजा जयसिंह]] को लिखा गया पत्र और गुरु गोविन्द सिंह द्वारा बादशाह [[औरंगज़ेब]] को लिखा गया पत्र भारत के इतिहास में विख्यात हुए हैं। 'ज़फ़रनामा' मूल रूप में फ़ारसी में लिखा गया था। गुरु गोविन्द सिंह ने यह पत्र भाई दयासिंह के हाथों औरंगज़ेब को [[अहमदनगर]] में भिजवाया गया था। [[पिता]] [[गुरु तेग बहादुर]] और अपने चारों पुत्रों के बलिदान के बाद 1706 ई. में 'खिदराना की लड़ाई' के पश्चात गुरु गोविंद सिंह ने भाई दयासिंह को एक पत्र (ज़फ़रनामा) देकर औरंगज़ेब के पास भेजा। उन दिनों औरंगज़ेब [[दक्षिण भारत]] के अहमदनगर में अपने जीवन की अंतिम सांसें गिन रहा था। भाई दयासिंह [[दिल्ली]] और [[आगरा]] होते हुए एक लम्बा मार्ग तय करके अहमदनगर पहुँचे थे। गुरु गोविंद सिंह के इस पत्र से औरंगज़ेब को [[उत्तर भारत]], विशेषकर [[पंजाब]] की वास्तविक स्थिति का पता चला। वह समझ गया कि पंजाब के [[मुग़ल]] [[सूबेदार]] के गलत समाचारों से वह भ्रमित हुआ था। साथ ही उसे गुरु गोविंद सिंह की वीरता तथा प्रतिष्ठा का भी अनुभव हुआ।
[[छत्रपति शिवाजी]] द्वारा [[राजा जयसिंह]] को लिखा गया पत्र और गुरु गोविन्द सिंह द्वारा बादशाह [[औरंगज़ेब]] को लिखा गया पत्र भारत के इतिहास में विख्यात हुए हैं। 'ज़फ़रनामा' मूल रूप में फ़ारसी में लिखा गया था। गुरु गोविन्द सिंह ने यह पत्र भाई दयासिंह के हाथों औरंगज़ेब को [[अहमदनगर]] में भिजवाया था। [[पिता]] [[गुरु तेग बहादुर]] और अपने चारों पुत्रों के बलिदान के बाद 1706 ई. में 'खिदराना की लड़ाई' के पश्चात् गुरु गोविन्द सिंह ने भाई दयासिंह को एक पत्र (ज़फ़रनामा) देकर औरंगज़ेब के पास भेजा। उन दिनों औरंगज़ेब [[दक्षिण भारत]] के अहमदनगर में अपने जीवन की अंतिम सांसें गिन रहा था। भाई दयासिंह [[दिल्ली]] और [[आगरा]] होते हुए एक लम्बा मार्ग तय करके अहमदनगर पहुँचे थे। गुरु गोविन्द सिंह के इस पत्र से औरंगज़ेब को [[उत्तर भारत]], विशेषकर [[पंजाब]] की वास्तविक स्थिति का पता चला। वह समझ गया कि पंजाब के [[मुग़ल]] [[सूबेदार]] के गलत समाचारों से वह भ्रमित हुआ था। साथ ही उसे गुरु गोविन्द सिंह की वीरता तथा प्रतिष्ठा का भी अनुभव हुआ।
 
औरंगज़ेब ने जबरदार और मुहम्मद यार नाम के [[मनसबदार]] को एक शाही फरमान देकर दिल्ली भेजा, जिसमें गुरु गोविन्द सिंह को किसी भी प्रकार का कष्ट न देने तथा सम्मानपूर्वक लाने का आदेश था। परंतु गुरु गोविन्द सिंह को काफ़ी समय तक यह ज्ञात नहीं हुआ कि भाई दयासिंह अहमदनगर में औरंगज़ेब को 'ज़फ़रनामा' देने में सफल हुए या नहीं। अत: वे स्वयं ही अहमदनगर की ओर चल पड़े। [[अक्टूबर]], 1706 ई. में उन्होंने दक्षिण भारत की ओर प्रस्थान किया। उन्होंने [[मारवाड़]] के मार्ग से दक्षिण जाने का विचार किया। मार्ग में [[राजस्थान]] के अनेक राजाओं ने उनका स्वागत किया। बापौर नामक स्थान पर उनकी भाई दयासिंह से भेंट हुई, जो वापस पंजाब लौट रहे थे। गुरु गोविन्द सिंह को सभी समाचारों की जानकारी हुई। यात्रा के बीच में ही [[20 फ़रवरी]], 1707 को उन्हें अहमदनगर में औरंगज़ेब की मौत का समाचार मिला, अत: उनकी [[औरंगज़ेब]] से भेंट नहीं हो सकी।


औरंगज़ेब ने जबरदार और मुहम्मद यार नाम के [[मनसबदार]] को एक शाही फरमान देकर दिल्ली भेजा, जिसमें गुरु गोविंद सिंह को किसी भी प्रकार का कष्ट न देने तथा सम्मानपूर्वक लाने का आदेश था। परंतु गुरु गोविंद सिंह को काफ़ी समय तक यह ज्ञात नहीं हुआ कि भाई दयासिंह अहमदनगर में औरंगज़ेब को 'ज़फ़रनामा' देने में सफल हुए या नहीं। अत: वे स्वयं ही अहमदनगर की ओर चल पड़े। [[अक्टूबर]], 1706 ई. में उन्होंने दक्षिण भारत की ओर प्रस्थान किया। उन्होंने [[मारवाड़]] के मार्ग से दक्षिण जाने का विचार किया। मार्ग में [[राजस्थान]] के अनेक राजाओं ने उनका स्वागत किया। बापौर नामक स्थान पर उनकी भाई दयासिंह से भेंट हुई, जो वापस पंजाब लौट रहे थे। गुरु गोविंद सिंह को सभी समाचारों की जानकारी हुई। यात्रा के बीच में ही [[20 फ़रवरी]], 1707 को उन्हें अहमदनगर में औरंगज़ेब की मौत का समाचार मिला, अत: उनकी [[औरंगज़ेब]] से भेंट नहीं हो सकी।
==अर्थ==
==अर्थ==
'ज़फ़रनामा' का शाब्दिक अर्थ होता है- "विजय का पत्र"। यह पत्र आज से 300 वर्ष पूर्व गुरु गोविन्द सिंह द्वारा लिखा गया। पत्र में [[औरंगज़ेब]] की झूठी कसमों एवं उसके कुशासन की चर्चा की गई है। 'ज़फ़रनामा' में मुग़लों के अत्याचार, उनके राजनीतिक दृष्टिकोण, मुल्ला-मौलवियों के तौर-तरीके आदि की भी चर्चा है। [[गुरु गोविन्द सिंह]] द्वारा औरंगज़ेब को फ़ारसी में लिखे पत्रों का एक दूसरा संग्रह 'हिकायतनामह' के नाम से है।
'ज़फ़रनामा' का शाब्दिक अर्थ होता है- "विजय का पत्र"। यह पत्र आज से 300 वर्ष पूर्व गुरु गोविन्द सिंह द्वारा लिखा गया। पत्र में [[औरंगज़ेब]] की झूठी कसमों एवं उसके कुशासन की चर्चा की गई है। 'ज़फ़रनामा' में मुग़लों के अत्याचार, उनके राजनीतिक दृष्टिकोण, मुल्ला-मौलवियों के तौर-तरीके आदि की भी चर्चा है। [[गुरु गोविन्द सिंह]] द्वारा औरंगज़ेब को फ़ारसी में लिखे पत्रों का एक दूसरा संग्रह 'हिकायतनामह' के नाम से है।
==गुरु गोविन्द सिंह का कथन==
==गुरु गोविन्द सिंह का कथन==
'ज़फ़रनामा' में स्वयं गुरु गोविन्द सिंह जी ने लिखा है कि- "जब सारे साधन निष्फल हो जायें, तब तलवार ग्रहण करना न्यायोचित है।" अपने [[माता]]-[[पिता]], पुत्रों और हज़ारों [[सिक्ख|सिक्खों]] के प्राणों की आहुति देने के बाद गुरु गोविन्द सिंह [[औरंगज़ेब]] को [[फ़ारसी भाषा]] में लिखे अपने पत्र 'ज़फ़रनामा' में लिखते हैं- "औरंगज़ेब तुझे प्रभु को पहचानना चाहिए तथा प्रजा को दु:खी नहीं करना चाहिए। तूने [[क़ुरान]] की कसम खाकर कहा था कि मैं सुलह रखूँगा, लड़ाई नहीं करूँगा, यह क़सम तुम्हारे सिर पर भार है। तू अब उसे पूरा कर।"
'ज़फ़रनामा' में स्वयं गुरु गोविन्द सिंह जी ने लिखा है कि- "जब सारे साधन निष्फल हो जायें, तब तलवार ग्रहण करना न्यायोचित है।" अपने [[माता]]-[[पिता]], पुत्रों और हज़ारों [[सिक्ख|सिक्खों]] के प्राणों की आहुति देने के बाद गुरु गोविन्द सिंह [[औरंगज़ेब]] को [[फ़ारसी भाषा]] में लिखे अपने पत्र 'ज़फ़रनामा' में लिखते हैं- "औरंगज़ेब तुझे प्रभु को पहचानना चाहिए तथा प्रजा को दु:खी नहीं करना चाहिए। तूने [[क़ुरान]] की कसम खाकर कहा था कि मैं सुलह रखूँगा, लड़ाई नहीं करूँगा, यह क़सम तुम्हारे सिर पर भार है। तू अब उसे पूरा कर।" 'ज़फ़रनामा' के लेखक का स्वर एक विजेता का स्वर है, जिसमें किसी प्रकार के विषाद एवं कुंठा की झलक दिखाई नहीं पड़ती। अत्यन्त ओजस्वी भाषा में गुरु गोविन्द सिंह [[औरंगज़ेब]] की तमाम अच्छाइयों को दिखाते हुए भी डटकर लिखते हैं कि- "तुम [[धर्म]] से कोसों दूर हो।"


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==संबंधित लेख==
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07:53, 23 जून 2017 के समय का अवतरण

गुरु गोविन्द सिंह

ज़फ़रनामा सिक्खों के दसवें और अंतिम गुरु गोविन्द सिंह द्वारा लिखा गया वह पत्र है, जो उन्होंने आनन्दपुर छोड़ने के बाद सन 1706 में मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब को लिखा था। इस पत्र को पढ़ कर औरंगज़ेब अत्यंत प्रभावित हुआ था। इस समय बादशाह औरंगज़ेब अपने जीवन के अंतिम दिन जी रहा था। यह पत्र मूल रूप से फ़ारसी भाषा में लिखा गया था। 'ज़फ़रनामा' में गुरु गोविन्द सिंह ने औरंगज़ेब के अत्याचारों के विरुद्ध आवाज़ उठाई थी। इस पत्र को 'विजय पत्र' भी कहा जाता है। नि:संदेह गुरु गोविन्द सिंह का यह पत्र आध्यात्मिकता, कूटनीति तथा शौर्य की अद्भुत त्रिवेणी है।

ऐतिहासिक पत्र

छत्रपति शिवाजी द्वारा राजा जयसिंह को लिखा गया पत्र और गुरु गोविन्द सिंह द्वारा बादशाह औरंगज़ेब को लिखा गया पत्र भारत के इतिहास में विख्यात हुए हैं। 'ज़फ़रनामा' मूल रूप में फ़ारसी में लिखा गया था। गुरु गोविन्द सिंह ने यह पत्र भाई दयासिंह के हाथों औरंगज़ेब को अहमदनगर में भिजवाया था। पिता गुरु तेग बहादुर और अपने चारों पुत्रों के बलिदान के बाद 1706 ई. में 'खिदराना की लड़ाई' के पश्चात् गुरु गोविन्द सिंह ने भाई दयासिंह को एक पत्र (ज़फ़रनामा) देकर औरंगज़ेब के पास भेजा। उन दिनों औरंगज़ेब दक्षिण भारत के अहमदनगर में अपने जीवन की अंतिम सांसें गिन रहा था। भाई दयासिंह दिल्ली और आगरा होते हुए एक लम्बा मार्ग तय करके अहमदनगर पहुँचे थे। गुरु गोविन्द सिंह के इस पत्र से औरंगज़ेब को उत्तर भारत, विशेषकर पंजाब की वास्तविक स्थिति का पता चला। वह समझ गया कि पंजाब के मुग़ल सूबेदार के गलत समाचारों से वह भ्रमित हुआ था। साथ ही उसे गुरु गोविन्द सिंह की वीरता तथा प्रतिष्ठा का भी अनुभव हुआ।

औरंगज़ेब ने जबरदार और मुहम्मद यार नाम के मनसबदार को एक शाही फरमान देकर दिल्ली भेजा, जिसमें गुरु गोविन्द सिंह को किसी भी प्रकार का कष्ट न देने तथा सम्मानपूर्वक लाने का आदेश था। परंतु गुरु गोविन्द सिंह को काफ़ी समय तक यह ज्ञात नहीं हुआ कि भाई दयासिंह अहमदनगर में औरंगज़ेब को 'ज़फ़रनामा' देने में सफल हुए या नहीं। अत: वे स्वयं ही अहमदनगर की ओर चल पड़े। अक्टूबर, 1706 ई. में उन्होंने दक्षिण भारत की ओर प्रस्थान किया। उन्होंने मारवाड़ के मार्ग से दक्षिण जाने का विचार किया। मार्ग में राजस्थान के अनेक राजाओं ने उनका स्वागत किया। बापौर नामक स्थान पर उनकी भाई दयासिंह से भेंट हुई, जो वापस पंजाब लौट रहे थे। गुरु गोविन्द सिंह को सभी समाचारों की जानकारी हुई। यात्रा के बीच में ही 20 फ़रवरी, 1707 को उन्हें अहमदनगर में औरंगज़ेब की मौत का समाचार मिला, अत: उनकी औरंगज़ेब से भेंट नहीं हो सकी।

अर्थ

'ज़फ़रनामा' का शाब्दिक अर्थ होता है- "विजय का पत्र"। यह पत्र आज से 300 वर्ष पूर्व गुरु गोविन्द सिंह द्वारा लिखा गया। पत्र में औरंगज़ेब की झूठी कसमों एवं उसके कुशासन की चर्चा की गई है। 'ज़फ़रनामा' में मुग़लों के अत्याचार, उनके राजनीतिक दृष्टिकोण, मुल्ला-मौलवियों के तौर-तरीके आदि की भी चर्चा है। गुरु गोविन्द सिंह द्वारा औरंगज़ेब को फ़ारसी में लिखे पत्रों का एक दूसरा संग्रह 'हिकायतनामह' के नाम से है।

गुरु गोविन्द सिंह का कथन

'ज़फ़रनामा' में स्वयं गुरु गोविन्द सिंह जी ने लिखा है कि- "जब सारे साधन निष्फल हो जायें, तब तलवार ग्रहण करना न्यायोचित है।" अपने माता-पिता, पुत्रों और हज़ारों सिक्खों के प्राणों की आहुति देने के बाद गुरु गोविन्द सिंह औरंगज़ेब को फ़ारसी भाषा में लिखे अपने पत्र 'ज़फ़रनामा' में लिखते हैं- "औरंगज़ेब तुझे प्रभु को पहचानना चाहिए तथा प्रजा को दु:खी नहीं करना चाहिए। तूने क़ुरान की कसम खाकर कहा था कि मैं सुलह रखूँगा, लड़ाई नहीं करूँगा, यह क़सम तुम्हारे सिर पर भार है। तू अब उसे पूरा कर।" 'ज़फ़रनामा' के लेखक का स्वर एक विजेता का स्वर है, जिसमें किसी प्रकार के विषाद एवं कुंठा की झलक दिखाई नहीं पड़ती। अत्यन्त ओजस्वी भाषा में गुरु गोविन्द सिंह औरंगज़ेब की तमाम अच्छाइयों को दिखाते हुए भी डटकर लिखते हैं कि- "तुम धर्म से कोसों दूर हो।"

इन्हें भी देखें: गुरु गोविंद सिंह


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