"एहि अवसर मंगलु परम": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
कविता भाटिया (वार्ता | योगदान) ('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - " जगत " to " जगत् ") |
||
पंक्ति 37: | पंक्ति 37: | ||
;भावार्थ | ;भावार्थ | ||
और भरत के समान | और भरत के समान जगत् में (हमें) कौन प्यारा है! शकुन का बस, यही फल है, दूसरा नहीं। श्री रामचन्द्रजी को (अपने) भाई भरत का दिन-रात ऐसा सोच रहता है जैसा कछुए का हृदय अंडों में रहता है॥4॥ | ||
{{लेख क्रम4| पिछला=भरत सरिस प्रिय को जग माहीं|मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=प्रथम जाइ जिन्ह बचन सुनाए}} | {{लेख क्रम4| पिछला=भरत सरिस प्रिय को जग माहीं|मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=प्रथम जाइ जिन्ह बचन सुनाए}} |
13:49, 30 जून 2017 के समय का अवतरण
एहि अवसर मंगलु परम
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
एहि अवसर मंगलु परम सुनि रहँसेउ रनिवासु। |
- भावार्थ
और भरत के समान जगत् में (हमें) कौन प्यारा है! शकुन का बस, यही फल है, दूसरा नहीं। श्री रामचन्द्रजी को (अपने) भाई भरत का दिन-रात ऐसा सोच रहता है जैसा कछुए का हृदय अंडों में रहता है॥4॥
एहि अवसर मंगलु परम |
दोहा - मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख