"तेहि फल कर फलु दरस तुम्हारा": अवतरणों में अंतर
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{{लेख क्रम4| पिछला= सुनहु भरत हम झूठ न कहहीं |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला= सुनि मुनि बचन सभासद हरषे}} | {{लेख क्रम4| पिछला= सुनहु भरत हम झूठ न कहहीं |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला= सुनि मुनि बचन सभासद हरषे}} |
14:03, 30 जून 2017 के समय का अवतरण
तेहि फल कर फलु दरस तुम्हारा
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
सभी (7) काण्ड क्रमश: | बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड |
तेहि फल कर फलु दरस तुम्हारा। सहित प्रयाग सुभाग हमारा॥ |
- भावार्थ
(सीता-लक्ष्मण सहित श्री रामदर्शन रूप) उस महान् फल का परम फल यह तुम्हारा दर्शन है! प्रयागराज समेत हमारा बड़ा भाग्य है। हे भरत! तुम धन्य हो, तुमने अपने यश से जगत् को जीत लिया है। ऐसा कहकर मुनि प्रेम में मग्न हो गए॥3॥
तेहि फल कर फलु दरस तुम्हारा |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (अयोध्याकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-267
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