"पारिजात प्रथम सर्ग": अवतरणों में अंतर
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शार्दूल-विक्रीडित | '''शार्दूल-विक्रीडित''' | ||
आराधे भव-साधना सरल हो साधें सुधासिक्त हों। | आराधे भव-साधना सरल हो साधें सुधासिक्त हों। | ||
सारी भाव-विभूति भूतपति की हो सिध्दियों से भरी। | सारी भाव-विभूति भूतपति की हो सिध्दियों से भरी। | ||
पाता की अनुकूलता कलित हो धाता विधाता बने। | पाता की अनुकूलता कलित हो धाता विधाता बने। | ||
पाके मादकता-विहीन मधुता हो मोदिता मेदिनी॥1॥ | पाके मादकता-विहीन मधुता हो मोदिता मेदिनी॥1॥ | ||
सारे मानस-भाव इन्द्रधानु-से हो मुग्धता से भ। | सारे मानस-भाव इन्द्रधानु-से हो मुग्धता से भ। | ||
देखे श्यामलता प्रमोद-मदिरा मेधा-मयूरी पिये। | देखे श्यामलता प्रमोद-मदिरा मेधा-मयूरी पिये। | ||
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भू को मेघ मनोज्ञ-मूर्ति कर दे माधुर्य-मुक्तामयी॥2॥ | भू को मेघ मनोज्ञ-मूर्ति कर दे माधुर्य-मुक्तामयी॥2॥ | ||
वसंत-तिलका | '''वसंत-तिलका''' | ||
तो क्यों न लोकहित लालित हो सकेगा। | तो क्यों न लोकहित लालित हो सकेगा। | ||
जो लालसा ललित भाव ललाम होगे। | जो लालसा ललित भाव ललाम होगे। | ||
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जो कल्प-बेलि सम कामद कल्पना हो॥3॥ | जो कल्प-बेलि सम कामद कल्पना हो॥3॥ | ||
द्रुतविलम्बित | '''द्रुतविलम्बित''' | ||
सुजनता जनता-हितकारिता। | सुजनता जनता-हितकारिता। | ||
मधुरता मृदुता यदि है भली। | मधुरता मृदुता यदि है भली। | ||
मनुजता-रत सादर तो सुनें। | मनुजता-रत सादर तो सुनें। | ||
सुकवि की कलिता कवितावली॥4॥ | सुकवि की कलिता कवितावली॥4॥ | ||
विकल है करती यदि काल की। | विकल है करती यदि काल की। | ||
कलि-विभूति-मयी विकरालता। | कलि-विभूति-मयी विकरालता। | ||
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हितकरी 'हरिऔध'-पदावली॥5॥ | हितकरी 'हरिऔध'-पदावली॥5॥ | ||
शार्दूल-विक्रीडित | '''शार्दूल-विक्रीडित''' | ||
है आलोकित लोक-लोक किसकी आलोक-माला मिले। | है आलोकित लोक-लोक किसकी आलोक-माला मिले। | ||
पाते हैं उसको सुरासुर कहाँ जो सत्य सर्वस्व है। | पाते हैं उसको सुरासुर कहाँ जो सत्य सर्वस्व है। | ||
है संयोजक कौन सूर-राशि का, स्वर्गीय सम्पत्ति का। | है संयोजक कौन सूर-राशि का, स्वर्गीय सम्पत्ति का। | ||
कोई क्यों उसको असार समझे, संसार में सार है॥6॥ | कोई क्यों उसको असार समझे, संसार में सार है॥6॥ | ||
न्यारी शान्ति मिली कहीं विलसती, है क्रान्ति होती कहीं। | न्यारी शान्ति मिली कहीं विलसती, है क्रान्ति होती कहीं। | ||
प्याला है रस का कहीं छलकता, है ज्वाल-माला कहीं। | प्याला है रस का कहीं छलकता, है ज्वाल-माला कहीं। | ||
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है अत्यन्त अकल्पनीय भव की क्रीड़ामयी कल्पना॥7॥ | है अत्यन्त अकल्पनीय भव की क्रीड़ामयी कल्पना॥7॥ | ||
दिव्य दशमूर्ति | '''दिव्य दशमूर्ति''' | ||
गीत | |||
'''गीत''' | |||
जय-जय जयति लोक-ललाम, | जय-जय जयति लोक-ललाम, | ||
सकल मंगल-धाम। | सकल मंगल-धाम। | ||
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द्रवित उर 'हरिऔध' गुंफित दिव्य जन गुणग्राम॥11॥ | द्रवित उर 'हरिऔध' गुंफित दिव्य जन गुणग्राम॥11॥ | ||
शार्दूल-विक्रीडित | '''शार्दूल-विक्रीडित''' | ||
नाना कार्य-विधायिनी निपुणता नीतिज्ञता विज्ञता। | नाना कार्य-विधायिनी निपुणता नीतिज्ञता विज्ञता। | ||
न्यारी जाति-हितैषिता सबलता निर्भीकता दक्षता। | न्यारी जाति-हितैषिता सबलता निर्भीकता दक्षता। | ||
सच्ची सज्जनता स्वधर्म-मतिता स्वच्छन्दता सत्यता। | सच्ची सज्जनता स्वधर्म-मतिता स्वच्छन्दता सत्यता। | ||
दिव्यों की दर्शमूर्ति देश-जन को देती रहे दिव्यता॥12॥ | दिव्यों की दर्शमूर्ति देश-जन को देती रहे दिव्यता॥12॥ | ||
कामना | |||
गीत | '''कामना''' | ||
'''गीत''' | |||
विधि-विधन हो मधुमय मृदुल मनोहर। | विधि-विधन हो मधुमय मृदुल मनोहर। | ||
आलोकित हो लोक अधिकतर | आलोकित हो लोक अधिकतर | ||
हो काल विपुल अनुकूल सकल कलि-मल टले॥1॥ | हो काल विपुल अनुकूल सकल कलि-मल टले॥1॥ | ||
विमल विचार-विवेक-वलित हो मानस। | विमल विचार-विवेक-वलित हो मानस। | ||
पाये तेज दलित हो तामस। | पाये तेज दलित हो तामस। | ||
मंजुल-तम ज्ञान-प्रदीप हृदय-तल में बले॥2॥ | मंजुल-तम ज्ञान-प्रदीप हृदय-तल में बले॥2॥ | ||
हो सजीवता सर्व जनों में संचित। | हो सजीवता सर्व जनों में संचित। | ||
क न कोमल प्रकृति प्रवंचित। | क न कोमल प्रकृति प्रवंचित। | ||
भावे भावुकता भूति भाव होवें भले॥3॥ | भावे भावुकता भूति भाव होवें भले॥3॥ | ||
कर न सके भयभीत किसी को भावी। | कर न सके भयभीत किसी को भावी। | ||
साहस बने सुधारस-स्रावी। | साहस बने सुधारस-स्रावी। | ||
दिखलावे सबल समोद दुखित दल | दिखलावे सबल समोद दुखित दल दु:ख दले॥4॥ | ||
मद-रज से हों मानस-मुकुर न मैले। | मद-रज से हों मानस-मुकुर न मैले। | ||
बंधु-भाव वसुधा में फैले। | बंधु-भाव वसुधा में फैले। | ||
मानवता का कर दलन न दानवता खले॥5॥ | मानवता का कर दलन न दानवता खले॥5॥ | ||
मर्म हृदय का हृदयवान् जन जाने। | मर्म हृदय का हृदयवान् जन जाने। | ||
ममता पर ममता पहचाने। | ममता पर ममता पहचाने। | ||
बन धर्म धुरंधर लोक-कर्म-पथ पर चले॥6॥ | बन धर्म धुरंधर लोक-कर्म-पथ पर चले॥6॥ | ||
जगा जीवनी-ज्योति जातियाँ जागें। | जगा जीवनी-ज्योति जातियाँ जागें। | ||
अनुरंजन-रत हो अनुरागें। | अनुरंजन-रत हो अनुरागें। | ||
भव-हित-पलने में देश-प्रेम प्रिय शिशु पले॥7॥ | भव-हित-पलने में देश-प्रेम प्रिय शिशु पले॥7॥ | ||
विपुल विनोदित बने सुखित हो पावे। | विपुल विनोदित बने सुखित हो पावे। | ||
सुर-वांछित वैभव अपनावे। | सुर-वांछित वैभव अपनावे। | ||
पहुँचे पुनीत तम सुजन देव-पादप-तले॥8॥ | पहुँचे पुनीत तम सुजन देव-पादप-तले॥8॥ | ||
द्रवित मोम सम पवि मानस हो जावे। | द्रवित मोम सम पवि मानस हो जावे। | ||
कूटनीति तृण-राशि जलावे। | कूटनीति तृण-राशि जलावे। | ||
होवे हित-पावक प्रखर प्रेम-पंखा झले॥9॥ | होवे हित-पावक प्रखर प्रेम-पंखा झले॥9॥ | ||
छिले न कोई उर न क्षोभ छू जावे। | छिले न कोई उर न क्षोभ छू जावे। | ||
शान्ति-छटा छिटकी दिखलावे। | शान्ति-छटा छिटकी दिखलावे। | ||
छल करके कोई छली न क्षिति-तल को छले॥10॥ | छल करके कोई छली न क्षिति-तल को छले॥10॥ | ||
सब विभेद तज भेद-साधना जाने। | सब विभेद तज भेद-साधना जाने। | ||
महामंत्र भव-हित को माने। | महामंत्र भव-हित को माने। | ||
अभिमत फल पाकर साधक जन फूले-फले॥11॥ | अभिमत फल पाकर साधक जन फूले-फले॥11॥ | ||
शिखरिणी | '''शिखरिणी''' | ||
दिवा-स्वामी होवे रुचिर रुचिकारी दिवस हो। | दिवा-स्वामी होवे रुचिर रुचिकारी दिवस हो। | ||
दिशाएँ दिव्या हों सरस सुखदायी समय हो। | दिशाएँ दिव्या हों सरस सुखदायी समय हो। | ||
मयंकाभा होवे सित-तम महा मंजु रजनी। | मयंकाभा होवे सित-तम महा मंजु रजनी। | ||
सुधा की धारा से धुल-धुल धरा हो धवलिता॥12॥ | सुधा की धारा से धुल-धुल धरा हो धवलिता॥12॥ | ||
भले भावों से हो भरित भव भावी सबलता। | भले भावों से हो भरित भव भावी सबलता। | ||
स्वभावों को भावें भुवन-भयहारी सदयता। | स्वभावों को भावें भुवन-भयहारी सदयता। | ||
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सुधारों में होवे सुरसरि-सुधा-सी सरसता॥13॥ | सुधारों में होवे सुरसरि-सुधा-सी सरसता॥13॥ | ||
उमंग-भ युवक | '''उमंग-भ युवक''' | ||
गीत | |||
'''गीत''' | |||
हैं भूतल-परिचालक प्रतिपालक ए। | हैं भूतल-परिचालक प्रतिपालक ए। | ||
तोयधि-तुंग-तरंग युवक-उमंग-भरे॥1॥ | तोयधि-तुंग-तरंग युवक-उमंग-भरे॥1॥ | ||
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हैं पविता-परिचायक शित शायक ए। | हैं पविता-परिचायक शित शायक ए। | ||
सब पदार्थ-सर्वस्व स्वार्थ-परता परे॥10॥ | सब पदार्थ-सर्वस्व स्वार्थ-परता परे॥10॥ | ||
वंशस्थ | |||
'''वंशस्थ''' | |||
सदैव होवें समयानुगामिनी। | सदैव होवें समयानुगामिनी। | ||
प्रसादिनी मानवतावलम्बिनी। | प्रसादिनी मानवतावलम्बिनी। | ||
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वसुंधरा-वैभव बाल-वृन्द हों॥12॥ | वसुंधरा-वैभव बाल-वृन्द हों॥12॥ | ||
वसंत-तिलका | '''वसंत-तिलका''' | ||
भूलोक-भूति भवसिध्दि-मयी मनोज्ञा। | भूलोक-भूति भवसिध्दि-मयी मनोज्ञा। | ||
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भूले न लोक-हित मंत्र-मदांध हो के। | भूले न लोक-हित मंत्र-मदांध हो के। | ||
पी के प्रसाद-मदिरा न बने प्रमादी। | पी के प्रसाद-मदिरा न बने प्रमादी। | ||
पाके | पाके महान् पद मानवता न खोवे। | ||
होवे न मत्त बहु मान मिले मनस्वी॥16॥ | होवे न मत्त बहु मान मिले मनस्वी॥16॥ | ||
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सींचे सुधा बरस के अरसा रसा को। | सींचे सुधा बरस के अरसा रसा को। | ||
सच्चा सुधाधर बने वसुधाधिकारी॥17॥ | सच्चा सुधाधर बने वसुधाधिकारी॥17॥ | ||
'''भारत-भूतल''' | |||
'''शिखरिणी''' | |||
सिता-सी साधें हो सुकथन सुधा से मधुर हो। | |||
अछूते भावों से भर-भर बने भव्य प्रतिभा। | |||
रसों से सिक्ता हो पुलकित क सूक्ति सबको। | |||
विचारों की धारा सरस सरि-धारा-सदृश हो॥1॥ | |||
'''गीत''' | |||
जय भव-वंदित भारत-भूतल। | |||
शिर पर शोभित कलित क्रीट सम विलसित अचल हिमाचल॥1॥ | |||
कंठ-लग्न मुक्ता-माला-इव मंजुल सुर-सरि-धारा। | |||
होता है विधौत पग पावन पूत पयोनिधि द्वारा॥2॥ | |||
मणि-गण-मंडित कान्त कलेवर तरु कोमल दल श्यामल। | |||
सुधा-भरित नाना फल-संकुल सफलीकृत वसुधातल॥3॥ | |||
मधु-विकास-विकसित बहु सरसित शरद सितासित सुन्दर। | |||
सुरभित मलय-समीर-सुसेवित सुखनिधि मंजुल मंदर॥4॥ | |||
नव-नव उषा-राग-आरंजित मन-रंजन घन-माली। | |||
राका रजनी आयोजन रत लोकोत्तर छविशाली॥5॥ | |||
रुचिर पुरन्दर-चाप-विभूषित तारक-माला-सज्जित। | |||
रविकर-निकर-कलित-आलोकित चन्द्र-चारुता-मज्जित॥6॥ | |||
नंदन-वन-समान उपवन-मय चन्दन-तरु-चयधारी। | |||
लोक ललित लतिका कर-लालित ललामता अधिकारी॥7॥ | |||
खग-कुल-कलरव-कान्त कोकिला-आकुल-नाद-अलंकृत। | |||
मुग्धकरी कुसुमावलि-पूरित अलि-झंकार-सुझंकृत॥8॥ | |||
मनभावन महान् महिमामय पावन पद-परिचायक। | |||
सुरपुर-सम सम्पन्न दिव्य-तम सप्तपुरी-अधिनायक॥9॥ | |||
सकल अमंगल-मूल-निकंदन भव-जन-मंगलकारी। | |||
प्रेम-निलय 'हरिऔध' मधुर-तम मानस-सदन-विहारी॥10॥ | |||
'''द्रुतविलम्बित''' | |||
वृषभ-वाहन है शशि-मौलि है। | |||
वर-विभूति-विराजित गात है। | |||
सुर-तरंगिणि है शिर-मालिका। | |||
भरत-भूतल ही भव-मूर्ति है॥11॥ | |||
सतत है अवनीतल-रंजिनी। | |||
कमल-लोचन की कमनीयता। | |||
भुवन-मोहन है तन-श्यामता। | |||
भरत-भूमि रमापति-मूर्ति है॥12॥ | |||
मलिन लोचन की मल-मूलता। | |||
विविध मायिकता मनुजात की। | |||
हरण है करती मद-अंधता। | |||
भरत-भूतल-श्याम-स्वरूपता॥13॥ | |||
'''वसंत-तिलका''' | |||
है हंसवाहन चतुर्मुख चारु-मूर्ति। | |||
है वेद-वैभव-विकासक बुध्दि-दाता। | |||
सत्कर्म-धाम कमलासनताधिकारी। | |||
नाना विधन-रत भारत है विधाता॥14॥ | |||
'''वंशस्थ''' | |||
रमा समा है रमणीयता मिले। | |||
उमा समा है वन-सिंह-वाहना। | |||
गिरा समा है प्रतिभा-विभूषिता। | |||
विचित्र है भारत की वसुंधरा॥15॥ | |||
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14:06, 30 जून 2017 के समय का अवतरण
पारिजात | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- पारिजात (बहुविकल्पी) |
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शार्दूल-विक्रीडित |
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