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==चरमोत्कर्ष==
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अपने चरम काल में 'अख़ामनी वंश' पश्चिम में [[यूनान]] से लेकर पूर्व में [[सिंधु नदी]] तक और उत्तर में [[कैस्पियन सागर]] से लेकर दक्षिण में [[अरब सागर]] तक फैल चुक था। इस वंश के बाद इतना बड़ा साम्राज्य केवल 'सासानी' शासक ही स्थापित कर पाए थे। पश्चिम में इस साम्राज्य को [[मिस्र]] एवं [[बेबीलोन]] पर अधिकार, यूनान के साथ युद्ध तथा [[यहूदी|यहूदियों]] के मंदिर निर्माण में सहयोग के लिए याद किया जाता है। 'कुरोश' (साइरस) तथा 'दारुश' को [[इतिहास]] में महान की संज्ञा से भी संबोधित किया जाता है।
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====गौरवशाली अतीत====
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इस वंश को आधुनिक [[फ़ारसी भाषा]] बोलने वाले ईरानियों की संस्कृति का आधार माना जाता है। [[इस्लाम]] के पूर्व प्राचीन ईरान के इस साम्राज्य को ईरानी अपने गौरवशाली अतीत की तरह देखते हैं, जो अरबों द्वारा ईरान पर शासन और प्रभाव स्थापित करने से पूर्व था। आज भी ईरानी अपने नाम इस काल के शासकों के नाम पर रखते हैं, जो [[मुस्लिम]] नाम नहीं माने जाते। तीसरी सदी में स्थापित 'सासानी वंश' के शासकों ने अपना मूल 'अख़ामनी वंश' से ही माना था। इसी कड़ी में [[दारा प्रथम]] का नाम भी आता है, जो 'अख़ामनी वंश' के संस्थापक साइरस प्रथम जितना ही महान, वीर और महत्वाकांक्षी नरेश था। दारा प्रथम इस राजवंश का तीसरा शासक था। [[फ़ारस]] के इतिहास में दो साइरस और तीन डेरियस हुए हैं।
इस वंश को आधुनिक [[फ़ारसी भाषा]] बोलने वाले ईरानियों की संस्कृति का आधार माना जाता है। [[इस्लाम]] के पूर्व प्राचीन ईरान के इस साम्राज्य को ईरानी अपने गौरवशाली अतीत की तरह देखते हैं, जो अरबों द्वारा ईरान पर शासन और प्रभाव स्थापित करने से पूर्व था। आज भी ईरानी अपने नाम इस काल के शासकों के नाम पर रखते हैं, जो [[मुस्लिम]] नाम नहीं माने जाते। तीसरी सदी में स्थापित 'सासानी वंश' के शासकों ने अपना मूल 'अख़ामनी वंश' से ही माना था। इसी कड़ी में [[दारा प्रथम]] का नाम भी आता है, जो 'अख़ामनी वंश' के संस्थापक साइरस प्रथम जितना ही महान, वीर और महत्वाकांक्षी नरेश था। दारा प्रथम इस राजवंश का तीसरा शासक था। [[फ़ारस]] के इतिहास में दो साइरस और तीन डेरियस हुए हैं।
==साम्राज्य विस्तार==
==साम्राज्य विस्तार==
इतिहास में फ़ारस के 'अख़ामनी वंश' को ही [[भारत]] पर चढ़ाई करने वाला पहला विदेशी वंश माना जाता है। इस वंश के संस्थापक साइरस ने 551-530 के बीच अपना साम्राज्य [[पेशावर]] (अब [[पाकिस्तान]] में) से लेकर ग्रीस तक फैला लिया था। डेरियस का [[पिता]] 'विष्तास्पह्य' भी 'अख़ामनी राजवंश' का [[क्षत्रप]] था। समझा जाता है कि उसने साइरस के अधीन भी काम किया था। डेरियस प्रथम ने साइरस महान की आन, बान और शान को पूरी तरह से कायम रखा था, इसीलिए उसके जीवन काल में ही उसे भी "डेरियस महान" कहा जाने लगा था। 'अख़ामनी वंश' की राजधानी पर्सेपोलिस के शिलालेखों पर ऐसा ही दर्ज है। पुरातत्व पर्यटन के लिए मशहूर पर्सेपोलिस शहर डेरियस की राजधानी हुआ करता था। ऐसा माना जाता है कि यह शहर उसने ही बसाया था।
इतिहास में फ़ारस के 'अख़ामनी वंश' को ही [[भारत]] पर चढ़ाई करने वाला पहला विदेशी वंश माना जाता है। इस वंश के संस्थापक साइरस ने 551-530 के बीच अपना साम्राज्य [[पेशावर]] (अब [[पाकिस्तान]] में) से लेकर ग्रीस तक फैला लिया था। डेरियस का [[पिता]] 'विष्तास्पह्य' भी 'अख़ामनी राजवंश' का [[क्षत्रप]] था। समझा जाता है कि उसने साइरस के अधीन भी काम किया था। डेरियस प्रथम ने साइरस महान् की आन, बान और शान को पूरी तरह से कायम रखा था, इसीलिए उसके जीवन काल में ही उसे भी "डेरियस महान" कहा जाने लगा था। 'अख़ामनी वंश' की राजधानी पर्सेपोलिस के शिलालेखों पर ऐसा ही दर्ज है। पुरातत्व पर्यटन के लिए मशहूर पर्सेपोलिस शहर डेरियस की राजधानी हुआ करता था। ऐसा माना जाता है कि यह शहर उसने ही बसाया था।
====पतन====
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'अख़ामनी वंश' का पतन [[सिकन्दर]] के आक्रमण से सन 330 ई.पू. में हुआ, जिसके बाद इसके प्रदेशों पर 'यूनानी' (मेसीडोन) प्रभुत्व स्थापित हो गया था।
'अख़ामनी वंश' का पतन [[सिकन्दर]] के आक्रमण से सन 330 ई.पू. में हुआ, जिसके बाद इसके प्रदेशों पर 'यूनानी' (मेसीडोन) प्रभुत्व स्थापित हो गया था।

14:13, 30 जून 2017 के समय का अवतरण

अख़ामनी वंश (ई.पू. 550-330) प्राचीन ईरान का प्रथम ज्ञात शासकीय वंश माना जाता है। इस वंश के संस्थापक साइरस प्रथम ने 551-530 के बीच भारत में अपना साम्राज्य पेशावर से लेकर ग्रीस तक फैला लिया था। अख़ामनी शासकों ने आज के लगभग सम्पूर्ण ईरान पर अपनी प्रभुसत्ता स्थापित कर ली थी। डेरियस प्रथम इस राजवंश का वह प्रथम शासक था, जिसके समय में ईरान अपने उत्कृष्ट की चरम सीमा पर पहुँच गया था। इतिहास में फ़ारस के अख़ामनी वंश को ही भारत पर चढ़ाई करने वाला पहला विदेशी वंश माना जाता है।

चरमोत्कर्ष

अपने चरम काल में 'अख़ामनी वंश' पश्चिम में यूनान से लेकर पूर्व में सिंधु नदी तक और उत्तर में कैस्पियन सागर से लेकर दक्षिण में अरब सागर तक फैल चुक था। इस वंश के बाद इतना बड़ा साम्राज्य केवल 'सासानी' शासक ही स्थापित कर पाए थे। पश्चिम में इस साम्राज्य को मिस्र एवं बेबीलोन पर अधिकार, यूनान के साथ युद्ध तथा यहूदियों के मंदिर निर्माण में सहयोग के लिए याद किया जाता है। 'कुरोश' (साइरस) तथा 'दारुश' को इतिहास में महान् की संज्ञा से भी संबोधित किया जाता है।

गौरवशाली अतीत

इस वंश को आधुनिक फ़ारसी भाषा बोलने वाले ईरानियों की संस्कृति का आधार माना जाता है। इस्लाम के पूर्व प्राचीन ईरान के इस साम्राज्य को ईरानी अपने गौरवशाली अतीत की तरह देखते हैं, जो अरबों द्वारा ईरान पर शासन और प्रभाव स्थापित करने से पूर्व था। आज भी ईरानी अपने नाम इस काल के शासकों के नाम पर रखते हैं, जो मुस्लिम नाम नहीं माने जाते। तीसरी सदी में स्थापित 'सासानी वंश' के शासकों ने अपना मूल 'अख़ामनी वंश' से ही माना था। इसी कड़ी में दारा प्रथम का नाम भी आता है, जो 'अख़ामनी वंश' के संस्थापक साइरस प्रथम जितना ही महान, वीर और महत्वाकांक्षी नरेश था। दारा प्रथम इस राजवंश का तीसरा शासक था। फ़ारस के इतिहास में दो साइरस और तीन डेरियस हुए हैं।

साम्राज्य विस्तार

इतिहास में फ़ारस के 'अख़ामनी वंश' को ही भारत पर चढ़ाई करने वाला पहला विदेशी वंश माना जाता है। इस वंश के संस्थापक साइरस ने 551-530 के बीच अपना साम्राज्य पेशावर (अब पाकिस्तान में) से लेकर ग्रीस तक फैला लिया था। डेरियस का पिता 'विष्तास्पह्य' भी 'अख़ामनी राजवंश' का क्षत्रप था। समझा जाता है कि उसने साइरस के अधीन भी काम किया था। डेरियस प्रथम ने साइरस महान् की आन, बान और शान को पूरी तरह से कायम रखा था, इसीलिए उसके जीवन काल में ही उसे भी "डेरियस महान" कहा जाने लगा था। 'अख़ामनी वंश' की राजधानी पर्सेपोलिस के शिलालेखों पर ऐसा ही दर्ज है। पुरातत्व पर्यटन के लिए मशहूर पर्सेपोलिस शहर डेरियस की राजधानी हुआ करता था। ऐसा माना जाता है कि यह शहर उसने ही बसाया था।

पतन

'अख़ामनी वंश' का पतन सिकन्दर के आक्रमण से सन 330 ई.पू. में हुआ, जिसके बाद इसके प्रदेशों पर 'यूनानी' (मेसीडोन) प्रभुत्व स्थापित हो गया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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