"लखनऊ घराना": अवतरणों में अंतर
(''''लखनऊ घराना''' शास्त्रीय नृत्य|भारतीय शास्त्रीय नृ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - " काफी " to " काफ़ी ") |
||
(एक दूसरे सदस्य द्वारा किए गए बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
'''लखनऊ घराना''' [[शास्त्रीय नृत्य|भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैली]] [[कत्थक]] के कलाकारों से जुड़ा प्रसिद्ध [[घराना]] है। [[अवध]] के नवाब [[वाजिद अली शाह]] के दरबार में इसका जन्म हुआ। लखनऊ शैली के कत्थक नृत्य में सुंदरता और प्राकृतिक संतुलन होता है। कलात्मक रचनाएं, [[ठुमरी]] आदि अभिनय के साथ-साथ होरिस, शाब्दिक अभिनयुद्ध और आशु रचनाएं जैसे भावपूर्ण शैली भी होती हैं। वर्तमान में [[बिरजू महाराज|पंडित बिरजू महाराज]], [[अच्छन महाराज|अच्छन महाराज जी]] के बेटे, इस घराने के मुख्य प्रतिनिधि माने जाते हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.patrika.com/news/khajuraho/indian-kathak-dance-schools-create-world-stage-dancer-33644/|title= देश के कत्थक घराने, दुनिया में है नाम|accessmonthday=22 अक्टूबर |accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=पत्रिका.कॉम |language=हिंदी }}</ref> | {{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय | ||
|चित्र=Kathak-Dance-1.jpg | |||
|चित्र का नाम=कत्थक नृत्य करते कलाकार | |||
|विवरण='लखनऊ घराना' [[भारत]] के प्रसिद्ध [[शास्त्रीय नृत्य|शास्त्रीय नृत्य शैली]] के नृत्य [[कत्थक]] तथा गायकी से सम्बंधित घरानों में से एक है। [[वाजिद अली शाह|नवाब वाजिद अली शाह]] के दरबार से इसका उदय हुआ था। | |||
|शीर्षक 1=देश | |||
|पाठ 1=[[भारत]] | |||
|शीर्षक 2=नृत्य शैली | |||
|पाठ 2=[[कत्थक]] | |||
|शीर्षक 3= | |||
|पाठ 3= | |||
|शीर्षक 4= | |||
|पाठ 4= | |||
|शीर्षक 5= | |||
|पाठ 5= | |||
|शीर्षक 6= | |||
|पाठ 6= | |||
|शीर्षक 7= | |||
|पाठ 7= | |||
|शीर्षक 8= | |||
|पाठ 8= | |||
|शीर्षक 9= | |||
|पाठ 9= | |||
|शीर्षक 10=विशेष | |||
|पाठ 10=लखनऊ घराने के नृत्य पर [[मुग़ल]] व ईरानी सभ्यता के प्रभाव के कारण यहाँ नृत्य में श्रंगारिकता के साथ-साथ अभिनय पक्ष पर भी विशेष ध्यान दिया गया। | |||
|संबंधित लेख=[[अच्छन महाराज]], [[शंभू महाराज]], [[बिंदादीन महाराज]], [[बिरजू महाराज]], [[जयकिशन महाराज]] | |||
|अन्य जानकारी=लखनऊ घराना [[कत्थक|कत्थक नृत्य शैली]] का प्रमुख घराना है। इसने प्रायः छोटे-छोटे तोड़े टुकड़े नाचने का चलन है। टुकड़ों में अंगों की ख़ूबसूरत बनावट पर विशेष ध्यान दिया जाता है | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन= | |||
}} | |||
'''लखनऊ घराना''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Lucknow gharana'') [[शास्त्रीय नृत्य|भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैली]] [[कत्थक]] के कलाकारों से जुड़ा प्रसिद्ध [[घराना]] है। [[अवध]] के नवाब [[वाजिद अली शाह]] के दरबार में इसका जन्म हुआ। लखनऊ शैली के कत्थक नृत्य में सुंदरता और प्राकृतिक संतुलन होता है। कलात्मक रचनाएं, [[ठुमरी]] आदि अभिनय के साथ-साथ होरिस, शाब्दिक अभिनयुद्ध और आशु रचनाएं जैसे भावपूर्ण शैली भी होती हैं। वर्तमान में [[बिरजू महाराज|पंडित बिरजू महाराज]], [[अच्छन महाराज|अच्छन महाराज जी]] के बेटे, इस घराने के मुख्य प्रतिनिधि माने जाते हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.patrika.com/news/khajuraho/indian-kathak-dance-schools-create-world-stage-dancer-33644/|title= देश के कत्थक घराने, दुनिया में है नाम|accessmonthday=22 अक्टूबर |accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=पत्रिका.कॉम |language=हिंदी }}</ref> | |||
==मुग़ल व ईरानी सभ्यता का प्रभाव== | ==मुग़ल व ईरानी सभ्यता का प्रभाव== | ||
लखनऊ घराने के नृत्य पर [[मुग़ल]] व ईरानी सभ्यता के प्रभाव के कारण यहाँ नृत्य में श्रंगारिकता के साथ-साथ अभिनय पक्ष पर भी विशेष ध्यान दिया गया। श्रंगारिकता और सबल अभिनय की दृष्टि से लखनऊ घराना अन्य घरानों से | लखनऊ घराने के नृत्य पर [[मुग़ल]] व ईरानी सभ्यता के प्रभाव के कारण यहाँ नृत्य में श्रंगारिकता के साथ-साथ अभिनय पक्ष पर भी विशेष ध्यान दिया गया। श्रंगारिकता और सबल अभिनय की दृष्टि से लखनऊ घराना अन्य घरानों से काफ़ी आगे है। इस घराने की वास्तविक पहचान बनाने का श्रेय '[[पद्मविभूषण]]' पंडित बिरजू महाराज को दिया जाता है। उनकी शिष्याओं मधुरिता सारंग और शाश्वती सेन व [[लच्छू महाराज|पंडित लच्छू महाराज]] की शिष्या कुमकुम धर ने देश की शीर्ष नृत्यांगनाओं में स्वयं को स्थापित किया हुआ है। इन्होंने अनेकों बार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर कत्थक के पारंपरिक स्वरूप को सार्थक किया है। कुमकुम धर के साथ-साथ अन्य नृत्यांगनाएं भी अब कत्थक की नई पीढ़ी को तैयार करने में जुटी हुई हैं।<ref>{{cite web |url=http://journalistnishant.blogspot.in/2010/11/blog-post_27.html |title=कत्थक के मूल स्वरूप में परिवर्तन और घरानों की देन|accessmonthday=22 अक्टूबर |accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=journalistnishant.blogspot.in |language=हिंदी }}</ref> | ||
==प्रमुख नर्तक== | ==प्रमुख नर्तक== | ||
इस घराने की शुरुआत इश्वरी प्रसाद जी से मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है की प्रसाद जी को सपने में [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] ने दर्शन देकर इस नृत्य की भागवत बनाने की प्रेरणा दी। उन्होंने | इस घराने की शुरुआत इश्वरी प्रसाद जी से मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है की प्रसाद जी को सपने में [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] ने दर्शन देकर इस नृत्य की भागवत बनाने की प्रेरणा दी। उन्होंने ये ग्रंथ रचकर उसकी शिक्षा अपने तीनों बेटों श्री अड़गू जी, खड़गू जी और तुलाराम जी को दी। 105 वर्ष की आयु में प्रसाद जी का निधन हो गया और उनकी पत्नी उनके ही साथ सती हो गई। इस घटना से प्रभावित हो कर तुलाराम जी ने सन्यास ले लिया और खड़गू जी ने नृत्य करना छोड़ दिया। अड़गू जी ने ये शिक्षा अपने तीनों बेटों श्री प्रकाश जी, दयाल जी तथा हरियाली जी को प्रदान की। प्रकाश जी अपने भाइयों सहित [[लखनऊ]] गए और [[आसफ़ुद्दौला|नवाब आसफ़ुद्दौला]] के दरबारी नर्तक नियुक्त हुए। प्रकाश जी के तीन बेटे हुए- दुर्गा प्रसाद जी, ठाकुर प्रसाद जी और मान जी। मान जी को नवाब द्वारा 'सिंह' की उपाधि दी गई, पर नर्तक के रूप में [[ठाकुर प्रसाद|ठाकुर प्रसाद जी]] प्रसिद्ध हुए। इन्हें [[वाजिद अली शाह|वाजिद अली शाह शाह]] का गुरु नियुक्त किया गया, जिन्होंने [[कत्थक|कत्थक नृत्य]] की वर्तमान स्वरूप रचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनकी गणेश परन बहुत विख्यात थी।<ref>{{cite web |url=https://kathakahekathak.wordpress.com/2016/08/ |title=कत्थक नृत्य के घराने |accessmonthday=22 अक्टूबर |accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=kathakahekathak.wordpress.com |language=हिंदी }}</ref> | ||
दुर्गा प्रसाद जी के भी तीन बेटे हुए- [[बिंदादीन महाराज|श्री बिंदादीन महाराज]], [[कालका प्रसाद|कालिका प्रसाद]] और भैरों प्रसाद। बिंदादीन महाराज अत्यंत प्रतिभाशाली कलाकार थे। उन्होंने 1500 ठुमरियों का निर्माण किया और उन पर अभिनय का प्रचार किया। कालका प्रसाद जी के भी तीन बेटे हुए- [[अच्छन महाराज]], [[लच्छू महाराज]] और [[शंभू महाराज]]। | दुर्गा प्रसाद जी के भी तीन बेटे हुए- [[बिंदादीन महाराज|श्री बिंदादीन महाराज]], [[कालका प्रसाद|कालिका प्रसाद]] और भैरों प्रसाद। बिंदादीन महाराज अत्यंत प्रतिभाशाली कलाकार थे। उन्होंने 1500 ठुमरियों का निर्माण किया और उन पर अभिनय का प्रचार किया। कालका प्रसाद जी के भी तीन बेटे हुए- [[अच्छन महाराज]], [[लच्छू महाराज]] और [[शंभू महाराज]]। |
11:01, 5 जुलाई 2017 के समय का अवतरण
लखनऊ घराना
| |
विवरण | 'लखनऊ घराना' भारत के प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य शैली के नृत्य कत्थक तथा गायकी से सम्बंधित घरानों में से एक है। नवाब वाजिद अली शाह के दरबार से इसका उदय हुआ था। |
देश | भारत |
नृत्य शैली | कत्थक |
विशेष | लखनऊ घराने के नृत्य पर मुग़ल व ईरानी सभ्यता के प्रभाव के कारण यहाँ नृत्य में श्रंगारिकता के साथ-साथ अभिनय पक्ष पर भी विशेष ध्यान दिया गया। |
संबंधित लेख | अच्छन महाराज, शंभू महाराज, बिंदादीन महाराज, बिरजू महाराज, जयकिशन महाराज |
अन्य जानकारी | लखनऊ घराना कत्थक नृत्य शैली का प्रमुख घराना है। इसने प्रायः छोटे-छोटे तोड़े टुकड़े नाचने का चलन है। टुकड़ों में अंगों की ख़ूबसूरत बनावट पर विशेष ध्यान दिया जाता है |
लखनऊ घराना (अंग्रेज़ी: Lucknow gharana) भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैली कत्थक के कलाकारों से जुड़ा प्रसिद्ध घराना है। अवध के नवाब वाजिद अली शाह के दरबार में इसका जन्म हुआ। लखनऊ शैली के कत्थक नृत्य में सुंदरता और प्राकृतिक संतुलन होता है। कलात्मक रचनाएं, ठुमरी आदि अभिनय के साथ-साथ होरिस, शाब्दिक अभिनयुद्ध और आशु रचनाएं जैसे भावपूर्ण शैली भी होती हैं। वर्तमान में पंडित बिरजू महाराज, अच्छन महाराज जी के बेटे, इस घराने के मुख्य प्रतिनिधि माने जाते हैं।[1]
मुग़ल व ईरानी सभ्यता का प्रभाव
लखनऊ घराने के नृत्य पर मुग़ल व ईरानी सभ्यता के प्रभाव के कारण यहाँ नृत्य में श्रंगारिकता के साथ-साथ अभिनय पक्ष पर भी विशेष ध्यान दिया गया। श्रंगारिकता और सबल अभिनय की दृष्टि से लखनऊ घराना अन्य घरानों से काफ़ी आगे है। इस घराने की वास्तविक पहचान बनाने का श्रेय 'पद्मविभूषण' पंडित बिरजू महाराज को दिया जाता है। उनकी शिष्याओं मधुरिता सारंग और शाश्वती सेन व पंडित लच्छू महाराज की शिष्या कुमकुम धर ने देश की शीर्ष नृत्यांगनाओं में स्वयं को स्थापित किया हुआ है। इन्होंने अनेकों बार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर कत्थक के पारंपरिक स्वरूप को सार्थक किया है। कुमकुम धर के साथ-साथ अन्य नृत्यांगनाएं भी अब कत्थक की नई पीढ़ी को तैयार करने में जुटी हुई हैं।[2]
प्रमुख नर्तक
इस घराने की शुरुआत इश्वरी प्रसाद जी से मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है की प्रसाद जी को सपने में श्रीकृष्ण ने दर्शन देकर इस नृत्य की भागवत बनाने की प्रेरणा दी। उन्होंने ये ग्रंथ रचकर उसकी शिक्षा अपने तीनों बेटों श्री अड़गू जी, खड़गू जी और तुलाराम जी को दी। 105 वर्ष की आयु में प्रसाद जी का निधन हो गया और उनकी पत्नी उनके ही साथ सती हो गई। इस घटना से प्रभावित हो कर तुलाराम जी ने सन्यास ले लिया और खड़गू जी ने नृत्य करना छोड़ दिया। अड़गू जी ने ये शिक्षा अपने तीनों बेटों श्री प्रकाश जी, दयाल जी तथा हरियाली जी को प्रदान की। प्रकाश जी अपने भाइयों सहित लखनऊ गए और नवाब आसफ़ुद्दौला के दरबारी नर्तक नियुक्त हुए। प्रकाश जी के तीन बेटे हुए- दुर्गा प्रसाद जी, ठाकुर प्रसाद जी और मान जी। मान जी को नवाब द्वारा 'सिंह' की उपाधि दी गई, पर नर्तक के रूप में ठाकुर प्रसाद जी प्रसिद्ध हुए। इन्हें वाजिद अली शाह शाह का गुरु नियुक्त किया गया, जिन्होंने कत्थक नृत्य की वर्तमान स्वरूप रचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनकी गणेश परन बहुत विख्यात थी।[3]
दुर्गा प्रसाद जी के भी तीन बेटे हुए- श्री बिंदादीन महाराज, कालिका प्रसाद और भैरों प्रसाद। बिंदादीन महाराज अत्यंत प्रतिभाशाली कलाकार थे। उन्होंने 1500 ठुमरियों का निर्माण किया और उन पर अभिनय का प्रचार किया। कालका प्रसाद जी के भी तीन बेटे हुए- अच्छन महाराज, लच्छू महाराज और शंभू महाराज।
कत्थक शैली का प्रमुख घराना
लखनऊ घराना कत्थक नृत्य शैली का प्रमुख घराना है। इसने प्रायः छोटे-छोटे तोड़े टुकड़े नाचने का चलन है। टुकड़ों में अंगों की ख़ूबसूरत बनावट पर विशेष ध्यान दिया जाता है, पैरों से बोलों की निकासी पर कम। इस घराने में नृत्य के बोलों के अतिरिक्त पखावज की परने और परिमलु के बोल भी नाचे जाते हैं, किंतु कवित नाचने का प्रचार कम है। 'धातक थूंगा' और 'किटतक थुं थुं नातिटेता' बोल इस घराने में विशेष प्रचलित है। तत्कार के टुकड़ों में 'ता थेई तत् थेई' के अनेक प्रकार नाचे जाते हैं। ठाट बनाने का भी इनका अपना विशेष ढंग है। इस घराने में गत निकास का प्रस्तुतीकरण अधिक होता है और गत भाव का कम। इनके यहाँ गत दोनों ओर से बनाने का रिवाज है। ठुमरी गाकर भाव बताना इस घराने की विशेषता है, जिसके प्रचार का प्रमुख श्रेय महाराज बिंदादीन को है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ देश के कत्थक घराने, दुनिया में है नाम (हिंदी) पत्रिका.कॉम। अभिगमन तिथि: 22 अक्टूबर, 2016।
- ↑ कत्थक के मूल स्वरूप में परिवर्तन और घरानों की देन (हिंदी) journalistnishant.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 22 अक्टूबर, 2016।
- ↑ कत्थक नृत्य के घराने (हिंदी) kathakahekathak.wordpress.com। अभिगमन तिथि: 22 अक्टूबर, 2016।