"पहेली 21 जुलाई 2016": अवतरणों में अंतर

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-[[पाण्डेय बेचन शर्मा 'उग्र'|पाण्डेय बेचन शर्मा]]
-[[पाण्डेय बेचन शर्मा 'उग्र'|पाण्डेय बेचन शर्मा]]
-[[सुधाकर पाण्डेय]]
-[[सुधाकर पाण्डेय]]
||[[चित्र:Pitamber-Dutt-Barthwal.jpg|right|100px|border|पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल]]'पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल' [[हिन्दी]] के ख्यातिप्राप्त साहित्यकार थे। वे विद्वान [[रामचन्द्र शुक्ल|आचार्य रामचन्द्र शुक्ल]] के सहयोगी रहे थे। उन्होंने 'गोरख बानी' और 'रामानन्द' की रचना की थी। [[पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल]] हिन्दी में 'डी.लिट.' की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले शोध विद्यार्थी थे। उन्होंने अनुसंधान और खोज परंपरा का प्रवर्तन किया तथा आचार्य रामचंद्र शुक्ल और [[श्यामसुंदर दास|बाबू श्यामसुंदर दास]] की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए हिन्दी आलोचना को मजबूती प्रदान की। उन्होंने भावों और विचारों की अभिव्यक्ति के लिये [[भाषा]] को अधिक सामर्थ्यवान बनाकर विकासोन्मुख शैली को सामने रखा। वे [[उत्तराखंड]] की ही नहीं अपितु [[भारत]] की भी शान हैं, जिन्हें देश-विदेशों में सम्मान मिला। उत्तराखंड के लोक-साहित्य के प्रति भी उनका लगाव था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल]]
||[[चित्र:Pitamber-Dutt-Barthwal.jpg|right|100px|border|पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल]]'पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल' [[हिन्दी]] के ख्याति प्राप्त साहित्यकार थे। वे विद्वान् [[रामचन्द्र शुक्ल|आचार्य रामचन्द्र शुक्ल]] के सहयोगी रहे थे। उन्होंने 'गोरख बानी' और 'रामानन्द' की रचना की थी। [[पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल]] हिन्दी में 'डी.लिट.' की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले शोध विद्यार्थी थे। उन्होंने अनुसंधान और खोज परंपरा का प्रवर्तन किया तथा आचार्य रामचंद्र शुक्ल और [[श्यामसुंदर दास|बाबू श्यामसुंदर दास]] की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए हिन्दी आलोचना को मजबूती प्रदान की। उन्होंने भावों और विचारों की अभिव्यक्ति के लिये [[भाषा]] को अधिक सामर्थ्यवान बनाकर विकासोन्मुख शैली को सामने रखा। वे [[उत्तराखंड]] की ही नहीं अपितु [[भारत]] की भी शान थे, जिन्हें देश-विदेशों में सम्मान मिला। उत्तराखंड के लोक-साहित्य के प्रति भी उनका लगाव था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल]]
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