"मज्जनु कीन्ह पंथ श्रम गयऊ": अवतरणों में अंतर

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इसके बाद सबने स्नान किया, जिससे मार्ग का सारा श्रम (थकावट) दूर हो गया और पवित्र जल पीते ही मन प्रसन्न हो गया। जिनके स्मरण मात्र से (बार-बार जन्म ने और मरने का) महान श्रम मिट जाता है, उनको 'श्रम' होना- यह केवल लौकिक व्यवहार (नरलीला) है॥4॥  
इसके बाद सबने स्नान किया, जिससे मार्ग का सारा श्रम (थकावट) दूर हो गया और पवित्र जल पीते ही मन प्रसन्न हो गया। जिनके स्मरण मात्र से (बार-बार जन्म ने और मरने का) महान् श्रम मिट जाता है, उनको 'श्रम' होना- यह केवल लौकिक व्यवहार (नरलीला) है॥4॥  


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11:06, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

मज्जनु कीन्ह पंथ श्रम गयऊ
रामचरितमानस
रामचरितमानस
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड अयोध्या काण्ड
चौपाई

मज्जनु कीन्ह पंथ श्रम गयऊ। सुचि जलु पिअत मुदित मन भयऊ॥
सुमिरत जाहि मिटइ श्रम भारू। तेहि श्रम यह लौकिक ब्यवहारू॥4॥

भावार्थ

इसके बाद सबने स्नान किया, जिससे मार्ग का सारा श्रम (थकावट) दूर हो गया और पवित्र जल पीते ही मन प्रसन्न हो गया। जिनके स्मरण मात्र से (बार-बार जन्म ने और मरने का) महान् श्रम मिट जाता है, उनको 'श्रम' होना- यह केवल लौकिक व्यवहार (नरलीला) है॥4॥


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मज्जनु कीन्ह पंथ श्रम गयऊ
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चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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