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'''संत बासवेश्वर''' या 'बसवन्ना' [[कर्नाटक]] के [[संत]] [[कवि]], धार्मिक नेता और | '''संत बासवेश्वर''' या 'बसवन्ना' [[कर्नाटक]] के [[संत]] [[कवि]], धार्मिक नेता और महान् समाज सुधारक थे। इन्होंने समाज मे प्रचलित कुरीतियों के विरुद्ध जोरदार आवाज़ उठाई और 'अनुभव मन्तप' नामक संस्था की स्थापना की। संत होने पर भी वह शारीरिक श्रम को आवश्यक मानते थे। उनकी वाणी को "वचन" कहा जाता है। | ||
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संत बासवेश्वर का जन्म सन 1131 में [[बीजापुर]] के निकट एक गाँव में उच्च [[ब्राह्मण]] कुल में हुआ था। उनके [[पिता]] ग्राम के प्रधान थे और उनकी "ग्रामती मणि" उपाधि थी। उनकी [[माता]] का नाम मदाम्बि था और उनके तीन बच्चे थे। बासवन्ना इनमें सबसे छोटे थे। इनकी गंगाम्बिके और नीलाम्बके नामक दो पत्नियाँ थीं। | संत बासवेश्वर का जन्म सन 1131 में [[बीजापुर]] के निकट एक गाँव में उच्च [[ब्राह्मण]] कुल में हुआ था। उनके [[पिता]] ग्राम के प्रधान थे और उनकी "ग्रामती मणि" उपाधि थी। उनकी [[माता]] का नाम मदाम्बि था और उनके तीन बच्चे थे। बासवन्ना इनमें सबसे छोटे थे। इनकी गंगाम्बिके और नीलाम्बके नामक दो पत्नियाँ थीं। | ||
====नये युग का सूत्रपात==== | ====नये युग का सूत्रपात==== | ||
कर्नाटक ही नहीं, उस समय सारा देश अंध विश्वासों और रूढ़ियों में जकड़ा हुआ था। | कर्नाटक ही नहीं, उस समय सारा देश अंध विश्वासों और रूढ़ियों में जकड़ा हुआ था। महान् समाज सुधारक [[शंकराचार्य]] ने अपना प्रथम मठ कर्नाटक में [[श्रृंगेरी]] नामक स्थान पर स्थापित किया था। माना जाता है कि बासवेश्वर द्वारा कर्नाटक में नये युग का सूत्रपात हुआ। बचपन से इन्हें अंध विश्वासों और समाज में फैली विषमताओं से घृणा थी, इसीलिए केवल आठ वर्ष की आयु में ही उन्होंने अपने [[यज्ञोपवीत संस्कार]] का विरोध किया और घर छोड़ दिया। उसके बाद [[कृष्णा नदी|कृष्णा]] और उसकी सहायक नदियाँ जहाँ मिलती हैं, वहाँ रहकर इन्होंने [[वेद]], [[उपनिषद]] और प्राचीन शास्त्रों का अध्ययन किया। | ||
==समाज सुधार== | ==समाज सुधार== | ||
कालचूर्य राजा के दरबार में इनका बड़ा सम्मान था। बाद में अपनी विद्वत्ता के कारण यह उसके ख़ज़ाना मंत्री बने। इस समय इन्होंने समाज मे प्रचलित कुरीतियों के विरुद्ध जोरदार आवाज़ उठाई और 'अनुभव मन्तप' नामक संस्था की स्थापना की। इन्होंने मंदिरों के द्वारा निम्न वर्ग के लिए खोलने और पुरानी रूढ़ियों को तोड़ने की आवाज़ भी उठाई। इससे कट्टपंथी इनके विरोधी हो गये। वह सब कुछ त्याग देने वाले संत कवि नहीं थे। | कालचूर्य राजा के दरबार में इनका बड़ा सम्मान था। बाद में अपनी विद्वत्ता के कारण यह उसके ख़ज़ाना मंत्री बने। इस समय इन्होंने समाज मे प्रचलित कुरीतियों के विरुद्ध जोरदार आवाज़ उठाई और 'अनुभव मन्तप' नामक संस्था की स्थापना की। इन्होंने मंदिरों के द्वारा निम्न वर्ग के लिए खोलने और पुरानी रूढ़ियों को तोड़ने की आवाज़ भी उठाई। इससे कट्टपंथी इनके विरोधी हो गये। वह सब कुछ त्याग देने वाले संत कवि नहीं थे। |
11:28, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
संत बासवेश्वर या 'बसवन्ना' कर्नाटक के संत कवि, धार्मिक नेता और महान् समाज सुधारक थे। इन्होंने समाज मे प्रचलित कुरीतियों के विरुद्ध जोरदार आवाज़ उठाई और 'अनुभव मन्तप' नामक संस्था की स्थापना की। संत होने पर भी वह शारीरिक श्रम को आवश्यक मानते थे। उनकी वाणी को "वचन" कहा जाता है।
परिचय
संत बासवेश्वर का जन्म सन 1131 में बीजापुर के निकट एक गाँव में उच्च ब्राह्मण कुल में हुआ था। उनके पिता ग्राम के प्रधान थे और उनकी "ग्रामती मणि" उपाधि थी। उनकी माता का नाम मदाम्बि था और उनके तीन बच्चे थे। बासवन्ना इनमें सबसे छोटे थे। इनकी गंगाम्बिके और नीलाम्बके नामक दो पत्नियाँ थीं।
नये युग का सूत्रपात
कर्नाटक ही नहीं, उस समय सारा देश अंध विश्वासों और रूढ़ियों में जकड़ा हुआ था। महान् समाज सुधारक शंकराचार्य ने अपना प्रथम मठ कर्नाटक में श्रृंगेरी नामक स्थान पर स्थापित किया था। माना जाता है कि बासवेश्वर द्वारा कर्नाटक में नये युग का सूत्रपात हुआ। बचपन से इन्हें अंध विश्वासों और समाज में फैली विषमताओं से घृणा थी, इसीलिए केवल आठ वर्ष की आयु में ही उन्होंने अपने यज्ञोपवीत संस्कार का विरोध किया और घर छोड़ दिया। उसके बाद कृष्णा और उसकी सहायक नदियाँ जहाँ मिलती हैं, वहाँ रहकर इन्होंने वेद, उपनिषद और प्राचीन शास्त्रों का अध्ययन किया।
समाज सुधार
कालचूर्य राजा के दरबार में इनका बड़ा सम्मान था। बाद में अपनी विद्वत्ता के कारण यह उसके ख़ज़ाना मंत्री बने। इस समय इन्होंने समाज मे प्रचलित कुरीतियों के विरुद्ध जोरदार आवाज़ उठाई और 'अनुभव मन्तप' नामक संस्था की स्थापना की। इन्होंने मंदिरों के द्वारा निम्न वर्ग के लिए खोलने और पुरानी रूढ़ियों को तोड़ने की आवाज़ भी उठाई। इससे कट्टपंथी इनके विरोधी हो गये। वह सब कुछ त्याग देने वाले संत कवि नहीं थे।
संत बासवेश्वर की भक्ति का आधार प्रवृत्ति और निवृत्ति का संतुलन है। उनकी भक्ति संसार के त्याग में नहीं, सांसारिक वृत्तियों के नियंत्रण में है। संत होने पर भी वह शारीरिक श्रम को आवश्यक मानते थे। उनकी वाणी को "वचन" कहा जाता है, जो निम्न ग्रंथों में संकलित हैं-
- 'वचन धर्मसार'
- 'भक्ति भंडारी'
- 'धर्म भंडारी'
- 'शिवदास गीतांजलि'
- 'बसव पुराण'
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