"प्रियप्रवास अष्टम सर्ग": अवतरणों में अंतर
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मैंने हो हो सुखित जिनको सज्जिता था बिलोका। | मैंने हो हो सुखित जिनको सज्जिता था बिलोका। | ||
क्यों वे गायें अहह! | क्यों वे गायें अहह! दु:ख के सिंधु में मज्जिता हैं। | ||
जो ग्वाले थे मुदित अति ही मग्न आमोद में हो। | जो ग्वाले थे मुदित अति ही मग्न आमोद में हो। | ||
हा! आहों से मथित अब मैं क्यों उन्हें देखता हूँ॥20॥ | हा! आहों से मथित अब मैं क्यों उन्हें देखता हूँ॥20॥ | ||
पंक्ति 387: | पंक्ति 387: | ||
आवेगों से व्यथित बन के दु:ख से दग्ध हो के। | आवेगों से व्यथित बन के दु:ख से दग्ध हो के। | ||
सारे प्राणी ब्रज-अवनि के दर्शनाशा सहारे। | सारे प्राणी ब्रज-अवनि के दर्शनाशा सहारे। | ||
प्यारे से हो | प्यारे से हो पृथक् अपने वार को थे बिताते॥70॥ | ||
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13:28, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
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यात्रा पूरी स-दुख करके गोप जो गेह आये। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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