"जयद्रथ वध (खण्डकाव्य)": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
छो (Text replacement - " करूणा " to " करुणा ")
 
पंक्ति 30: पंक्ति 30:
कथा का आधार [[महाभारत]] है। एका दिन युद्ध निरत [[अर्जुन]] के दूर निकल जाने पर [[द्रोणाचार्य]] कृत चक्रव्यूह भेदन के निमित्त शस्त्रास्त्र सज्जित [[अभिमन्यु]] उसमें प्रविष्ट होता हुआ। अप्रतिम वीर अभिमन्यु के समक्ष एकाकी ठहरने सकने में असमर्थ योद्धाओं में से सात रथियों ने षड्यंत्र द्वारा उसकी हत्या की। इसमें [[जयद्रथ]] का विशेष हाथ था, अत: अर्जुन ने अगले दिन सूर्यास्त से पूर्व जयद्रथ का वध ना करा सकने पर स्वयं जल मरने की प्रतिज्ञा की। आचार्यविरचित चक्र व्यूह में रक्षित जयद्रथ का वध कौंतेय उक्त समय तक ना कर सके। फलत: अर्जुन स्वयं जलने के लिए तैयार हुए। अपने शत्रु को जलता हुआ देखने के लिए जयद्रथ सामने आ गया। तब [[श्रीकृष्ण]] ने "अस्ताचल के निकट घन- मुक्त मार्तण्ड" के दर्शन करा अर्जुन को शर संधान का आदेश दिया। जयद्रथ का सिर आकाश में उड़ता हुआ उसके पिता की गोद में जा गिरा, जिससे पुत्र के साथ पिता की भी मृत्यु हुई (जयद्रथ के पिता वृध्दक्षत्र को ऐसा ही श्राप मिला था) प्राचीन कथा को ज्यों का त्यों लेकर भी कवि ने अपनी सरस प्रवाहपूर्ण शैली द्वारा नवजीवन प्रदान किया है। अपनी लेखनी के स्पर्श से उसे रुचिकर एवं सप्रभाव बना दिया है।
कथा का आधार [[महाभारत]] है। एका दिन युद्ध निरत [[अर्जुन]] के दूर निकल जाने पर [[द्रोणाचार्य]] कृत चक्रव्यूह भेदन के निमित्त शस्त्रास्त्र सज्जित [[अभिमन्यु]] उसमें प्रविष्ट होता हुआ। अप्रतिम वीर अभिमन्यु के समक्ष एकाकी ठहरने सकने में असमर्थ योद्धाओं में से सात रथियों ने षड्यंत्र द्वारा उसकी हत्या की। इसमें [[जयद्रथ]] का विशेष हाथ था, अत: अर्जुन ने अगले दिन सूर्यास्त से पूर्व जयद्रथ का वध ना करा सकने पर स्वयं जल मरने की प्रतिज्ञा की। आचार्यविरचित चक्र व्यूह में रक्षित जयद्रथ का वध कौंतेय उक्त समय तक ना कर सके। फलत: अर्जुन स्वयं जलने के लिए तैयार हुए। अपने शत्रु को जलता हुआ देखने के लिए जयद्रथ सामने आ गया। तब [[श्रीकृष्ण]] ने "अस्ताचल के निकट घन- मुक्त मार्तण्ड" के दर्शन करा अर्जुन को शर संधान का आदेश दिया। जयद्रथ का सिर आकाश में उड़ता हुआ उसके पिता की गोद में जा गिरा, जिससे पुत्र के साथ पिता की भी मृत्यु हुई (जयद्रथ के पिता वृध्दक्षत्र को ऐसा ही श्राप मिला था) प्राचीन कथा को ज्यों का त्यों लेकर भी कवि ने अपनी सरस प्रवाहपूर्ण शैली द्वारा नवजीवन प्रदान किया है। अपनी लेखनी के स्पर्श से उसे रुचिकर एवं सप्रभाव बना दिया है।
;काव्यशैली  
;काव्यशैली  
काव्य की द्रष्टि से 'जयद्रथ वध' मैथिलीशरण गुप्त के कृतित्व के आरम्भिक काल की रचनाओं में सर्वश्रेष्ठ है। [[सुभद्रा]] और [[उत्तरा]] के विलाप में करूणा की अप्रतिबद्ध धारा प्रावाहित हुई है। चित्रणकला और अप्रस्तुत विधान बहुत अच्छा है। [[भाषा]] में प्रवाह और ओज है। यद्यपि [[संस्कृत]] के बोझिल और पण्डिताऊ शब्द भी प्रयुक्त हैं, किंतु खड़ी बोली की यह पहली सरस रचना है। [[ब्रजभाषा]] के 'चढ़े हुए नशे' को उतारने वाला प्रथम काव्य यही है।                                                                                     
काव्य की द्रष्टि से 'जयद्रथ वध' मैथिलीशरण गुप्त के कृतित्व के आरम्भिक काल की रचनाओं में सर्वश्रेष्ठ है। [[सुभद्रा]] और [[उत्तरा]] के विलाप में करुणा की अप्रतिबद्ध धारा प्रावाहित हुई है। चित्रणकला और अप्रस्तुत विधान बहुत अच्छा है। [[भाषा]] में प्रवाह और ओज है। यद्यपि [[संस्कृत]] के बोझिल और पण्डिताऊ शब्द भी प्रयुक्त हैं, किंतु खड़ी बोली की यह पहली सरस रचना है। [[ब्रजभाषा]] के 'चढ़े हुए नशे' को उतारने वाला प्रथम काव्य यही है।                                                                                     


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}

13:38, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

जयद्रथ वध एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- जयद्रथ वध (बहुविकल्पी)
जयद्रथ वध (खण्डकाव्य)
'जयद्रथ वध' का आवरण पृष्ठ
'जयद्रथ वध' का आवरण पृष्ठ
कवि मैथिलीशरण गुप्त
मूल शीर्षक 'जयद्रथ वध'
प्रकाशन तिथि 1910
देश भारत
भाषा खड़ी बोली
विधा कविता संग्रह
प्रकार खण्ड काव्य

जयद्रथ वध का प्रकाशन 1910 में हुआ था। मैथिलीशरण गुप्त की प्रारम्भिक रचनाओं में 'भारत भारती' को छोड़कर 'जयद्रथ वध' की प्रसिद्धि सर्वाधिक रही। हरिगीतिका छंद में रचित यह एक खण्ड काव्य है।

कथा

कथा का आधार महाभारत है। एका दिन युद्ध निरत अर्जुन के दूर निकल जाने पर द्रोणाचार्य कृत चक्रव्यूह भेदन के निमित्त शस्त्रास्त्र सज्जित अभिमन्यु उसमें प्रविष्ट होता हुआ। अप्रतिम वीर अभिमन्यु के समक्ष एकाकी ठहरने सकने में असमर्थ योद्धाओं में से सात रथियों ने षड्यंत्र द्वारा उसकी हत्या की। इसमें जयद्रथ का विशेष हाथ था, अत: अर्जुन ने अगले दिन सूर्यास्त से पूर्व जयद्रथ का वध ना करा सकने पर स्वयं जल मरने की प्रतिज्ञा की। आचार्यविरचित चक्र व्यूह में रक्षित जयद्रथ का वध कौंतेय उक्त समय तक ना कर सके। फलत: अर्जुन स्वयं जलने के लिए तैयार हुए। अपने शत्रु को जलता हुआ देखने के लिए जयद्रथ सामने आ गया। तब श्रीकृष्ण ने "अस्ताचल के निकट घन- मुक्त मार्तण्ड" के दर्शन करा अर्जुन को शर संधान का आदेश दिया। जयद्रथ का सिर आकाश में उड़ता हुआ उसके पिता की गोद में जा गिरा, जिससे पुत्र के साथ पिता की भी मृत्यु हुई (जयद्रथ के पिता वृध्दक्षत्र को ऐसा ही श्राप मिला था) प्राचीन कथा को ज्यों का त्यों लेकर भी कवि ने अपनी सरस प्रवाहपूर्ण शैली द्वारा नवजीवन प्रदान किया है। अपनी लेखनी के स्पर्श से उसे रुचिकर एवं सप्रभाव बना दिया है।

काव्यशैली

काव्य की द्रष्टि से 'जयद्रथ वध' मैथिलीशरण गुप्त के कृतित्व के आरम्भिक काल की रचनाओं में सर्वश्रेष्ठ है। सुभद्रा और उत्तरा के विलाप में करुणा की अप्रतिबद्ध धारा प्रावाहित हुई है। चित्रणकला और अप्रस्तुत विधान बहुत अच्छा है। भाषा में प्रवाह और ओज है। यद्यपि संस्कृत के बोझिल और पण्डिताऊ शब्द भी प्रयुक्त हैं, किंतु खड़ी बोली की यह पहली सरस रचना है। ब्रजभाषा के 'चढ़े हुए नशे' को उतारने वाला प्रथम काव्य यही है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 2 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 207-208।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख