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{शिकागो के प्रसिद्ध विश्व धर्म सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किसने किया था? (पुस्तक ल्युसेंट वस्तुनिष्ठ सा.ज्ञा.,पृ.सं.-371;प्रश्न-46
{शिकागो के प्रसिद्ध विश्व धर्म सम्मेलन में [[भारत]] का प्रतिनिधित्व किसने किया था?
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-[[स्वामी श्रद्धानंद]]
-[[स्वामी श्रद्धानंद]]
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-[[गोपाल कृष्ण गोखले]]
-[[गोपाल कृष्ण गोखले]]
-[[बाल गंगाधर तिलक]]
-[[बाल गंगाधर तिलक]]
||[[चित्र:Swami Vivekanand.jpg|right|100px|border|स्वामी विवेकानन्द]]'स्वामी विवेकानन्द' एक युवा सन्न्यासी के रूप में [[भारतीय संस्कृति]] की सुगन्ध विदेशों में बिखरने वाले [[साहित्य]], [[दर्शन]] और [[इतिहास]] के प्रकाण्ड विद्वान थे। उनका मूल नाम 'नरेंद्रनाथ दत्त' था, जो कि आगे चलकर [[स्वामी विवेकानन्द]] के नाम से विख्यात हुए। [[भारत]] के पुनर्निर्माण के प्रति उनके लगाव ने ही उन्हें [[1893]] में शिकागो धर्म संसद में जाने के लिए प्रेरित किया था, जहाँ वह बिना आमंत्रण के गए थे। परिषद में उनको समय न मिले, इसका भरपूर प्रयत्न किया गया। योरोपीय वर्ग को तो [[भारत]] के नाम से ही घृणा थी। एक अमेरिकन प्रोफेसर के उद्योग से किसी प्रकार समय मिला और [[11 सितंबर]] सन 1893 के उस दिन उनके अलौकिक तत्वज्ञान ने पाश्चात्य जगत को चौंका दिया। [[अमेरिका]] ने स्वीकार कर लिया कि वस्तुत: भारत ही जगद्गुरु था और रहेगा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[स्वामी विवेकानन्द]]
||[[चित्र:Swami Vivekanand.jpg|right|100px|border|स्वामी विवेकानन्द]]'स्वामी विवेकानन्द' एक युवा संन्यासी के रूप में [[भारतीय संस्कृति]] की सुगन्ध विदेशों में बिखरने वाले [[साहित्य]], [[दर्शन]] और [[इतिहास]] के प्रकाण्ड विद्वान् थे। उनका मूल नाम 'नरेंद्रनाथ दत्त' था, जो कि आगे चलकर [[स्वामी विवेकानन्द]] के नाम से विख्यात हुए। [[भारत]] के पुनर्निर्माण के प्रति उनके लगाव ने ही उन्हें [[1893]] में शिकागो धर्म संसद में जाने के लिए प्रेरित किया था, जहाँ वह बिना आमंत्रण के गए थे। परिषद में उनको समय न मिले, इसका भरपूर प्रयत्न किया गया। योरोपीय वर्ग को तो [[भारत]] के नाम से ही घृणा थी। एक अमेरिकन प्रोफेसर के उद्योग से किसी प्रकार समय मिला और [[11 सितंबर]] सन 1893 के उस दिन उनके अलौकिक तत्वज्ञान ने पाश्चात्य जगत् को चौंका दिया। [[अमेरिका]] ने स्वीकार कर लिया कि वस्तुत: भारत ही जगद्गुरु था और रहेगा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[स्वामी विवेकानन्द]]
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