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|चित्र=Swastika-6.jpg
|चित्र का नाम=स्वस्तिक
|विवरण=पुरातन [[वैदिक]] सनातन [[संस्कृति]] का परम मंगलकारी प्रतीक चिह्न 'स्वस्तिक' अपने आप में विलक्षण है। यह [[देवता|देवताओं]] की शक्ति और मनुष्य की मंगलमय कामनाएँ इन दोनों के संयुक्त सामर्थ्य का प्रतीक है।
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|पाठ 1=सामान्यतय: स्वस्तिक शब्द को "सु" एवं "अस्ति" का मिश्रण योग माना जाता है। यहाँ "सु" का अर्थ है- 'शुभ' और "अस्ति" का 'होना'। [[संस्कृत]] व्याकरण के अनुसार "सु" एवं "अस्ति" को जब संयुक्त किया जाता है तो जो नया शब्द बनता है- वो है "स्वस्ति" अर्थात "शुभ हो", "कल्याण हो"।
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[[स्वस्तिक ]] [[हिन्दू धर्म]] का प्रतिक चिन्ह हैं और कई पीढ़ियों से इस्तेमाल में हैं। स्वस्तिक मंत्र या स्वस्ति मन्त्र शुभ और शांति के लिए प्रयुक्त होता है। स्वस्ति = सु + अस्ति = कल्याण हो। ऐसा माना जाता है कि इससे [[हृदय]] और मन मिल जाते हैं। मंत्रोच्चार करते हुए दर्भ से [[जल]] के छींटे डाले जाते थे तथा यह माना जाता था कि यह जल पारस्परिक क्रोध और वैमनस्य को शांत कर रहा है। स्वस्ति मन्त्र का पाठ करने की क्रिया 'स्वस्तिवाचन' कहलाती है।
[[स्वस्तिक ]] [[हिन्दू धर्म]] का प्रतिक चिन्ह हैं और कई पीढ़ियों से इस्तेमाल में हैं। स्वस्तिक मंत्र या स्वस्ति मन्त्र शुभ और शांति के लिए प्रयुक्त होता है। स्वस्ति = सु + अस्ति = कल्याण हो। ऐसा माना जाता है कि इससे [[हृदय]] और मन मिल जाते हैं। मंत्रोच्चार करते हुए दर्भ से [[जल]] के छींटे डाले जाते थे तथा यह माना जाता था कि यह जल पारस्परिक क्रोध और वैमनस्य को शांत कर रहा है। स्वस्ति मन्त्र का पाठ करने की क्रिया 'स्वस्तिवाचन' कहलाती है।


<poem>ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
<blockquote><poem>ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
     स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
     स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
     स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
     स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
     स्वस्ति नो ब्रिहस्पतिर्दधातु ॥
     स्वस्ति नो ब्रिहस्पतिर्दधातु ॥
     ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥</poem>
     ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥</poem></blockquote>


"महान कीर्ति वाले [[इन्द्र]] हमारा कल्याण करो, विश्व के ज्ञानस्वरूप पूषादेव हमारा कल्याण करो। जिसका हथियार अटूट है ऐसे [[गरुड़]] भगवान हमारा मंगल करो। [[बृहस्पति ऋषि|बृहस्पति]] हमारा मंगल करो।"
"महान कीर्ति वाले [[इन्द्र]] हमारा कल्याण करो, विश्व के ज्ञानस्वरूप पूषादेव हमारा कल्याण करो। जिसका हथियार अटूट है ऐसे [[गरुड़]] भगवान हमारा मंगल करो। [[बृहस्पति ऋषि|बृहस्पति]] हमारा मंगल करो।"
==मंत्र का महत्त्व==
==मंत्र का महत्त्व==
*गृहनिर्माण के समय स्वस्तिक मंत्र बोला जाता है। मकान की नींव में [[घी]] और [[दुध|दुग्ध]] छिड़का जाता था। ऐसा विश्वास है कि इससे गृहस्वामी को दुधारु [[गाय|गायें]] प्राप्त हेती हैं एवं गृहपत्नी वीर पुत्र उत्पन्न करती है। खेत में बीज डालते समय मंत्र बोला जाता था कि विद्युत इस अन्न को क्षति न पहुँचाए, अन्न की विपुल उन्नति हो और फसल को कोई कीड़ा न लगे। पशुओं की समृद्धि के लिए भी स्वस्तिक मंत्र का प्रयोग होता था, जिससे उनमें कोई रोग नहीं फैलता था। गायों को खूब संतानें होती थीं।
*गृहनिर्माण के समय स्वस्तिक मंत्र बोला जाता है। मकान की नींव में [[घी]] और [[दूध|दुग्ध]] छिड़का जाता था। ऐसा विश्वास है कि इससे गृहस्वामी को दुधारु [[गाय|गायें]] प्राप्त हेती हैं एवं गृहपत्नी वीर पुत्र उत्पन्न करती है। खेत में बीज डालते समय मंत्र बोला जाता था कि विद्युत इस अन्न को क्षति न पहुँचाए, अन्न की विपुल उन्नति हो और फसल को कोई कीड़ा न लगे। पशुओं की समृद्धि के लिए भी स्वस्तिक मंत्र का प्रयोग होता था, जिससे उनमें कोई रोग नहीं फैलता था। गायों को खूब संतानें होती थीं।
*यात्रा के आरंभ में स्वस्तिक मंत्र बोला जाता था। इससे यात्रा सफल और सुरक्षित होती थी। मार्ग में हिंसक पशु या चोर और डाकू नहीं मिलते थे। व्यापार में लाभ होता था, अच्छे मौसम के लिए भी यह मंत्र जपा जाता था, जिससे दिन और रात्रि सुखद हों, स्वास्थ्य लाभ हो तथा खेती को कोई हानि न हो।
*यात्रा के आरंभ में स्वस्तिक मंत्र बोला जाता था। इससे यात्रा सफल और सुरक्षित होती थी। मार्ग में हिंसक पशु या चोर और डाकू नहीं मिलते थे। व्यापार में लाभ होता था, अच्छे मौसम के लिए भी यह मंत्र जपा जाता था, जिससे दिन और रात्रि सुखद हों, स्वास्थ्य लाभ हो तथा खेती को कोई हानि न हो।
*पुत्रजन्म पर स्वस्तिक मंत्र बहुत आवश्यक माने जाते थे। इससे बच्चा स्वस्थ रहता था, उसकी आयु बढ़ती थी और उसमें शुभ गुणों का समावेश होता था। इसके अलावा भूत, पिशाच तथा रोग उसके पास नहीं आ सकते थे। [[षोडशोपचार|षोडश संस्कारों]] में भी [[मंत्र]] का अंश कम नहीं है और यह सब स्वस्तिक मंत्र हैं जो शरीर रक्षा के लिए तथा सुख प्राप्ति एवं आयु वृद्धि के लिए प्रयुक्त होते हैं।
*पुत्रजन्म पर स्वस्तिक मंत्र बहुत आवश्यक माने जाते थे। इससे बच्चा स्वस्थ रहता था, उसकी आयु बढ़ती थी और उसमें शुभ गुणों का समावेश होता था। इसके अलावा भूत, पिशाच तथा रोग उसके पास नहीं आ सकते थे। [[षोडशोपचार|षोडश संस्कारों]] में भी [[मंत्र]] का अंश कम नहीं है और यह सब स्वस्तिक मंत्र हैं जो शरीर रक्षा के लिए तथा सुख प्राप्ति एवं आयु वृद्धि के लिए प्रयुक्त होते हैं।
==मंगल-शुभ की कामना==
==मंगल-शुभ की कामना==
स्वस्तिक मंत्र में चार बार स्वस्ति शब्द आता है, जिसका मतलब होता है कि इसमें भी चार बार मंगल और शुभ की कामना से [[गणेश|श्री गणेश]] का [[ध्यान]] और आवाहन किया गया है। इसमें व्यावहारिक जीवन का पक्ष खोजें तो पाते हैं कि जहां शुभ, मंगल और कल्याण का भाव होता है, वहीं स्वस्तिक का वास होता है सरल शब्दों में जहां परिवार, समाज या रिश्तों में प्यार, सुख, श्री, उमंग, उल्लास, सद्भाव, सुंदरता और विश्वास का भाव हो। वहीं सुख और सौभाग्य होता है। इसे ही जीवन पर श्री गणेश की कृपा माना जाता है यानि श्री गणेश वहीं बसते हैं। इसलिए श्रीगणेश को मंगलकारी देवता माना गया है। स्वस्तिक में भगवान गणेश का रुप होने का प्रमाण दुनिया के सबसे पुराने ग्रंथ माने जाने वाले वेदों में आए शांति पाठ से भी होती है, जो हर हिन्दू धार्मिक रीति-रिवाजों में बोला जाता है। स्वस्ति वाचन के प्रथम मन्त्र में लगता है स्वस्तिक का ही निरूपण हुआ है। उसकी चार भुजाओं को ईश्वर की चार दिव्य सत्ताओं का प्रतीक माना गया है। किसी भी मंगल कार्य के प्रारम्भ में स्वस्ति मंत्र बोलकर कार्य की शुभ शुरुआत की जाती है।
स्वस्तिक मंत्र में चार बार स्वस्ति शब्द आता है, जिसका मतलब होता है कि इसमें भी चार बार मंगल और शुभ की कामना से [[गणेश|श्री गणेश]] का [[ध्यान]] और आवाहन किया गया है। इसमें व्यावहारिक जीवन का पक्ष खोजें तो पाते हैं कि जहां शुभ, मंगल और कल्याण का भाव होता है, वहीं स्वस्तिक का वास होता है सरल शब्दों में जहां परिवार, समाज या रिश्तों में प्यार, सुख, श्री, उमंग, उल्लास, सद्भाव, सुंदरता और विश्वास का भाव हो। वहीं सुख और सौभाग्य होता है। इसे ही जीवन पर श्री गणेश की कृपा माना जाता है यानि श्री गणेश वहीं बसते हैं। इसलिए श्रीगणेश को मंगलकारी देवता माना गया है। स्वस्तिक में भगवान गणेश का रुप होने का प्रमाण दुनिया के सबसे पुराने ग्रंथ माने जाने वाले वेदों में आए शांति पाठ से भी होती है, जो हर हिन्दू धार्मिक रीति-रिवाजों में बोला जाता है। स्वस्ति वाचन के प्रथम मन्त्र में लगता है स्वस्तिक का ही निरूपण हुआ है। उसकी चार भुजाओं को ईश्वर की चार दिव्य सत्ताओं का प्रतीक माना गया है। किसी भी मंगल कार्य के प्रारम्भ में स्वस्ति मंत्र बोलकर कार्य की शुभ शुरुआत की जाती है।
 
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==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://prachinsabyata.blogspot.in/2013/06/mystery-of-swastika-pyramids-and.html स्वस्तिक , पिरामिड और पुनर्जन्म के रहस्य]  
*[http://prachinsabyata.blogspot.in/2013/06/mystery-of-swastika-pyramids-and.html स्वस्तिक , पिरामिड और पुनर्जन्म के रहस्य]  
*[http://www.panditastro.com/2009/12/symbol-of-life-and-preservation.html भारतीय संस्कृ्ति का महान प्रतीक चिन्ह- स्वस्तिक]
*[http://www.panditastro.com/2009/12/symbol-of-life-and-preservation.html भारतीय संस्कृ्ति का महान् प्रतीक चिन्ह- स्वस्तिक]
*[http://www.livehindustan.com/news/astronews/vastushastra/article1-vastu-117-120-294761.html स्वास्थ्य व सौभाग्य घर लाते हैं, स्वस्तिक और मंगल कलश]
*[http://www.livehindustan.com/news/astronews/vastushastra/article1-vastu-117-120-294761.html स्वास्थ्य व सौभाग्य घर लाते हैं, स्वस्तिक और मंगल कलश]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
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स्वस्तिक विषय सूची
स्वस्तिक मंत्र
स्वस्तिक
स्वस्तिक
विवरण पुरातन वैदिक सनातन संस्कृति का परम मंगलकारी प्रतीक चिह्न 'स्वस्तिक' अपने आप में विलक्षण है। यह देवताओं की शक्ति और मनुष्य की मंगलमय कामनाएँ इन दोनों के संयुक्त सामर्थ्य का प्रतीक है।
स्वस्तिक का अर्थ सामान्यतय: स्वस्तिक शब्द को "सु" एवं "अस्ति" का मिश्रण योग माना जाता है। यहाँ "सु" का अर्थ है- 'शुभ' और "अस्ति" का 'होना'। संस्कृत व्याकरण के अनुसार "सु" एवं "अस्ति" को जब संयुक्त किया जाता है तो जो नया शब्द बनता है- वो है "स्वस्ति" अर्थात "शुभ हो", "कल्याण हो"।
स्वस्ति मंत्र ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्ध-श्रवा-हा स्वस्ति न-ह पूषा विश्व-वेदा-हा । स्वस्ति न-ह ताक्षर्‌यो अरिष्ट-नेमि-हि स्वस्ति नो बृहस्पति-हि-दधातु ॥
अन्य जानकारी भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक चिह्न को विष्णु, सूर्य, सृष्टिचक्र तथा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का प्रतीक माना गया है। कुछ विद्वानों ने इसे गणेश का प्रतीक मानकर इसे प्रथम वन्दनीय भी माना है।

स्वस्तिक हिन्दू धर्म का प्रतिक चिन्ह हैं और कई पीढ़ियों से इस्तेमाल में हैं। स्वस्तिक मंत्र या स्वस्ति मन्त्र शुभ और शांति के लिए प्रयुक्त होता है। स्वस्ति = सु + अस्ति = कल्याण हो। ऐसा माना जाता है कि इससे हृदय और मन मिल जाते हैं। मंत्रोच्चार करते हुए दर्भ से जल के छींटे डाले जाते थे तथा यह माना जाता था कि यह जल पारस्परिक क्रोध और वैमनस्य को शांत कर रहा है। स्वस्ति मन्त्र का पाठ करने की क्रिया 'स्वस्तिवाचन' कहलाती है।

ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
    स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
    स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
    स्वस्ति नो ब्रिहस्पतिर्दधातु ॥
    ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

"महान कीर्ति वाले इन्द्र हमारा कल्याण करो, विश्व के ज्ञानस्वरूप पूषादेव हमारा कल्याण करो। जिसका हथियार अटूट है ऐसे गरुड़ भगवान हमारा मंगल करो। बृहस्पति हमारा मंगल करो।"

मंत्र का महत्त्व

  • गृहनिर्माण के समय स्वस्तिक मंत्र बोला जाता है। मकान की नींव में घी और दुग्ध छिड़का जाता था। ऐसा विश्वास है कि इससे गृहस्वामी को दुधारु गायें प्राप्त हेती हैं एवं गृहपत्नी वीर पुत्र उत्पन्न करती है। खेत में बीज डालते समय मंत्र बोला जाता था कि विद्युत इस अन्न को क्षति न पहुँचाए, अन्न की विपुल उन्नति हो और फसल को कोई कीड़ा न लगे। पशुओं की समृद्धि के लिए भी स्वस्तिक मंत्र का प्रयोग होता था, जिससे उनमें कोई रोग नहीं फैलता था। गायों को खूब संतानें होती थीं।
  • यात्रा के आरंभ में स्वस्तिक मंत्र बोला जाता था। इससे यात्रा सफल और सुरक्षित होती थी। मार्ग में हिंसक पशु या चोर और डाकू नहीं मिलते थे। व्यापार में लाभ होता था, अच्छे मौसम के लिए भी यह मंत्र जपा जाता था, जिससे दिन और रात्रि सुखद हों, स्वास्थ्य लाभ हो तथा खेती को कोई हानि न हो।
  • पुत्रजन्म पर स्वस्तिक मंत्र बहुत आवश्यक माने जाते थे। इससे बच्चा स्वस्थ रहता था, उसकी आयु बढ़ती थी और उसमें शुभ गुणों का समावेश होता था। इसके अलावा भूत, पिशाच तथा रोग उसके पास नहीं आ सकते थे। षोडश संस्कारों में भी मंत्र का अंश कम नहीं है और यह सब स्वस्तिक मंत्र हैं जो शरीर रक्षा के लिए तथा सुख प्राप्ति एवं आयु वृद्धि के लिए प्रयुक्त होते हैं।

मंगल-शुभ की कामना

स्वस्तिक मंत्र में चार बार स्वस्ति शब्द आता है, जिसका मतलब होता है कि इसमें भी चार बार मंगल और शुभ की कामना से श्री गणेश का ध्यान और आवाहन किया गया है। इसमें व्यावहारिक जीवन का पक्ष खोजें तो पाते हैं कि जहां शुभ, मंगल और कल्याण का भाव होता है, वहीं स्वस्तिक का वास होता है सरल शब्दों में जहां परिवार, समाज या रिश्तों में प्यार, सुख, श्री, उमंग, उल्लास, सद्भाव, सुंदरता और विश्वास का भाव हो। वहीं सुख और सौभाग्य होता है। इसे ही जीवन पर श्री गणेश की कृपा माना जाता है यानि श्री गणेश वहीं बसते हैं। इसलिए श्रीगणेश को मंगलकारी देवता माना गया है। स्वस्तिक में भगवान गणेश का रुप होने का प्रमाण दुनिया के सबसे पुराने ग्रंथ माने जाने वाले वेदों में आए शांति पाठ से भी होती है, जो हर हिन्दू धार्मिक रीति-रिवाजों में बोला जाता है। स्वस्ति वाचन के प्रथम मन्त्र में लगता है स्वस्तिक का ही निरूपण हुआ है। उसकी चार भुजाओं को ईश्वर की चार दिव्य सत्ताओं का प्रतीक माना गया है। किसी भी मंगल कार्य के प्रारम्भ में स्वस्ति मंत्र बोलकर कार्य की शुभ शुरुआत की जाती है।


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