"पहेली 22 अक्टूबर 2017": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
('{| class="bharattable-green" width="100%" |- | right|120px <quiz display=simple> {भारत...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
No edit summary
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
-[[जयप्रकाश नारायण]]
-[[जयप्रकाश नारायण]]
+[[नानाजी देशमुख]]
+[[नानाजी देशमुख]]
-[[चौधरी चरणसिंह]]
-[[चौधरी चरण सिंह]]
-[[अटल बिहारी वाजपेयी]]
-[[अटल बिहारी वाजपेयी]]
||[[चित्र:Nanaji-Deshmukh.jpg|right|border|100px|नानाजी देशमुख]]'नानाजी देशमुख' [[राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ]] के मज़बूत स्तंभ और प्रख्यात समाजसेवक थे। देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान '[[पद्मविभूषण]]' से नवाजे गए [[नानाजी देशमुख]] शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण लोगों के बीच स्वावलंबन के लिए किए गए कार्यों के लिए सदैव याद किए जाते हैं। संघ के प्रचारक के रूप में उन्हें [[उत्तर प्रदेश]] में पहले [[आगरा]] और फिर [[गोरखपुर]] भेजा गया था। उन दिनों आर.एस.एस. की आर्थिक स्थिति बहुत ख़राब थी। नानाजी एक धर्मशाला में रहते थे। वहाँ हर तीसरे दिन कमरा बदलना पड़ता था। अन्ततः [[कांग्रेस]] के एक नेता ने उन्हें इस शर्त पर स्थायी कमरा दिलवाया कि वे उसका खाना बना दिया करेंगे। नानाजी के परिश्रम से तीन साल में गोरखपुर के आस-पास 250 शाखाएँ खुल गयीं। विद्यालयों की पढ़ाई तथा संस्कारहीन वातावरण देखकर उन्होंने गोरखपुर में [[1950]] में '''पहला 'सरस्वती शिशु मन्दिर' स्थापित किया'''। आज तो ऐसे विद्यालयों की संख्या देश में 50,000 से भी अधिक है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नानाजी देशमुख]]
||[[चित्र:Nanaji-Deshmukh.jpg|right|border|100px|नानाजी देशमुख]]'नानाजी देशमुख' [[राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ]] के मज़बूत स्तंभ और प्रख्यात समाजसेवक थे। देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान '[[पद्मविभूषण]]' से नवाजे गए [[नानाजी देशमुख]] शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण लोगों के बीच स्वावलंबन के लिए किए गए कार्यों के लिए सदैव याद किए जाते हैं। संघ के प्रचारक के रूप में उन्हें [[उत्तर प्रदेश]] में पहले [[आगरा]] और फिर [[गोरखपुर]] भेजा गया था। उन दिनों आर.एस.एस. की आर्थिक स्थिति बहुत ख़राब थी। नानाजी एक धर्मशाला में रहते थे। वहाँ हर तीसरे दिन कमरा बदलना पड़ता था। अन्ततः [[कांग्रेस]] के एक नेता ने उन्हें इस शर्त पर स्थायी कमरा दिलवाया कि वे उसका खाना बना दिया करेंगे। नानाजी के परिश्रम से तीन साल में गोरखपुर के आस-पास 250 शाखाएँ खुल गयीं। विद्यालयों की पढ़ाई तथा संस्कारहीन वातावरण देखकर उन्होंने गोरखपुर में [[1950]] में '''पहला 'सरस्वती शिशु मन्दिर' स्थापित किया'''। आज तो ऐसे विद्यालयों की संख्या देश में 50,000 से भी अधिक है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नानाजी देशमुख]]

11:28, 22 सितम्बर 2017 के समय का अवतरण