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'''जीवसांख्यिकी''' का शाब्दिक अर्थ होता है जीवधारियों से संबंधित संख्या का विज्ञान। गणित और आँकड़े की विधि के प्रयोग द्वारा जीवित वस्तुओं के जैव गुणों का वर्णन और वर्गीकरण जीवसांख्यिकी कहलाता है। इसका संबंध विशेषत: आँकड़े की विधि से जैव पदार्थों में विभिन्नता, उनकी आबादी संबंधी समस्याएँ और उनमें किस आवृत्ति <ref>frequency</ref> से घटनाएँ घटित होती हैं, इत्यादि के विश्लेषण से हैं।
'''जीवसांख्यिकी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Biometry'') का शाब्दिक अर्थ होता है- "जीवधारियों से संबंधित संख्या का विज्ञान"। गणित और आँकड़े की विधि के प्रयोग द्वारा जीवित वस्तुओं के जैव गुणों का वर्णन और वर्गीकरण जीवसांख्यिकी कहलाता है। इसका संबंध विशेषत: आँकड़े की विधि से जैव पदार्थों में विभिन्नता, उनकी आबादी संबंधी समस्याएँ और उनमें किस आवृत्ति<ref>frequency</ref> से घटनाएँ घटित होती हैं, इत्यादि के विश्लेषण से है।
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==अर्थ==
जीवसांख्यिकी का प्रारंभिक अर्थ संकुचित था। इसका तात्पर्य था- आँकड़े की विधि से, विशेषत: सह-संबंध गुणांक<ref>Correlation coefficient</ref> की विधि से वंश परंपरा का अध्ययन करना।<ref name="aa">{{cite web |url=http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%96%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%80 |title=जीवसांख्यिकी |accessmonthday=27 मई |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतखोज |language=हिन्दी }} </ref>
==क्षेत्र==
जीवसांख्यिकी का क्षेत्र सीमित और केवल जैव वस्तुओं से संबंधित है। सांख्यिकीविद प्रथमत: बड़े पैमाने पर प्रेक्षण करते हैं। वे इन प्रेक्षणों को क्रमबद्ध करके इनका सारांश निकालने की चेष्टा करते हैं। इस सारांश के आधार पर प्रेक्षित जाति<ref>species</ref> के जीव का एक ऐसा साधारण और व्यापक वर्णन करते हैं, जो उस पूरे जीवसमूह पर लागू हो। चूँकि जैव आँकड़े बहुत ही परिवर्ती होते हैं, अत: इस विभिन्नता से उत्पन्न कठिनाइयों को सुलझाने और ठीक-ठीक तर्क स्थापित करने हेतु ही मुख्यत: जीवसांख्यिकी विधि का विकास हुआ है।
==संस्थापक==
सर फ़्रैंसिस गाल्टन (सन 1822-[[1911]]) जीवसांख्यिकी के संस्थापक माने जाते हैं। वे जानना चाहते थे कि [[पिता]] से पुत्र में और फिर पौत्र में, इसी भाँति पीढ़ी-दर-पीढ़ी किसी गुण विशेष का संचरण किस प्रकार होता है। उन्होंने दो नियमों का प्रतिपादन किया-
#पैतृक वंशानुक्रमण का नियम (Law of Ancestral Inheritance)
#वंश अवनति का नियम (Law of Filial Regression)


जीवसांख्यिकी का क्षेत्र सीमित और केवल जैव वस्तुओं से संबंधित है। सांख्यिकीविद् प्रथम बड़े पैमाने पर प्रेक्षण करते हैं। वे इन प्रेक्षणों को क्रमबद्ध करके इनका सारांश निकालने की चेष्टा करते हैं। इस सारांश के आधार पर प्रेक्षित जाति <ref>species</ref> के जीव का एक ऐसा साधारण और व्यापक वर्णन करते हैं जो उस पूरे जीवसमूह पर लागू हो। चूँकि जैव आँकड़े बहुत ही परिवर्ती होते हैं, अतएव इस विभिन्नता से उत्पन्न कठिनाइयों को सुलझाने और ठीक ठीक तर्क स्थापित करने के हेतु ही मुख्यत: जीवसांख्यिकी विधि का विकास हुआ है।
फ़्रैंसिस गॉल्टन ने [[1901]] ई. में लिखा था कि "जीव सांख्यिकी का मुख्य लक्ष्य ऐसे उपकरण प्रदान करना है, जिनके द्वारा जीवविकास के अंतर्गत घटित होने वाले उन प्रारंभिक परिवर्तनों का, जो इतने नगण्य हैं कि अन्य विधियों से उनका पता नहीं लगाया जा सकता, अनुसंधान ठीक-ठाक हो।" उन्होंने फिर कहा "आधुनिक आँकड़ा विधियों का जीवविज्ञान में प्रयोग जीवसांख्यिकी है।" उन दिनों आँकड़ा विज्ञान<ref>Statistics</ref> की आधुनिक विधि का तात्पर्य था 'सहसंबंध गुणांक <ref>Correlation Coefficient</ref> का प्रयोग'। पीछे कार्ल पियर्सन<ref>Karl Pearson</ref>, फिशर<ref>R. A. Fisher</ref> तथा अन्य व्यक्तियों ने गॉल्टन की प्रणाली को और आगे बढ़ाया। फिशर के 'स्टैटिस्टिकल मेथड्स फॉर रिसर्च वर्कस' के प्रकाशन ([[1925]] ई.) के पश्चात् इसके अध्ययन का तीव्रता से विस्तार हुआ। जीवसांख्यिकी में अधिक आधुनिक प्रगति इस समस्या में निर्दिष्ट है कि किस प्रकार के प्रयोगों की कल्पना की जाय कि अपेक्षाकृत कम-से-कम प्रेक्षण के आधार पर सांख्यिकी की समस्याओं का समाधान हो सके। फिशर तथा स्नेडिकोर<ref>George Snedicor</ref> इन समस्याओं को, विशेषत: [[कृषि]] संबंधी प्रयोगों के क्षेत्र में सुलझाने में विशेष रूप से सफल हुए। अनेक जीवसांख्यिकी गवेषणों के परिणाम 'जीवसांख्यिकी' नामक [[पत्रिका]] में प्रकाशित होते रहते हैं।<ref name="aa"/>
==विधियों का प्रयोग==
*जीवसांख्यिकी विधियों का प्रयोग मनुष्य, वनस्पति और प्राणियों के जैव तथा शरीर क्रिया विशेषताओं, जो उनके लिये उपयोगी और अनुपयोगी दोनों ही प्रकार के हैं, के अनुसंधान के लिये व्यवहार में लाया जाता है।
*इसका प्रयोग पौधों में [[फल]] उगने के विषय से लेकर दवाओं, जैसे- सल्फासमूह<ref>Sulpha group</ref> और हिस्टामिनरोधी<ref>Antihistamine</ref> के गुणकारी या हानिकारक प्रभावों को मालूम करने के लिये किया जाता है।
*जीवसांख्यिकी का उपयोग आज विशुद्ध विज्ञान, जैसे- वनस्पति विज्ञान, [[प्राणि विज्ञान कोश|प्राणि विज्ञान]], जीवाणु विज्ञान, शरीर क्रिया विज्ञान इत्यादि से लेकर व्यावहारिक विज्ञान, जैसे- कीट विज्ञान, जैविकी, मत्स्य विज्ञान, उद्यान विज्ञान, शस्य विज्ञान, औषधप्रभाव विज्ञान, लाक्षणिक औषधि विज्ञान, [[कवक]] से फैली बीमारियों के अध्ययन, जीवन बीमा कंपनियों के अध्ययन इत्यादि में समान रूप से हो रहा है।
====शाखाएँ====
जीवसांख्यिकी की अनेक शाखाएँ हैं। जैव जनसंख्या के वर्णन, वर्गीकरण, नियंत्रण, परिवर्तन परस्पर अभिक्रिया और संवेदनाएँ इत्यादि इसके मुख्य अंग हैं। जैव प्रतिक्रिया<ref>Biological responses</ref> का निर्धारण जीवसांख्यिकी की नई शाखा है। [[विटामिन]] परीक्षण, विषाक्तता<ref>Toxicities</ref> की तुलना, प्राणियों के भोजन की मात्रा संबंधी अन्वेषण, शरीर क्रिया जीवसांख्यिकी और जीवरासायनिक जीवसांख्यिकी भी इसके अंतर्गत आते हैं।<ref name="aa"/>


जीवसांख्यिकी का प्रारंभिक अर्थ संकुचित था। इसका तात्पर्य था आँकड़े की विधि से, विशेषत: सहसँबंध गुणांक<ref>Correlation coefficient</ref> की विधि सं वंश परंपरा का अध्ययन करना। सर फ्रैंसिस गाल्टन (सन्‌ 1822-1911) जीव सांख्यिकी के संस्थापक माने जाते हैं। वे जानना चाहते थे कि पिता से पुत्र में और फिर पौत्र में, इसी भाँति पीढ़ी दर पीढ़ी किसी गुण विशेष का संचरण किस प्रकार होता है। उन्होंने दो नियमों का प्रतिपादन किया, एक पैतृक वंशानुक्रमण का नियम <ref>Law of Ancestral Inheritance</ref> और दूसरा वंश अवनति का <ref>Law of Filial Regression</ref>
जीवों के वर्गीकरण विज्ञान<ref>Taxonomy</ref> में जीवसांख्यिकी का सदा से विशेष महत्व रहा है। किसी जाति की आबादी निवास स्थान के अनुसार भिन्न हो सकती है अथवा दो जनसंख्याएँ किसी विशेष गुणों में परस्पर व्याप्त<ref>Overlap</ref> हो सकती हैं अथवा कोई आबादी अनेक जातियों का सम्मिश्रण हो सकती है। प्रतिस्पर्धा का अध्ययन, विशेषत: अंतवर्गीय संघर्ष, पहले काल्पनिक विधि द्वारा निर्धारण पर आधारित था। 20वीं सदी के मध्य में संभाविता संबंधी विधि<ref>Probabilistic Method</ref> का प्रवेश हुआ। अत: घटना की प्रकृति से ही और आँकड़े की प्रकृति के प्रेक्षण की अनिवार्यता से ही इस प्रकार का अध्ययन सांख्यिकीय<ref>statistical</ref> हो जाता है।
==सहसंबंध के विश्लेषण==
गॉल्टन और उसके अनुयायियों द्वारा सहसंबंध के विश्लेषण के आधार पर वंशानुगत अध्ययन की स्थापना हुई थी, किंतु मेंडल के सिद्धांत के पक्ष में इसका शीघ्र ही परित्याग कर दिया गया। आनुवंशिक<ref>Genetics</ref> संभावित प्रणाली<ref>Probabilistic Methods</ref> और जीवसांख्यिकी<ref>Biometry Methods</ref> दोनों की परस्पर प्रतिक्रिया का संमिश्रण हो गया। प्रयोग-तकनीक और परिणाम, उदाहरणार्थ जीन<ref>Gene</ref> की आवृत्ति आबादी की जनन-पद्धति में परिवर्तन और उनकी खोज अथवा कायिक कोशिकाओं या सूक्ष्म जीवाणुओं पर विकिरण<ref>Radiation</ref> का प्रभाव ये सभी जीवसांख्यिकी के ही अंग हैं। जीवसांख्यिकी एक नया विज्ञान है, पर प्राणि संबंधी समस्याओं के अध्ययन में इसका आज व्यापक रूप से व्यवहार हो रहा है और उससे प्राप्त निष्कर्ष बड़े ही उपयोगी सिद्ध हुए हैं।<ref name="aa"/>


फ्रांसिस गॉल्टन ने 1901 ई. में लिखा था कि जीव सांख्यिकी का मुख्य लक्ष्य ऐसे उपकरण प्रदान करने हैं, जिनके द्वारा जीवविकास के अंतर्गत घटित होनेवाले उन प्रारंभिक परिवर्तनों का, जो इतने नगण्य हैं कि अन्य विधियों से उनका पता नहीं लगाया जा सकता, अनुसंधान ठीक ठाक हो। उन्होंने फिर कहा 'आधुनिक आँकड़ा विधियों का जीवविज्ञान में प्रयोग जीवसांख्यिकी है'। उन दिनों आँकड़ा विज्ञान <ref>Statistics</ref> की आधुनिक विधि का तात्पर्य था सहसंबंध गुणांक <ref>Correlation Coefficient</ref> का प्रयोग।
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पीछे कार्ल पियर्सन<ref>Karl Pearson</ref>, फिशर<ref>R. A. Fisher</ref> तथा अन्य व्यक्तियों ने गॉल्टन की प्रणाली को और आगे बढ़ाया। फिशर के स्टैटिस्टिकल मेथड्स फॉर रिसर्च वर्कस के प्रकाशन (1925 ई.) के पश्चात्‌ इसके अध्ययन का तीव्रता से विस्तार हुआ। जीवसांख्यिकी में अधिक आधुनिक प्रगति इस समस्या में निर्दिष्ट हैं कि किस प्रकार के प्रयोगों की कल्पना की जाय कि अपेक्षाकृत कम से कम प्रेक्षण के आधार पर सांख्यिकी की समस्याओं का समाधान हो सके। फिशर<ref>Fisher</ref> तथा स्नेडिकोर<ref>George Snedicor</ref> इन समस्याओं को, विशेषत: कृषि संबंधी प्रयोगों के क्षेत्र में सुलझाने में विशेष रूप् से सफल हुए। अनेक जीव सांख्यिकी गवेषणों के परिणाम जीवसांख्यिकी<ref>Biometric</ref> नामक पत्रिका में प्रकाशित होते रहते हैं।
 
जीवसांख्यिकी विधियों का प्रयोग मनुष्य, वनस्पति और प्राणियों के जैव तथा शरीरक्रिया विशेषताओं, जो उनके लिये उपयोगी और अनुपयोगी दोनों ही प्रकार के हैं, के अनुसंधान के लिये व्यवहार में लाया जाता है। जीवसांख्यिकी का प्रयोग पौधों में फल उगने के विषय से लेकर दवाओं जैसे सल्फासमूह<ref>Sulpha group</ref> और हिस्टामिनरोधी<ref>Antihistamine</ref> के गुणकारी या हानिकारक प्रभावों को मालूम करने के लिये किया जाता है।
 
जीवसांख्यिकी का उपयोग आज विशुद्ध विज्ञान जैसे वनस्पतिविज्ञान, प्राणिविज्ञान, जीवाणुविज्ञान, शरीरक्रियाविज्ञान इत्यादि से लेकर व्यावहारिक विज्ञान जैसे कीटविज्ञान, जैविकी, मत्स्यविज्ञान, उद्यानविज्ञान, शस्यविज्ञान, औषधप्रभावविज्ञान, लाक्षणिक औषधि विज्ञान, कवक से फैली बीमारियों के अध्ययन, जीवन बीमा कंपनियों के अध्ययन इत्यादि में समान रूप से हो रहा है।
 
जीवसांख्यिकी की अनेक शाखाएँ हैं। जैव जनसंख्या[1] के वर्णन, वर्गीकरण, नियंत्रण, परिवर्तन परस्पर अभिक्रिया और संवेदनाएँ इत्यादि इसके मुख्य अंग हैं।
 
जैव प्रतिक्रिया<ref>Biological responses</ref> का निर्धारण जीवसांख्यिकी की नई शाखा है। विटामिन परीक्षण, विषाक्तता<ref>Toxicities</ref> की तुलना, प्राणियों के भोजन की मात्रा संबंधी अन्वेषण, शरीर क्रिया जीवसांख्यिकी और जीवरासायनिक जीवसांख्यिकी भी इस के अंतर्गत आते हैं।
==जनगणना==
जीवों के वर्गीकरण विज्ञान<ref>Taxonomy</ref> में जीवसांख्यिकी का सदा से विशेष महत्व रहा है। किसी जाति की आबादी निवासस्थान के अनुसार भिन्न हो सकती है अथवा दो जनसंख्याएँ किसी विशेष गुणों में परस्पर व्याप्त<ref>Overlap</ref> हो सकती हैं अथवा कोई आबादी अनेक जातियों का सम्मिश्रण हो सकती है।
 
प्रतिस्पर्धा का अध्ययन, विशेषत: अंतवर्गीय संघर्ष, पहले काल्पनिक विधि द्वारा निर्धारण पर आधारित था। 20 वीं सदी के मध्य में संभाविता संबंधी विधि<ref>Probabilistic Method</ref> का प्रवेश हुआ। अतएव घटना की प्रकृति से ही और आँकड़े की प्रकृति के प्रेक्षण की अनिवार्यता से ही इस प्रकार का अध्ययन सांख्यिकीय<ref>statistical</ref> हो जाता है।
 
गॉल्टन और उसके अनुयायियों द्वारा सहसंबंध के विश्लेषण के आधार पर वंशानुगत अध्ययन की स्थापना हुई थी, किंतु मेंडल के सिद्धांत के पक्ष में इसका शीघ्र ही परित्याग कर दिया गया। आनुवंशिक<ref>Genetics</ref> संभावित प्रणाली<ref>Probabilistic Methods</ref> और जीवसांख्यिकी (Biometry Methods) दोनों की परस्पर प्रतिक्रिया का संमिश्रण हो गया। प्रयोग-तकनीक और परिणाम, उदाहरणार्थ जीन (Gene) की आवृत्ति आबादी की जनन-पद्धति में परिवर्तन और उनकी खोज अथवा कायिक कोशिकाओं या सूक्ष्म जीवाणुओं पर विकिरण (Radiation) का प्रभाव ये सभी जीवसांख्यिकी के ही अंग हैं।
 
जीवसांख्यिकी एक नया विज्ञान है, पर प्राणि संबंधी समस्याओं के अध्ययन में इसका आज व्यापक रूप से व्यवहार हो रहा है और उससे प्राप्त निष्कर्ष बड़े ही उपयोगी सिद्ध हुए हैं।
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==


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जीवसांख्यिकी (अंग्रेज़ी: Biometry) का शाब्दिक अर्थ होता है- "जीवधारियों से संबंधित संख्या का विज्ञान"। गणित और आँकड़े की विधि के प्रयोग द्वारा जीवित वस्तुओं के जैव गुणों का वर्णन और वर्गीकरण जीवसांख्यिकी कहलाता है। इसका संबंध विशेषत: आँकड़े की विधि से जैव पदार्थों में विभिन्नता, उनकी आबादी संबंधी समस्याएँ और उनमें किस आवृत्ति[1] से घटनाएँ घटित होती हैं, इत्यादि के विश्लेषण से है।

अर्थ

जीवसांख्यिकी का प्रारंभिक अर्थ संकुचित था। इसका तात्पर्य था- आँकड़े की विधि से, विशेषत: सह-संबंध गुणांक[2] की विधि से वंश परंपरा का अध्ययन करना।[3]

क्षेत्र

जीवसांख्यिकी का क्षेत्र सीमित और केवल जैव वस्तुओं से संबंधित है। सांख्यिकीविद प्रथमत: बड़े पैमाने पर प्रेक्षण करते हैं। वे इन प्रेक्षणों को क्रमबद्ध करके इनका सारांश निकालने की चेष्टा करते हैं। इस सारांश के आधार पर प्रेक्षित जाति[4] के जीव का एक ऐसा साधारण और व्यापक वर्णन करते हैं, जो उस पूरे जीवसमूह पर लागू हो। चूँकि जैव आँकड़े बहुत ही परिवर्ती होते हैं, अत: इस विभिन्नता से उत्पन्न कठिनाइयों को सुलझाने और ठीक-ठीक तर्क स्थापित करने हेतु ही मुख्यत: जीवसांख्यिकी विधि का विकास हुआ है।

संस्थापक

सर फ़्रैंसिस गाल्टन (सन 1822-1911) जीवसांख्यिकी के संस्थापक माने जाते हैं। वे जानना चाहते थे कि पिता से पुत्र में और फिर पौत्र में, इसी भाँति पीढ़ी-दर-पीढ़ी किसी गुण विशेष का संचरण किस प्रकार होता है। उन्होंने दो नियमों का प्रतिपादन किया-

  1. पैतृक वंशानुक्रमण का नियम (Law of Ancestral Inheritance)
  2. वंश अवनति का नियम (Law of Filial Regression)

फ़्रैंसिस गॉल्टन ने 1901 ई. में लिखा था कि "जीव सांख्यिकी का मुख्य लक्ष्य ऐसे उपकरण प्रदान करना है, जिनके द्वारा जीवविकास के अंतर्गत घटित होने वाले उन प्रारंभिक परिवर्तनों का, जो इतने नगण्य हैं कि अन्य विधियों से उनका पता नहीं लगाया जा सकता, अनुसंधान ठीक-ठाक हो।" उन्होंने फिर कहा "आधुनिक आँकड़ा विधियों का जीवविज्ञान में प्रयोग जीवसांख्यिकी है।" उन दिनों आँकड़ा विज्ञान[5] की आधुनिक विधि का तात्पर्य था 'सहसंबंध गुणांक [6] का प्रयोग'। पीछे कार्ल पियर्सन[7], फिशर[8] तथा अन्य व्यक्तियों ने गॉल्टन की प्रणाली को और आगे बढ़ाया। फिशर के 'स्टैटिस्टिकल मेथड्स फॉर रिसर्च वर्कस' के प्रकाशन (1925 ई.) के पश्चात् इसके अध्ययन का तीव्रता से विस्तार हुआ। जीवसांख्यिकी में अधिक आधुनिक प्रगति इस समस्या में निर्दिष्ट है कि किस प्रकार के प्रयोगों की कल्पना की जाय कि अपेक्षाकृत कम-से-कम प्रेक्षण के आधार पर सांख्यिकी की समस्याओं का समाधान हो सके। फिशर तथा स्नेडिकोर[9] इन समस्याओं को, विशेषत: कृषि संबंधी प्रयोगों के क्षेत्र में सुलझाने में विशेष रूप से सफल हुए। अनेक जीवसांख्यिकी गवेषणों के परिणाम 'जीवसांख्यिकी' नामक पत्रिका में प्रकाशित होते रहते हैं।[3]

विधियों का प्रयोग

  • जीवसांख्यिकी विधियों का प्रयोग मनुष्य, वनस्पति और प्राणियों के जैव तथा शरीर क्रिया विशेषताओं, जो उनके लिये उपयोगी और अनुपयोगी दोनों ही प्रकार के हैं, के अनुसंधान के लिये व्यवहार में लाया जाता है।
  • इसका प्रयोग पौधों में फल उगने के विषय से लेकर दवाओं, जैसे- सल्फासमूह[10] और हिस्टामिनरोधी[11] के गुणकारी या हानिकारक प्रभावों को मालूम करने के लिये किया जाता है।
  • जीवसांख्यिकी का उपयोग आज विशुद्ध विज्ञान, जैसे- वनस्पति विज्ञान, प्राणि विज्ञान, जीवाणु विज्ञान, शरीर क्रिया विज्ञान इत्यादि से लेकर व्यावहारिक विज्ञान, जैसे- कीट विज्ञान, जैविकी, मत्स्य विज्ञान, उद्यान विज्ञान, शस्य विज्ञान, औषधप्रभाव विज्ञान, लाक्षणिक औषधि विज्ञान, कवक से फैली बीमारियों के अध्ययन, जीवन बीमा कंपनियों के अध्ययन इत्यादि में समान रूप से हो रहा है।

शाखाएँ

जीवसांख्यिकी की अनेक शाखाएँ हैं। जैव जनसंख्या के वर्णन, वर्गीकरण, नियंत्रण, परिवर्तन परस्पर अभिक्रिया और संवेदनाएँ इत्यादि इसके मुख्य अंग हैं। जैव प्रतिक्रिया[12] का निर्धारण जीवसांख्यिकी की नई शाखा है। विटामिन परीक्षण, विषाक्तता[13] की तुलना, प्राणियों के भोजन की मात्रा संबंधी अन्वेषण, शरीर क्रिया जीवसांख्यिकी और जीवरासायनिक जीवसांख्यिकी भी इसके अंतर्गत आते हैं।[3]

जीवों के वर्गीकरण विज्ञान[14] में जीवसांख्यिकी का सदा से विशेष महत्व रहा है। किसी जाति की आबादी निवास स्थान के अनुसार भिन्न हो सकती है अथवा दो जनसंख्याएँ किसी विशेष गुणों में परस्पर व्याप्त[15] हो सकती हैं अथवा कोई आबादी अनेक जातियों का सम्मिश्रण हो सकती है। प्रतिस्पर्धा का अध्ययन, विशेषत: अंतवर्गीय संघर्ष, पहले काल्पनिक विधि द्वारा निर्धारण पर आधारित था। 20वीं सदी के मध्य में संभाविता संबंधी विधि[16] का प्रवेश हुआ। अत: घटना की प्रकृति से ही और आँकड़े की प्रकृति के प्रेक्षण की अनिवार्यता से ही इस प्रकार का अध्ययन सांख्यिकीय[17] हो जाता है।

सहसंबंध के विश्लेषण

गॉल्टन और उसके अनुयायियों द्वारा सहसंबंध के विश्लेषण के आधार पर वंशानुगत अध्ययन की स्थापना हुई थी, किंतु मेंडल के सिद्धांत के पक्ष में इसका शीघ्र ही परित्याग कर दिया गया। आनुवंशिक[18] संभावित प्रणाली[19] और जीवसांख्यिकी[20] दोनों की परस्पर प्रतिक्रिया का संमिश्रण हो गया। प्रयोग-तकनीक और परिणाम, उदाहरणार्थ जीन[21] की आवृत्ति आबादी की जनन-पद्धति में परिवर्तन और उनकी खोज अथवा कायिक कोशिकाओं या सूक्ष्म जीवाणुओं पर विकिरण[22] का प्रभाव ये सभी जीवसांख्यिकी के ही अंग हैं। जीवसांख्यिकी एक नया विज्ञान है, पर प्राणि संबंधी समस्याओं के अध्ययन में इसका आज व्यापक रूप से व्यवहार हो रहा है और उससे प्राप्त निष्कर्ष बड़े ही उपयोगी सिद्ध हुए हैं।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. frequency
  2. Correlation coefficient
  3. 3.0 3.1 3.2 3.3 जीवसांख्यिकी (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 27 मई, 2015।
  4. species
  5. Statistics
  6. Correlation Coefficient
  7. Karl Pearson
  8. R. A. Fisher
  9. George Snedicor
  10. Sulpha group
  11. Antihistamine
  12. Biological responses
  13. Toxicities
  14. Taxonomy
  15. Overlap
  16. Probabilistic Method
  17. statistical
  18. Genetics
  19. Probabilistic Methods
  20. Biometry Methods
  21. Gene
  22. Radiation

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